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परिवार, समाज और शिक्षा से हटा दें – शॉर्टकट
परिवार में किसी बच्चे का नामकरण राम, कृष्ण, रहमान, सीता, लक्ष्मी, दुर्गा, ईशु, मरियम, आदि करने का मुख्य उद्देश्य रहा है कि उस उच्चारण के कारण वातावरण में एक सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता रहे। व्यक्तियों में मानवीय गुणों का संचार और प्रसार हो। जब भी हम किसी ऐसे शब्द का उच्चारण करते है तो चाहे क्षणिक, किन्तु उसके सद्गुणों की ओर हमारा ध्यान जाता है और ऐसे कई अनजाने क्षण हमारे आत्मबल को बढाने का काम करते है। आज कही लिखा हुआ पढ़ा – “ब्राउस” खोजा तो जाना यह बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का शोर्ट नाम है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय को यदि हम BRAUSS नाम से पुकारते है तो यह हमारी सोच का एक विकृत स्वरुप होगा।
यदि संक्षिप्त में हम इसे अम्बेडकर वि.वि. कहे तो भी बाबा साहेब का व्यक्तित्व हमारे समक्ष होगा। यह “ब्राउस” केवल लिखने तक ही सिमित रहे तो चलेगा, किन्तु यह शब्द बोलचाल में शामिल हो गया तो निश्चित है कि आने वाली पीढ़ी इससे को भ्रमित होने में समय नहीं लगेगा। जड़ से शिक्षक हूँ, इसलिए ऐसी बातें सोचती और करती हूँ। एक बार विद्यार्थियों से मैंने प्रश्न कर लिया था – शहर में R.N.T. मार्ग है, M.G. रोड है इसका क्या अर्थ है ? उत्तर मिलने में समय लगा और उत्तर भी अफ़सोस जनक थे। कारण समझ में आते है कि नई पीढ़ी के आदर्श – रविंद्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी या विवेकानंद न होकर, जो उनके सामने पेश किए जा रहे है वे ऊल-जुलूल कार्टून, सिंगर, अभिनेता या ऐसे ही कोई पात्र होंगे।
कुछ ऐसा समझ में आता है कि ज्यादातर नई पीढ़ी के लिए व्यक्ति, वस्तु या स्थितियाँ बहुत जल्दी पुरानी हो जाती है।जब तक यह अप्राप्त हो तब तक ये उसके लिए समर्पित भाव रखते है और प्राप्त होने के बाद उसकी अहमियत कम होते देर नहीं लगती।इसमें परिवार, समाज और शिक्षा नीति में कहां और क्या खामियां है, यह विचार करना जरुरी है। दस साल के पोते ने कहा - मेम ने अपने "हीरो" पर कुछ लिखकर लाने को कहा है। मैंने बड़े-जोश में उसे "My Hero is Mahatma Gandhi" पर कुछ विचार लिखाकर अपने को धन्य माना। दूसरे दिन शाम को जब बच्चा स्कूल से लौटा तो उदास था। पूछने पर उसने बताया कि आपने जो लिखवाया सब गलत है।मैंने हैरान होकर पूछा - कैसे ? बच्चे ने कहा की - मेम ने बोला कि हीरो याने - इस्पायडर मेन, बैटमैन, ....., .... होते है।मैं धर्म संकट में थी। बच्चे से कह नहीं सकती थी कि आपकी मेम गलत हैं और न ये साबित कर सकती थी कि मैं सही हूँ। उम्र, अनुभव और तालीम का अंतर था लेकिन - आज की स्थिति में हम दोनों ही शिक्षक थे, अपनी-अपनी जगह।
सन 1973 में पढ़ी और सीखी हुई गणित की विधि से यदि मैं सवाल हल कर देती हूँ और उत्तर भी सही आ जाता है तो भी उसे स्वीकार नहीं किया जाता क्योंकि - ये मेथड अब नहीं चलता है, यह जवाब रहता है कि अब - शॉर्टकट ढूंढ लिए गए है। फिर प्रश्न यह उठता है कि हम अभी तक "न्युटंस लॉ ऑफ़ ग्रेविटी" को क्यों नहीं बदल पाए?
