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आर.वी.ऐ. हिन्दी का सफर

रेडियो वेरितास एशिया के हिन्दी अनुष्ठान को आर.वी.ऐ. हिन्दी के नाम से जाना जाता है। अपने प्रसारण के पिछले 30 वर्षों में, आर.वी.ऐ. हिन्दी भारत के बहुसांस्कृतिक और बहु-धार्मिक परिवेश में शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अग्रदूत रहा है। यह सामाजिक और प्रासंगिक कार्यक्रमों का प्रसारण कर वैज्ञानिक ज्ञान, आध्यात्मिक बातों, प्रेरणादायक सूचनाओं, समाचार आदि का आदान-प्रदान करता आया है। आधुनिक व्यवसायिकों से प्रभावित हुए बिना यह खीस्तीय मूल्यों, भारतीय संस्कृति, अंतर धार्मिक संवाद और समग्र मानव विकास व प्रगति को बढ़ावा देता है। दिव्य शब्द संघ के मध्य प्रांत ने 1988 में आर.वी.ऐ. हिन्दी के प्रसारण में रेडियो वेरितास एशिया से सहयोग करने की जि़्ाम्मेदारी ली थी। तब से आज तक सत् प्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर अपने बहुमुखी कार्यक्रमों के द्वारा असंख्य श्रोताओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहा है। येसु समाजी संचार केन्द्र, रवि भारती पटना भी अपना कार्यक्रमों के द्वारा सत्यस्वर के प्रसारण में अहम् भूमिका निभाता है। इन्दौर धर्मप्रांत के महामहिम धर्माध्यक्ष चाको थोड्टमारिकल के नेतृत्व में सत्यस्वर शांति, सद्भाव और भाईचारे के संदेश की घोषणा सतत् कर रहा है। अपने सफर के पिछले 30 वर्षों से सत्यस्वर को ईश्वर की कृपायें, उपकारियों का सहयोग, कलाकारों की प्रतिभाएं और श्रोताओं का साथ मिलता आया है, जिनका आर.वी.ऐ. हिन्दी आभारी है और सदा ऋणी रहेगा।

हिन्दी क्षेत्र में काथलिक चर्च अपनी मिशनरी पहचान के साथ, 97.60 अन्य धर्मावलम्बी लोगों के बीच शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास कार्यों में लगा हुआ है। वर्तमान मीडिया क्रान्ति के युग में काथलिक चर्च की विभिन्न गतिविधियों में मीडिया की भूमिका नग्न है। ऐसे समय में एक काथलिक प्रसारण वास्वत में काथलिक चर्च की सुसमाचारीकरण, शिक्षा और अन्य विकास की गतिविधियों में अहम् भूमिका निभा सकता है। आज हिन्दी वेरितास ऐशिया काथलिक चर्च के सहयोग में एक उत्तम माध्यम बना हुआ है।

भारत के प्रेरित, संत थामस के त्योहार पर 3 जुलाई 1988 को आर.वी.ऐ. हिन्दी का प्रसारण फिलीपींस देश से प्रारंभ हुआ और तब से आज तक पिछले 30 वर्षों से इसका प्रसारण सतत् हो रहा है। अपने असंख्य श्रोताओं के जीवन में जागरूकता लाने, उनके जीवन को बेहतर बनाने और उनके मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप में सशक्त बनाने हेतु आर.वी.ऐ. हिन्दी एक अति उपयोगी साधन बना हुआ है। विभिन्न रोचक एवं शिक्षाप्रद कार्यक्रमों के प्रसारण के द्वारा आर.वी.ऐ. हिन्दी समग्र मानव उत्थान में, वर्षों से सफल मिशनरी बना हुआ है। अपने दृष्टि-सृष्टि अनुकथन के प्रति वचनबद्ध, आर.वी.ऐ. हिन्दी वह हर प्रयास कर रहा है जिससे इसके श्रोताओं का जीवन बेहतर बने।

 

रेडियो वेरितास एशिया का इतिहास

प्रभु येसु खीस्त के प्रेम संदेश को रेडियो तरंगों के माध्यम से एशिया के लोगों तक पहुँचाने हेतु धर्माध्यक्षों का एक सपना था, जिसे साकार करने के लिए उन्होंने कोर्इ कसर नहीं छोड़ी।  
 
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीन, विएतनाम, कोरिया और म्यांमार जैसे युद्ध से प्रभावित देश साम्यवाद के सिकंजों में कराह रहे थे। उनकी दासता से मुक्त होने के लिए सिर्फ खीस्त के प्रेम भरे मानवीय मूल्य ही एकमात्र आशा की किरण साबित हो सकते थे। जिसे रेडियो तरंगों के माध्यम से ही उन देशों तक पहुँचाना संभव था।  
 
