सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
5: 20-26
(20) मैं तुम लोगों से कहता हूँ - यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
5: 20-26
(20) मैं तुम लोगों से कहता हूँ - यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
5: 17-19
(17) "यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
5: 13-16
(13) "तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फीका पड़ जाये, तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है।
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
5: 1-12
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
3: 16-18
16) ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।
सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
12: 38-44
38) ईसा ने शिक्षा देते समय कहा, "शास्त्रियों से सावधान रहो। लम्बे लबादे पहन कर टहलने जाना, बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना,
सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
12: 35-37
35) ईसा ने, मन्दिर में शिक्षा देते समय, यह प्रश्न उठाया, “शास्त्री लोग कैसे कह सकते हैं कि मसीह दाऊद के पुत्र हैं?
सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
21: 28-34
28) तब एक शास्त्री ईसा के पास आया। उसने यह विवाद सुना था और यह देख कर कि ईसा ने सदूकियों को ठीक उत्तर दिया था, उन से पूछा, “सबसे पहली आज्ञा कौन सी है?“
सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
21: 18-27
18) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि पुनरुत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,
13) उन्होंने ईसा के पास कुछ फरीसियों और हेरोदियों को भेजा, जिससे वे उन्हें उनकी अपनी बात के फन्दे में फँसाये।