बात यही है कि नीति और नियम, शिक्षा और संस्कार को हम कई बार ताख में रखकर उस शॉर्टकट को अपना लेते हैं जो हमारे हिसाब से हमारे लिए सुविधाजनक हो, सरल हो और जिससे "आज" का काम चल जाए। आज का काम तो चल जाएगा लेकिन भविष्य में इसकी क्या दशा होगी? जबकि शिक्षा और संस्कार जीवन के ऐसे महत्वपूर्ण अंग हैं जो व्यक्तियों परिवार और समाज का भविष्य बनाते है। जानने की बात यह है की जो शिक्षा और संस्कार आज दिये जाएंगे वे जीवन में स्वभाव और आदत बनकर स्थाई होते चले जाएंगे।
महात्मा गाँधी के अनुसार शिक्षा के अर्थ का सार यही है कि - जो ज्ञान व्यक्ति में सभ्यता और संस्कारों को जीवित रख सके जिस ज्ञान से बुद्धि - शुद्ध, शांत और न्यायदर्शी हो। जिस ज्ञान से व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को अपने बस में कर सके, सही मायने में शिक्षा का अर्थ और शिक्षित होने की सार्थकता है।
विचारनीय यही है कि जो शॉर्टकट हमें आज सरल और सुविधाजनक लग रहे है, क्या वो भविष्य में इस ज्ञान और संस्कार को जीवित रख सकेंगे जो वास्तविक और सच है। ईश्वर, सच्चा महात्मा और समर्पित नेता का नाम, सिर्फ नाम नहीं बल्कि एक संस्कार होता है, मानवीय शिक्षा का आधार होता है इसका सिमरन, मनन बार-बार और लगातार होना चाहिए।
शॉर्टकट के कारण ही आज परिवार टूट रहे है और समाज बिखर रहे है। संबंधो और उत्तर्दायितों के निर्वाह में व्यक्ति सुगम रास्ता ढूंढता है। हमारी सुगमता दूसरे के लिए भी सहज है या नहीं ? सभ्यता के नाते यह विचार जरुरी है। संस्कारी व्यक्ति में यह विचार होता है और उसका यह गुण उच्च-शिक्षित के तुल्य है। आपसी प्रत्यक्ष संवाद संबंधों में मधुरता लाते है और यहाँ भ्रांतियों (ग़लतफ़हमी) और त्रुटियों में सुधार की संभावना भी रहती है। संवाद के लिए हमेशा तकनीकी साधनों का उपयोग (शॉर्टकट) कई मानो में घातक भी सिद्ध हुआ है। महात्मा गांधी का कथन था - "मैं यंत्रों (तकनीकी विकास और मशीने) के उपयोग का विरोधी नहीं हूँ किन्तु इसका उपयोग हम ऐसा न करे कि यंत्रों के गुलाम हो जाए। ये स्थिति मनुष्यों को निठल्ला और अस्वस्थ बना देगी। मशीनों की हवा यदि अधिक चली तो इससे हिन्दुस्तान की बुरी दशा होगी। बापू ने सन् १९०९ में ये विचार रखे थे।आज परिवार और समाज में अपराध और आपराधिक प्रवृत्तियों का कारण तकनीक की गुलामी और तकनीक का दुरूपयोग ही तो है। बात गहन है, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवशयकता है।
बापू के द्वारा 110 वर्ष पहले दी गई संभावनाओं का यदि हम आज आकलन करे तो निश्चित ही शिक्षा के क्षेत्र में अनगिनत विषयों का अध्यापन नवीन तकनीकियों से करवाया जा रहा है। संसाधनों की आपूर्ति का विकास आसमान को छू रहा है किन्तु पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में दूरियां उसी अनुपात में बढ़ी है। सभ्यता, संस्कार और इनकी शिक्षा उतनी ही गहराई में समाई है और इसे आधुनिकता का नाम दिया गया है। अधिकतर तथा कथित व्यस्त बच्चे माता-पिता की उम्र होने के पहले ही वृद्धाश्रम खोज लेते है किन्तु मदर्स दे और फादर्स दे पर सुन्दर चित्र, दृश्य और मेसेज अन्य लोगों से व्हाटअप्प पर शेयर करना नहीं भूलते। यह प्रभावकारी व्यवहार है, आधुनिकता है। व्यस्तता की सभ्यता है, भौतिकवादी शिक्षा है। ये हैं सोच विचार और संस्कार के शॉर्टकट।
एक मानवीय जीवन जीने के लिए पूर्णता की आवश्यकता होती है। यह पूर्णता परिवार और समाज में ओपचारिक और अनोपचारिक शिक्षा की, सभ्यता की, संस्कारों की l जीवन के लक्ष्य यदि पसीना बहाकर मिले तो उनका आनंद कई गुना बढ़ जाता है। शॉर्टकट घातक होकर लक्ष्य की महत्ता को घटा देते है। जमीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति हमेशा लम्बे रास्तों से चलना पसंद करता है। इससे परिचय, संवाद और संबंध बनते है। अपनापन और आत्मीयता बढ़ती है। अनजाने ही मानवीय मूल्यों का आदान-प्रदान हो जाता है। यही तो है जीवन की पूर्णता।
परिवार, समाज और शिक्षा से यदि हम शॉर्टकट को हटाकर देखे तो ये कितने सुखद और सार्थक है।
सन्दर्भ -
गांधी जी - हिन्द स्वराज
गांधी जी - मेरे सपनों का भारत
मशरूवाला कि.घ. - गांधी विचार दोहन
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