सन 1958 में यह सपना एशिया और आस्ट्रेलिया के 100 धर्माध्यक्षों के सामने रखा गया जो फिलिपींस की राजधानी मनीला में आयोजित एक सम्मेलन में भाग ले रहे थे। उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार करते हुए रेडियो स्टेशन शुरू करने के लिए अपनी सहमति दे दी।  
 
धर्माध्यक्षों की बैठक के दौरान साम्यवादी देशों में कलीसिया की समस्याओं का समाधान ढूँढने के लिए कार्डिनल अगाजियानन का नाम प्रस्ताावित किया गया जिसका समर्थन संत पिता योहन तेइसवें ने भी किया।  
 
संत पिता पीयुष बारहवें ने एक ऐसे रेडियो प्रसारण का सुझाव दिया जो पूरे एशिया महाद्वीप में अपने कार्यक्रमों के द्वारा प्रभु के प्रेम, शानित और भार्इचारे की घोषणा कर सके।  
 
संत पिता पीयुष बारहवें की मृत्यु के बाद संत पिता योहन तेइसवें ने रेडियो प्रसार की योजना को प्राथमिकता के साथ पूरा करने की पहल की। चीन के निकटवर्ती एशिया के एकमात्र काथलिक देश फिलिपींस को रेडियो स्टेशन के लिए बहुत ही उपयुक्त पाया गया।  
 
फिलिपंीस के मनीला महाधर्मप्रांत के तात्कालीन आर्चबिशप कार्डिनल, रूफिनों सान्तोस ने इस शर्त पर योजना को मंजूरी दी कि फिलिपींस देशवासियों के लिए एक घरेलू रेडियो प्रसारण भी उसमें शामिल हो।  
 
 घरेलू तथा विदेशी दोनों प्रसारणों का नामकरण 'रेडियो वेरितास के नाम से ही किया गया। बहरहाल 1958 में एशियार्इ धर्माध्यक्षों को बड़ी चुनौति का सामना करना पड़ा कि प्रसारण के लिए तकनीकि योजना और उसके लिए आवश्यक धनराशि का जुगाड़ कहाँ से किया जाए। ''जिसको कोर्इ सहारा न हो उसका स्वयं र्इश्वर सहारा होता है की तर्ज पर जर्मनी के चान्सलर डाक्टर कोनराड अडेनौर ने रेडियो वेरितास को सहयता देने का बीड़ा उठाया। उसी प्रकार 11 अक्टूबर 1960 की ऐतिहासिक बैठक में कार्डिनल अगाजियानन और जर्मनी धर्माध्यक्षा परिषद संघ के अध्यक्ष बिशप विलहेल्स (विलियम) विसिंग ने रेडियो वेरितास की स्था पना के लिए आवश्यक धनराशि देने का वादा किया।  
 
शुभ कार्य का श्रीगणेश होता देखकर और भी बहुत सारी सेवा-भावी संस्थाएँ सहायता के लिए आगे आयीं। उनमें प्रमुख हैं : रोम की धर्म-विस्तार परिषद, जर्मनी धर्माध्यक्षीय परिषद संघ, जर्मनी का ही कालोन महाधर्मप्रान्त, जर्र्मनी सिथत मिशन सहायतार्थ संस्था ''मिसेरियोर, चर्च इन नीड, तथा पवित्र बालकपन संघ। उन सबों को एक साथ मिलाकर सन 1961 में मनीला में रेडियो वेरितास के लिए आधिकारिक दल का गठन किया गया।  
 
 ''प्रेइक नामक, फिलिपींस रेडियो एजूकेशन एण्ड इन्फोरमेशन सेन्टर ने रेडियो प्रसारण की बुनियादी आवश्यकताओं की आपूर्ती करते हुए 1967 में प्रथम परिक्षण प्रसारण किया। लम्बे समय की कड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद आखिर रेडियो प्रसारण का सपना साकार हुआ। 'शोर्ट वेव तकनीक का उपयोग करते हुए 11 अप्रैल 1969 को रेडियो वेरितास का प्रथम विदेशी प्रसारण किया गया। इसके साथ ही एशिया के लोगों के लिए खीस्त के मूल्यों को सबों के साथ साझा करने का एक नया युग शुरू हुआ। सन 1970 में संत पिता पाल छटवें ने रेडियो वेरितास का विधिवत उदघाटन किया। उन्होंने फिलिपींस में उस प्रथम यात्रा के समय अपने उदबोधन में कहा कि इस रेडियो प्रसारण द्वारा प्रभु के प्रेम संदेश और मानवीय मूल्यों को दूर-दूर तक फैलाने का प्रयास करते हुए र्इश्वर की महिमा की जाए। साथ ही उन्होंने आशा व्यक्त की कि लोग उन खीस्तीय मूल्यों को अपने जीवन में उतारकार 'सर्वेभवन्तु सुखिन: का वातावरण बनाएेंगें।  
 
