क्यों???

यहाँ मैं कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ लेकिन समझ नहीं आता कि कैसे कहूँ? हर पल मुझे कुछ याद दिलाता है। हर पल मुझसे कुछ कहता है, लेकिन समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों है? टीनएज (किशोर अवस्था) में शायद ऐसा ही होता है। मन एकाग्र नहीं होता, हमेशा भागता ही रहता है। हम खुद नहीं जानते कि हमें क्या चाहिए। कई प्रकार की आंतरिक एवं बाह्य चीजों एवं परिवर्तनों से लगातार संघर्ष करती रही हूँ। मगर उम्र के इस नाजुक मोड़ पर कोई हमें प्यार से समझाने वाला भी नहीं होता। कशमकश भरे इस सफर में कोई हमारा साथी नहीं होता। कहने को तो हमारे आस- पास समाज में कई सारे लोग हैं, लेकिन इनमें से कौन हमारा है! 
हमें बचपन से सिखाया जाता है कि हम सब बराबर हैं, हम सब आपस में भाई- बहन हैं। यहाँ तक ही हमें अधिकारों के बारे में भी बताया जाता है, लेकिन उसको उपयोग करने की अनुमति हमें नहीं दी जाती है। कहते हैं कि यह सब कुछ हमारे लिए है, लेकिन समझ नहीं आता कि क्या यह सच है? क्या यह सचमुच हमारे ही लिए है? 
हमें मर्यादा, शालीनता, संस्कार, रीति- रिवाज, तौर- तरीके और समाज के नाम पर एक खोखली जंजीर से बांध दिया जाता है और एक दायरा निर्धारित कर दिया जाता है। बताया जाता है यही हमारी जिन्दगी है और इसी में हमें जीना है। और यहीं से हमारे सपने टूटते चले जाते हैं। दूसरों की जरूरतों को पूरा करने, एवं उनके सपनों को पूरा करने के लिए हम अपने सपनों को तोड़ देते हैं लेकिन यह समझ में नहीं आता कि क्या हमारे सपने कुछ नहीं? 
कोई यह क्यों नहीं समझता कि हम अपने आप खुद कुछ करना चाहते हैं। अपने सपनों को स्वयं पूरा करना चाहते हैं। मगर, हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारी जिन्दगी तक हमारी नहीं है। हमें तो हमारी जिन्दगी में खुद निर्णय लेने का हक भी नहीं है। उनके द्वारा निर्धारित किए गए रास्तों पर चलते हैं। यहाँ तक की हम अन्य लोगों की खुशी के लिए अपनी खुशी तक कुर्बान करते चले जाते हैं। हम चाहते हैं कि कोई भी हमारी वजह से अकेला एवं उदास नहीं होना चाहिए और हम दूसरों की इच्छानुसार खुद को बदल देते हैं। 
क्यों हम उन्हें रोकते नहीं, जब वे हमें दुःख पहुंचाते हैं? क्यों वे बिना किसी कारण हम पर गुस्सा हो जाते हैं? शायद गलती हमारी ही है- कि हम ही अपनी भावनाओं को इतना शक्तिशाली बना देते हैं कि लोग इसे हमारी कमजोरी समझने लगते हैं। हम चाहे कितना भी अच्छा क्यों ना करें, खुद को कितना भी परिवर्तित कर दें, मगर क्यों कोई हमें समझता नहीं है? क्यों हमारी अच्छाईयों से पहले हमारी बुराईयाँ गिनी जाती है? कोई हमारी प्रशंसा नहीं करता, जब हम कुछ अच्छा करते हैं ? क्यों हमें हर समय समस्याओं का सामना करना पड़ता है? जो निर्णय हमें लेने चाहिए, वह निर्णय कोई और लेते हैं। क्यों कोई यह नहीं सोचता कि यह हमारी जिन्दगी है, हम हमारी जिन्दगी अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं। यह समझ नहीं आता कि क्या हम कुछ भी नहीं हैं? 
हर काम में हमें ही गलत बताया जाता है। अपने फैसले हम से बिना पूछे हम पर थोपते चले जाते हैं। कई तो इस प्रतीक्षा में हैं कि हम जरा- सी गलती करें और वह हमारी सारी बुराई लाकर हमें परोस दें। इससे हर समय हमारे सपने टुकड़ों में टूटते चले जाते हैं। इसके पीछे यह कारण हो सकता है कि वे लोग, जिन पर हम आँख बन्द कर के भरोसा करते हैं, हमारे रिश्तेदार, मित्र, परिवार, और वह जिनको छोटी- सी - छोटी बात को बताते हैं। क्यों कोई यह नहीं सोचता कि हम उन पर खुद से भी ज्यादा भरोसा/ विश्वास करते हैं। जब यह विश्वास टूटेगा, तो हम कभी किसी पर भरोसा नहीं कर पायेंगे!

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