सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
21: 20-25
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सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
20:19-23
19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम्हें शांति मिले!"
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
21: 20-25
20) पेत्रुस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे पीछे आते देखा जिसे ईसा प्यार करते थे और जिसने व्यारी के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, ’प्रभु! वह कौन है, जो आप को पकड़वायेगा?’
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
17: 20-26
20) मैं न केवल उनके लिये विनती करता हूँ, बल्कि उनके लिये भी जो, उनकी शिक्षा सुनकर मुझ में विश्वास करेंगे।
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
17:11-19
11) अब मैं संसार में नहीं रहूँगा; परन्तु वे संसार में रहेंगे और । परमपावन पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख, जिससे वे हमारी ही तरह एक बने रहें।
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
16: 29-33
29) उनके शिष्यों ने उन से कहा, "देखिये, अब आप दृष्टांतो में नहीं, बल्ेिक स्पष्ट शब्दों में बोल रहे हैं।
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
28: 16-20
16) तब ग्यारह शिष्य गलीलिया की उस पहाड़ी के पास गये , जहाँ ईसा ने उन्हें बुलाया था।
17) उन्होंने ईसा को देख कर दण्डवत् किया, किन्तु किसी-किसी को सन्देह भी हुआ।
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
16: 23-28
23) उस दिन तुम मुझ से कोई प्रश्न नहीं करोगे। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - तुम पिता से जो कुछ माँगोगे वह तुम्हें मेरे नाम पर वही प्रदान करेगा।