सन 1981 में संत पिता जान पाल द्वितीय की यात्रा ने इस रेडियो वेरितास की महत्ता को नर्इ ऊचार्इयाँ प्रदान की। 1995 में उन्होंने एशिया को ''कलीसिया की आवाज कहते हुए संबोधित किया। जब 1970 में एफ.ए.बी.सी यानि एशियार्इ धर्माध्यक्षीय परिषद संघ की स्थापना हुर्इ तब रेडियो वेरितास एशिया के प्रसारण की जिम्मेदारी उसे सौंप दी गर्इ। सन 1974 में एफ.ए.बी.सी. एवं फिलिपींस की केथोलिक धर्माध्यक्षीय परिषद ने रेडियो वेरितास एशिया के प्रसारण को जारी रखने की अपनी वचनबद्धता को दोहराया। एफ.ए.बी. सी के सामाजिक संचार विभाग को प्रसारण हेतु आवश्यक धनराशि जुटाने एवं उस सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गर्इ। साथ ही पाँच धर्माध्यक्षों और उनके सचिव ने कार्यक्रम निर्माण तथा प्रसारण की जिम्मेदारी बखूबी निभायी।  
 
अपने सहयोगी मित्रों और परोपकारियों की सहायता से रेडियो वेरितास एशिया अपने चिनिहत क्षेत्रों में गूँजने लगा। उन्हीं दिनों विदेशी प्रसारण के तहत श्रोताओं के सर्वांगीण विकास के लिए 15 भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम तैयार करने के लिए संबंधित देशों में संचार केन्द्र स्थापित किए गये। उन केन्द्रो में कार्यक्रमों के अलावा रेडियो उदघोषकों को भी प्रशिक्षण देकर मनीला भेजने के लिए तैयार किया जाने लगा। रेडियो वेरितास एशिया, मनीला के द्वारा अपने चिनिहत क्षेत्रों में प्रसारण एवं कार्यक्रमों की गुणवत्ता को परख कर नियमित रिपोर्ट भेजने के लिए तकनीकी विशेषज्ञ नियुक्त किए गये। भारत, पाकिस्तान, म्यांमार, तार्इवान आदि देशों से कार्यक्रमों की रिपोर्ट नियमित रूप से भेजी जानी लगी, उन्होंने कहा कि रेडियो प्रसारण के द्वारा लोगों की अपेक्षित आवश्यकताएँ पूरी हो रही है।  
 
दुष्ट लोग दुनिया में अच्छार्इ को पनपते हुए नहीं देख सकते। अत: फिलिपींस की राजनीतिक गतिविधियों ने इस सुनहरी योजना को नष्ट करने की पूरजोर कोशिश की। सन 1986 में सत्तारूढ़ तानाशाही फेरडिनांड मारकोस के विरूद्ध जन-आक्रोश भड़क उठा। लोग सड़कों पर उतर आये जिनका संचालन स्थानीय रेडियो प्रसारण के द्वारा हो रहा था। फिर क्या था, राष्ट्रपति मारकोस ने सभी प्रसारण केन्द्रों पर बमबारी करते हुए उन्हें अपने कब्जे में ले लिया। उसका सीधा असर रेडियो वेरितास एशिया के विदेशी प्रसारणों पर भी पड़ा जो उस के इतिहास अंधकारमय दिन थे।  
  
जर्मनी में कालोन महाधर्मप्रांत के कार्डिनल योसफ होफनर ने रेडियो वेरितास एशिया के पुननिर्माण के लिए अहम भूमिका निभायी। उन्होंने अपने पुरोहिताभिषेक की स्वर्ण जयंती तथा धर्माध्यक्षीय अभिषेक की रजत जयंती पर पुरस्कार में प्राप्त धनराशि से रेडियो प्रसारण के नये ट्रांसमीटर खरीदे। साथ ही अन्य परोपकारियों की सहायता से फिलिपींस में पलाविग नामक स्थान पर प्रसारण केन्द्र की स्थापना की गर्इ जिससे रेडियो वेरितास में नर्इ शकित का संचार हुआ। इस शुभ कार्य के तीन वर्षों बाद रेडियो वेरितास का विदेशी प्रसारण अलग होकर ' रेडियो वेरितास एशिया के नाम से जाना जाने लगा।  
 
