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अफगानिस्तान के लिए प्रार्थना करें।
अफगानिस्तान के प्रमुख शहरों पर कब्जा करने के बाद तालिबानी अब राजधानी काबुल से कुछ ही किलोमीटर दूर हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सरकार संग शांति वार्ता के अनुरोध को सकारात्मक जबाव नहीं मिला है। एक बरनाबाइट प्रेरित, जो अफगानिस्तान में मिसियो सुई यूरीस हेतु कार्यरत हैं, शांति और देश के सभी लोगों के लिए प्रार्थना करने की अपील की है। “आप अफगानिस्तान के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रार्थना करें”, उक्त बातें पुरोहित जोवान्नी स्कालेस ने वाटिकन रेडियो के श्रोतागणों से अपील करते हुए कही।
अफगानिस्तान की राजधानी और संस्थागत शक्ति का केंद्र काबुल, तालिबान बलों की कठोर प्रगति का सामना कर रहा है जो 1996 से 2001 तक देश पर पहले से ही शासन करने के बाद किसी भी समय सत्ता में वापस आ सकते हैं। 1979 में सोवियत आक्रमण के बाद से, अफगानिस्तान हिंसा और युद्ध का शिकार हुआ। अब देश एक बार फिर सशस्त्र संघर्ष, जबरन निर्वासन और भूख से उत्पन्न पीड़ा की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
एशियाई देश में काथलिक उपस्थिति को पेशकश करने वाले मिसियो सुई यूरिस के प्रमुख बरनाबाइट प्रेरित, पुरोहित जोवान्नी स्कालेसे के कहा कि देश में नागरिकों का जन जीवन कठिन हो गया है। उन्होंने सभों से अपील करते हुए कहा कि हम सभी प्रार्थना करें कि ईश्वर अफगानिस्तान की मदद करें जिससे वहाँ के लोग घोर दुःखों से बचे रह सकें तथा देश में शांति कायम हो सकें। “घटनाओं को लेकर हम बड़ी आशंका में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वाटिकन रेडियो के सभी श्रोताओं से मैं आग्रह करता हूँ कि आप अफगानिस्तान के लिए ईश्वर से सिर्फ और सिर्फ प्रार्थना करें।”
मानवीय त्रासदी की चिंता
संयुक्त राष्ट्र महासचिव, अंतोनियो गुटेरेस ने अफगानिस्तान में अक्रमण को रोकने के लिए कहा है, जो नागरिक आबादी पर भारी मानवीय त्रासदी उत्पन्न कर रहा है। 250,000 की संख्या में लोग पहले की अपने घरों को छोड़ने हेतु मजबूर हो चुके हैं जिसमें 80% महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। उन्होंने देश में शांति वार्ता हेतु अपील की है जिसका कोई सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला है। महासचिव ने महिलाओं पर हो रहे शोषण के खबरों पर अपनी गहरी चिंता और खेद जताई है।
हिंसा से भाग रहे अफगानों को बचाने के लिए कई लोग मानवीय गलियारों की स्थापना की मांग कर रहे हैं। गुटेरेस ने कहा, “मानवीय और स्वास्थ्य की स्थिति हर घंटे के हिसाब से गंभीर होती जा रही हैं, शहरी क्षेत्रों में संघर्ष निरंतर नरसंहार को उत्पन्न करते हैं, “जन सामान्य लोग इस हिंसा का भारी कीमत चुका रहे हैं।”
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