 अब विदेशी प्रसारण को पूर्ण स्वायतता प्राप्त हुर्इ जहाँ वह मिलने वाली धनराशि और सहायता का उपयोग अपने प्रसारण में लगा सके। वास्तव में इस समय से रेडियो वेरितास एशिया का प्रसारण एशिया के लोगों के लिए होने लगा। कहना गलत नहीं होगा कि अब सेवाएँ एशिया के लोगों के लिए एशिया के ही लोगों के द्वारा होती है। रेडियो वेरितास एशिया अपने शुरूआती दिनों से अभी तक जीवनदायी और जीवन को सुखमय बनाने वाले कार्यक्रम प्रसारित करता आ रहा है। 'शोर्ट वेव तकनीक का उपयोग करते हुए रेडियो वेरितास एशिया श्रोताओं के सर्वांगीण विकास के लिए 'इंटरनेट की नर्इ क्रान्ति के साथ कदम मिलाते हुए अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है।  
 
अस्सी के दशक में जब फादर जोसफ कयानी एस.वी.डी. फिलिपीन्स में स्नातकोत्तर की पढ़ार्इ कर रहे थे उस समय उन्होंने रेडियो वेरितास एशिया में हिन्दी सेवा को शामिल करने की पहल की। तात्कालीन इन्दौर के धर्माध्यक्ष , जार्ज अनाथिल एस.वी.डी. की अध्यक्षता और सतप्रकाश संचार केन्द्र के निदेशक फादर क्लारेन्स श्रामिबकाल एस.वी.डी. के सहयोग से रेडियो वेरितास एशिया के संबंधित अधिकारियों से अनुबंध किया गया। सन 1988 की 3री जुलार्इ को फादर डामिनिक एम्मानुएल एस.वी.डी. के उदबोधन : ''ये रेडियो वेरितास एशिया का हिन्दी अनुष्ठान सत्यस्वर है के साथ, सात हजार द्वीपों के देश फिलिपींस की राजधानी मनीला से मधुर तरंगे, सात समुंदर पार भारत-भूमि पर पहुँचने लगी। रेडियो श्रोताओं के बौद्धिक, आध्यातिमक तथा सामाजिक मूल्यों को निखारते हुए जीवन में जागरूकता लाने के लिए रोचक और शिक्षाप्रद कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। सत्यस्वर के शैशव काल में फादर डामिनिक का साथ दिया श्री जोस सूल तथा श्रीमती शीशा जोस सूल ने।  
 
समय के साथ प्रस्तोता बदलते रहे। श्री और श्रीमती जोस सूल के बाद सुश्री अलका निर्मल प्रसाद, श्री विंसेंट विक्टर, श्री मोनू जान, सुश्री रबेका राबर्टस ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभार्इ।  
 
 हिन्दी अनुष्ठान सत्यस्वर वसुधैव कुटुम्बकम की विचारधारा पर आधारित अपने कार्यक्रमों द्वारा शानित, एकता और भार्इचारे का संदेश देने के लिए समर्पित है। सन 1992 को 1999 तक फादर दीपक सुल्या एस.वी.डी. ने सुश्री अलका निर्मल प्रसाद, श्री आनंद किशोर, श्रीमती सिनग्धा किशोर तथा सुश्री मरी क्वीन डेविड के सहयोग से अपने श्रोताओं का भरपूर प्यार हासिल किया।  
 
''सत्यस्वर सदा हिन्दी भाषी लो गों के बीच सत्य, न्याय और शानितमय सहअसितत्व का अग्रदूर बना रहेगा। ऐसे ही दृषिट अनुकथन को बरकरार रखने के लिए सन 1999 से 2003 तक फादर नार्बट हेरमन ने श्री आनंद किशोर तथा श्रीमती सिनग्धा किशोर के साथ अपनी प्रतिभाए ँ बिखेरी।  
 
 सन 2003 से 2010 तक फादर जान वाखला एस.वी.डी., श्री बर्नाड भूरिया तथा श्रीमती वंदना भूरिया, श्रीमती सिन्ड्रेला जोसफ तथा सिस्टर मंजू लकड़ा एस.एस.पी.एस. ने सत्यस्वर की तरंगों को रोशन किया। इसी दौरान फादर हेरमन बन्डोड़ एस.वी.डी. ने 2010 में फादर जान वाखला एस.वी.डी के स्थान पर सत्यस्वर के समन्वयक के रूप में अपनी सेवाएँ दी। 
 
संचार क्रांति में आये तकनीकिय बदलाव के कारण 2011 में रेडियो वेरितास एशिया का विकन्द्रीकरण शुरू हुआ। अत: सत्यस्वर का कार्यालय मनीला से सतप्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर स्थानान्तरित हो गया। यहाँ सिस्टर गंगा रावत एस.एस.पी.एस. और फा. जान वाखला एस.वी.डी ने अन्य कलाकारों के साथ फा. हेरमन बन्डोड़ एस.वी.डी. का साथ दिया. मार्च 2012 में रेडियो वेरितास एशिया हेतु कार्यक्रम निर्माण के लिए अलग से रिकार्डिग स्टूडियों तैयार हो गया जिसका उदघाटन एफ.ए.बी.संचार विभाग के अध्यक्ष एवं सत्यस्वर के संरक्षक, इन्दौर के पूजनीय धर्माध्यक्ष, चाकों थोटुमारिकल एस.वी.डी. ने किया। 
 
वर्तमान में सभी कार्यक्रम भारत में ही तैयार किए जाते हैं जिन्हें इंटरनेट के माध्यम से प्रसारण के लिए मनीला भेज दिया जाता हैं। इस कार्य में सतप्रकाशन के निदेशक, फादर जॉन पॉल एस.वी.डी., तथा अन्य प्रतिभाशाली स्थानीय कलाकार सत्यस्वर के समन्वयक, फादर हेरमन बन्डोड़ का साथ दे रहे हैं। 
 
सतप्रकाशन संचार केन्द्र, सत्यस्वर का मुख्य कार्यालय है जहाँ पर 2011 से फा. हेरमन बन्डोड़ के नेतृत्व में कर्मठ कार्यकर्ताओं के द्वारा सत्यस्वर की सभी गतिविधियाँ संचालित की जाती है। साथ ही येसु समाजी संस्था द्वारा संचालित रवि भारती, पटना भी कार्यक्रम तैयार करने में सत्यस्वर के आरंभ से ही सक्रिय सहयोगी रहा है। कुछ समय के लिए नव साधना संचार केन्द्र, वाराणसी ने भी कार्यक्रम तैयार करने में सहायता की। 
 
सत्यस्वर के श्रोताओं से ही कलाकारों को ऊर्जा और प्रेरणा मिलती है। अत: अपने श्रोताओं से रूबरू होने के लिए सत्यस्वर ने 2004 से श्रोता सम्मेलन को नियमित किया जिसमें श्रोताओं ने भरपूर सहयोग दिया हिन्दी भाषी का विस्तृत क्षेत्र होने के बावजूद भी हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर श्रोताओं ने रवि भारती पटना, नवसाधना बनारस और सतप्रकाश संचार केन्द्र, इन्दौर आयोजित श्रोता सम्मेलनों में भाग लिया।   

सत्यस्वर, कलीसिया द्वारा संचालित प्रसारण होने के बावजूद भी कार्यक्रम तैयार करने में सभी धर्मों के कलाकारों का सहयोग बहुत सराहनीय रहा है। उनमें उल्लेखनीय है श्री दुष्यन्त कुमार सिंह, मनीला फिलिपींस से, श्री बिरेन्द्र कुमार, श्री ओम कपूर और रत्नाकर, रवि भारती पटना से, श्री दिलीप बोस, श्री पीटर जमरा (रिकाडिस्ट), श्री मार्इकल हाजेस, श्री दिनेश डावर, (रिकाडिस्ट), स्व. स्वतंत्रकुमार ओझा, स्व. कृष्णाकांत दुबे, श्री सिरिल जमरे (रिकाडिस्ट), श्रीमती रोशन बेंजामिन खान, श्री संतोष जोशी, श्रीमती इंदू संतोष, श्रीमती भवानी कौल, श्री संदीप दुब, श्रीमती अंतरा करवड़े, सुश्री नुपूर दीक्षित, श्री राघवेन्द्र सिंह राघव, सुश्री गीतांजली कश्यप, श्री विजय पंडित, श्रीमती समता खानचंदानी, श्रीमती आस्था उपमन्यु, सुश्री दिव्या सुल्या, श्रीमती अपर्णा सिंह, श्रीमती भावना प्रधान, श्रीमती नलिनी भंडारी, श्रीमती मेरी एक्का, श्रीमती मेरी प्रीति जोजो और श्री दिनेश सोलंकी। संदीप कुजूर (वेबसाइट), दलसिंग डावर (वेबसाइट), करिश्मा बाबु, निशा सुलिया, ज्योति कुजूर, निलेश बखला (वेबसाइट), दीक्षा विपट, परविंदर अरोरा, सृष्टि जाधव, मर्लिन जैकब, ईशान खरपेड़े, बिंदु उपाध्याय, वंदना तिवारी, अर्चना शुक्ला। 

 

हमारे वरिष्ठ कलाकारों में से श्री स्वतंत्रकुमार ओझा, श्री कृष्णकांत दुबे, श्री मार्इकल हाजेस और संदीप कुजूर हमारे बीच नहीं रहे, उन्हें सत्यस्वर परिवार की ओर से सादर नमन।  
 

 
   
सयम की रफ्तार के साथ आर.वी.ऐ. हिन्दी ने अपने प्रसारण के तौर-तरीके को आवश्यकतानुसार अपनी गतिविधियों में समावेश किया है। अब श्रोता 'शार्ट वेव रेडियो के साथ-साथ अन्य आधुनिक उपकरणों, जैसे मोबार्इल फोन तथा इंटरनेट पर भी आर.वी.ऐ. हिन्दी के कार्यक्रम सुन सकते हैं।  
 

 

आर.वी.ऐ. हिन्दी के दृषिट-सृषिट अनुकथन, वसुधैव कुटुम्बकम की विचारधारा पर आधारित अपने कार्यक्रमों द्वारा शानित, एकता और भार्इचारे का संदेश देने का सपना बरकरार रखने के लिए आर.वी.ऐ. हिन्दी परिवार वचनबद्ध है। सभी कलाकारों, श्रोताओं अधिकारियों तथा उपकारियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आर.वी.ऐ. हिन्दी कामना करता है कि इसे भावी दिनों में भी र्इश्वर का मार्गदर्शन मिलता रहे।  
 

 आर.वी.ऐ. हिन्दी का इतिहास

आर.वी.ऐ. हिन्दी के इतिहास की कहानी बड़ी रोचक रही है। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटेंगे, तो आर.वी.ऐ. हिन्दी प्रसारण के आरम्भ की अनोखी बातें पढ़ने को मिलेगी। बात है सत्तरवें दशक की जब एशियाई कलीसिया को प्रभु ईसा के सुसमाचार की घोषणा के लिए एक सशक्त माध्यम की जरूरत थी और यह तलाश रेडियो वेरितास एशिया की स्थापना के साथ समाप्त हुई। औपचारिक रूप से इसका प्रथम प्रसारण 11 अप्रैल 1969 को हुआ। गौरतलब है कि रेडियो वेरितास एशिया के अनुष्ठानों में बंगाली, तमिल और तेलगु भाषाएँ शामिल हुई परन्तु राष्ट्रभाषा हिन्दी का किसी को ख्याल न आया। हो सकता है रेडियो वेरितास एशिया को हिन्दी भाषा की क्षमता का ज्ञान न था। यह भी कहना उचित न होगा कि हिन्दी प्रसारणों की चिंता करने वाला कोई न था। सन् 1967 में ही जब रेडियो वेरितास एशिया की स्थापना की बातें एवं कोशिशें हो रही थी। तब से ही भारतीय भाषाओं के प्रसारणों में हिन्दी का नाम उभरा था।  
 
 
परन्तु तकनीकी समस्या के कारण सन् 1977 तक यह योजना ठण्डे बस्ते में पड़ी रही। जब उत्तर भारत के लिए एन्टिना का प्रबंध हो गया तब वाराणसी के धर्माध्यक्ष, पेट्रिक डिसूजा ने हिन्दी प्रसारण को प्रारंभ करने का प्रयास और सघन कर दिया। नवज्योति निकेतन, पटना को इसका कार्य भारत को संभालना था। इस प्रकार, जून 1978 में हिन्दी प्रसारण आरंभ करने की मंशा थी किन्तु कलाकारों की कमी तथा तकनीकी के अभाव के चलते एक बार पुनः हिन्दी प्रसारण अपनी महक हवाओं में नहीं फैला पाया। एक और प्रयास 1982 में फादर सबेस्तियन कानेकाटिल एस.जे.ने किया जो उस वक्त रवि भारती, पटना के निदेशक थे। नवज्योति निकेतन तथा रवि भारती पटना को मिलकर इस कार्य को अंजाम देना था। रेडियो वेरितास एशिया द्वारा वित्त व्यवस्था न करने के कारण एक बार फिर हिन्दी प्रसारणों को झटका लगा।  
 
 
अस्सी के दशक के अन्तिम वर्षों की बात है, जब फादर जोसफ कयानी एस.वी.डी. मनीला, फिलीपींस मे स्नातकोंत्तर की शिक्षा ले रहे थे तथा उनकी शोध का विषय रेडियो वेरितास एशिया में हिन्दी प्रसारणों की संभावना से संबंधित था। तब अपनी शिक्षा के साथ-साथ वे उन संभावनाओं को मूर्तरूप देने का प्रयास भी करते रहे जिससे करोड़ों हिन्दी भाषियों के सपनों को साकार किया जा सके। इन्दौर धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष, डॉ. जॉर्ज अनाथिल, सत्प्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर एवं दिव्य शब्द संघ मध्य प्रांत के प्रमुख के साझे प्रयासों से रेडियो वेरितास एशिया से हिन्दी प्रसारण का सपना साकार हुआ। कार्यक्रमों के निर्माण के लिए सत् प्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर तथा रवि भारती, पटना ने कमान संभाली।  
 
 
अंततः वही हुआ और तब हुआ जब खुदा को मंजूर था। 3 जुलाई 1988 को ‘ये रेडियो वेरितास एशिया का हिन्दी अनुष्ठान ध्वनि उद्घोषणा की मधुर तरंगें बिखेरता सत्यस्वर, रेडियो वेरितास एशिया का अभिन्न अंग बन गया। सत् प्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर तथा रवि भारती, पटना के संयुक्त प्रयासों से प्रांरभ होकर आज तक अपने उच्चकोटि के कार्यक्रमों के कारण हजारों-लाखों श्रोताओं की धड़कन बना हुआ है। अब एक नजर आर.वी.ऐ. हिन्दी के उन तमाम समन्वयकों तथा कलाकारों पर डाले जिनके अथक परिश्रम ने आर.वी.ऐ. हिन्दी के कार्यक्रमों को उच्च कोटि एवं श्रोताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। जब हिन्दी भाषा में कार्य को किस प्रकार से अंजाम किया जाए तथा कौन-कौन होंगे वो अग्रगामी लोग जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उभरकर सामने आए। इन्दौर धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष बिशप जार्ज अनाथिल एस.वी.डी, डा. फादर क्लारेंस श्राम्बिकल एस.वी.डी. जो सत् प्रकाशन संचार केन्द्र के निदेशक थे, के परामर्श तथा विभिन्न संभावनाओं को विराम देते हुए फादर डामिनिक एम्मानुएल एस.वी.डी. को रेडियो वेरितास एशिया के हिन्दी अनुष्ठान का प्रथम समन्वयक नियुक्त कर मनीला फिलिपींस भेजा गया। 

 
इस प्रकार समन्वयकों एवं उद्घोषकों का मनीला आने जाने का क्रम जारी रहा। उद्घोषकों की कड़ी में सर्वप्रथम जोस पयैपल्ली एवं शीशा जोस तथा उनके पश्चात् अलका निर्मल प्रसाद (जिन्होंने बाइबिल धारावाहिक लिखा), रबेका रॉबर्ट्स एवं विक्टर विंसेंट ने अपनी महत्वपूर्ण सेवाएँ दी।  
 

 फा. डामिनिक, जोस पयैपल्ली, 
 शीशा जोस 

 फा. डामिनिक, रबेका, विक्टर विंसेंट 
 एवं अलका 

 

फा. डामिनिक के पश्चात् समन्वयक का कार्यभार फादर दीपक सुल्या एस.वी.डी. ने सँभाला। 

 

 फादर दीपक, आनंद किशोर और स्निग्धा किशोर 

 

जिस प्रकार एक नन्हा बालक धीरे-धीरे शारीरिक रूप से परिपक्व होता जाता है उसी प्रकार सत्यस्वर भी प्रगति के कदम एक के बाद एक भरता चला गया। फादर दीपक के सहकर्मी रहे अलका, रबेका, आनंद किशोर, मेरी डेविड और स्निग्धा किशोर जिन्होंने सफर सुहाना कार्यक्रम का निर्माण किया। संगीत प्रेमी फादर नोर्बट हेरमन एस.वी.डी. अगले समन्वयक बने । 

 

श्रोता क्लबों के साथ-साथ अब श्रोता सम्मेलनों की पहल भी प्रारंभ हो गई थी। फादर नोर्बट का साथ आनंद किशोर एवं स्निग्धा अब भी दे रहे थे। समय चक्र के घूमते एवं बदलते परिवेश में कार्यक्रमों में जान फूँकने के लिहाज से नए सिरे से उनका रजिस्ट्रेशन किया गया तथा श्रोताओं से रूबरू होने की मंशा से श्रोता-सम्मेलन नियमित किया गया। आनंद किशोर एवं स्निग्धा किशोर ने फादर जॉन वाखला का भरपूर सहयोग दिया। 
 

 आनंद किशोर स्निग्धा किशोर एवं 
 फादर जॉन वाखला 

 बर्नाड भूरिया सिन्ड्रेला जोसफ एवं 
 फादर जॉन वाखला 

 

उनके बर्नाड भूरिया और सिन्ड्रेला जोसफ उद्घोषक के रूप में 2006 में मनीला पहुंचे और अपने श्रोताओं का मनमोह लिया। बर्नाड भूरिया की पत्नि वंदना ने अपना प्रशिक्षण पूरा कर 2008 में सिन्ड्रेला जोसफ का स्थान लिया। 

 सि. मंजू एस.एस.पी.एस. 

 फादर जॉन वाखला, समन्वयक 

 

2010 में सि. मंजू एस.एस.पी.एस. ने उद्घोषक के रूप में बर्नाड भूरिया और वंदना भूरिया का स्थान लिया। इन सभी उद्घोषकों ने अपनी नविनताओं एवं क्रियाशीलताओं के द्वारा कार्यक्रमों की रोचकता बढ़ाई।  

इसी बीच फा. हेरमन बन्डोड़ एस.वी.डी. को जो सत् प्रकाशन संचार केन्द्र में 2003 से 2008 तक सत्यस्वर के समन्वयक थे, जनसंचार की पढ़ाई के लिए फिलीपींस भेजा गया। अपनी पढ़ाई की समाप्ति पर उन्होंने वही मनीला में समन्वयक के रूप 2010 में फादर जॉन वाखला का स्थान लिया। 
 

 फा. हेरमन बन्डोड़, 
 एस वी.डी. समन्वयक 

 फादर जॉन वाखला, समन्वयक 

 

संचार क्रांति में आये तकनीकी बदलाव और कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ने हेतु 2011 में रेडियो वेरितास एशिया का विकेन्द्रीकरण प्रारंभ हुआ। रेडियो वेरितास एशिया की हिन्दी सेवा का कार्यालय मनीला से सत् प्रकाशन संचार केन्द्र, इन्दौर में दिसम्बर 2011 में स्थानान्तरित किया गया और मार्च 2012 तक आर.वी.ऐ. हिन्दी के लिए एक अलग रिकाडिंग स्टूडियों बनकर तैयार हो गया जिसका उद्घाटन महामहिम धर्माध्यक्ष, चाको थोटुमारिकल द्वारा किया गया। 

 धर्माध्यक्ष, चाको थोटुमारिकल 

 

अब सभी कार्यक्रम भारत में ही तैयार किए जाते हैं और उनका प्रसारण पहले जैसे होता है। 2012 से 2014 तक सत्यस्वर के समन्वयक, फा. हेरमन बंडोड का साथ फा. जान वाखला, सि. गंगा रावत एस.एस.पी.एस. और अन्य प्रतिभाशाली कलाकारों ने दिया। 
   

 

वर्तमान में सभी कार्यक्रम भारत में ही तैयार किए जाते हैं जिन्हें इंटरनेट के माध्यम से प्रसारण के लिए मनीला भेज दिया जाता हैं। इस कार्य में सत् प्रकाशन के निदेशक, फादर जॉन पाल, तथा अन्य प्रतिभाशाली स्थानीय कलाकार आर.वी.ऐ. हिन्दी के समन्वयक, फादर हेरमन बन्डोड़ का साथ दे रहे हैं। 

 

सन 2013 में आर.वी.ऐ. हिन्दी की वेबसाइट बनकर तैयार हो गयी और इसमें कार्यक्रम अपलोड करने के कार्य संदीप कुजूर को सौपा गया लेकिन दुर्भाग्यवश एक वर्ष के भितर उनका स्वर्गवास हो गया। सन 2014 में दलसिंग डावर ने उनका स्थान लेते हुए आर.वी.ऐ. हिन्दी की वेबसाइट को निखारा। सन 2015 में निलेश बखला ने उनका स्थान लिया और तब से वे वेबसाइट पर कार्यक्रमों के साथ अन्य लेख और समाचार अपलोड करते है। इसी दौरान 2015 में आर.वी.ऐ. हिन्दी ने एक नयी पहल शुरू की ताकि श्रोता आर.वी.ऐ. हिन्दी के कार्यक्रम 24 घंटे वेबसाइट और मोबाइल फ़ोन पर सुन सके। शुरू में इसका कार्यभार करिश्मा बाबु ने उठाया। अब 24 घंटे प्रसारण के लिए कार्यक्रमों को सूचिबंध करने का कार्य निशा सुल्या कर रही है।  
 

निदेशक:    

 डॉ. फा. जॉन पॉल  एस वी.डी. (निदेशक) 

 

समन्वयक: 
  

 फा. अन्थोनी स्वामी  एस वी.डी. (समन्वयक) 

 

कार्यरत कर्मचारी: 

 आकाश जांगरा 
 चार्ल्स सिंगोरिया 
 प्रियंका डामोर