बुजुर्ग होना ईश्वर का उपहार है

जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी ने चल रहे कोविड -19 महामारी के बीच बुजुर्गों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए एक दस्तावेज प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है, “बुढ़ापा: हमारा भविष्य, महामारी के बाद का बुजुर्ग"

“बुढ़ापा: हमारा भविष्य, महामारी के बाद का बुजुर्ग” शीर्षक दस्तावेज को जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी और समग्र मानव विकास हेतु बनी परमधर्मपीठीय विभाग ने मंगलवार को प्रकाशित किया। दस्तावेज़ में कोविड -19 के प्रसार की वजह से होने वाली त्रासदी से हमारे समाजों के निकट भविष्य के परिणामों के बारे में बताया गया है।

दस्तावेज़ में कहा गया है कि महामारी ने "दो तरफ जागरूकता प्रस्तुत किया है, एक ओर सभी की अन्योन्याश्रयता और दूसरी ओर असमानताओं पर अधिक ध्यान दिया। हम सभी एक ही तूफान में हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि हम अलग-अलग नावों पर हैं और हर दिन तूफान का मुकाबला न करने वाली नावें समुद्र में डूब रही हैं। पूरे ग्रह के विकास मॉडल पर पुनर्विचार करना आवश्यक है।“

यह 30 मार्च 2020 (महामारी और सार्वभौमिक भाईचारे) के नोट के साथ पहले से शुरू किए गए चिंतन को उठाता है, 22 जुलाई 2020 (महामारी के युग में मानव समुदाय: जीवन के पुनर्जन्म पर असामयिक ध्यान) और समग्र मानव विकास विभाग के 28 दिसंबर 2020 के दस्तावेज (सभी के लिए वैक्सीन और अधिक न्यायपूर्ण और स्वस्थ दुनिया के लिए वैक्सीन) का संयुक्त दस्तावेज़ है।

लक्ष्य "कोविड -19 द्वारा बदल दी गई दुनिया के लिए कलीसिया के मार्ग का प्रस्ताव देना जिससे कि पुरुष और महिलाएँ अपने जीवन के लिए आशा और जीवन के अर्थ की तलाश कर सकें।"

कोविड -19 और बुजुर्ग:- महामारी की पहली लहर के दौरान, कोविद -19 से मौतों का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्गों के लिए बने संस्थानों में हुआ, वे स्थान जो "समाज के सबसे नाजुक लोगों" की रक्षा करने वाले थे और वहाँ घर या पारिवारिक वातावरण से कहीं ज्यादा  मौत हुई। 2050 तक, दो अरब लोग 60 वर्ष से अधिक आयु के होंगे।

दस्तावेज़ में कहा गया है कि एक सांख्यिकीय-समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, पुरुषों और महिलाओं में आम तौर पर एक लंबी जीवन प्रत्याशा होती है, एक प्रमुख जनसांख्यिकीय परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है जो एक प्रमुख "सांस्कृतिक, मानवशास्त्रीय और आर्थिक चुनौती" का प्रतिनिधित्व करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2050 में दुनिया में 60 से अधिक दो अरब लोग होंगे: पांच में से एक व्यक्ति बुजुर्ग होगा। इसलिए यह आवश्यक है कि "हमारे शहरों को वृद्धों के लिए समावेशी और स्वागत योग्य स्थान बनाया जाए।"

बुजुर्ग होना, ईश्वर का एक उपहार:- हमारे समाज में, बुढ़ापे को दुखी उम्र के रूप में अक्सर देखा जाता है, बुजुर्ग लोगों को अक्सर चिकित्सा देखभाल के लिए अत्यधिक खर्च कराने वाले, कमजोर और देखभाल कराने वालों के रूप में समझा जाता है। "बुजुर्ग होना ईश्वर की ओर से एक उपहार है और एक विशाल संसाधन है, देखभाल के साथ सुरक्षित रखने की एक उपलब्धि, यहां तक कि जब बीमारी अक्षम हो जाती है और एकीकृत, उच्च-गुणवत्ता वाले देखभाल की आवश्यकता होती है। और यह निर्विवाद है कि महामारी ने हम सभी में यह जागरूकता बढ़ाई है कि हमारे वर्षों की समृद्धि मूल्यवान है और उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए।”

समाज के  कमजोर बुजुर्गों के लिए नया मॉडल:- जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी विशेष रूप से सबसे नाजुक व्यक्ति के लिए एक नया मॉडल इंगित करता है। "इस सिद्धांत का कार्यान्वयन विभिन्न स्तरों पर संरचित हस्तक्षेप करता है, किसी के घर और उपयुक्त बाहरी सेवाओं के बीच निरंतर देखभाल स्थापित करने की व्यवस्था हो। "नर्सिंग होम को एक सामाजिक-स्वास्थ्य 'निरंतरता' में पुनर्विकास किया जाना चाहिए, अर्थात, बुजुर्गों के घरों में सीधे उनकी कुछ सेवाओं की पेशकश करें: घर पर ही बुजुर्ग की स्वास्थय देखभाल और आवश्यकताओं के आधार पर सहायता प्रतिक्रियाएँ उपल्ब्ध कराना। जहाँ एकीकृत सामाजिक और स्वास्थ्य देखभाल और घर की देखभाल सेवाएँ एक नए और आधुनिक प्रतिमान की धुरी बने। "

साथ ही, "एकजुटता के एक व्यापक नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाना चाहिए, यह जरूरी नहीं कि रक्त संबंधों के आधार पर, लेकिन सभी की जरूरतों के जवाब आत्मीयता, मित्रता, सामान्य भावना, पारस्परिक उदारता के साथ दिया जाए।"

पीढ़ियों के बीच मिलन: - पोप फ्राँसिस ने बार-बार युवाओं से अपने दादा-दादी के करीब रहने का आग्रह किया है। दस्तावेज कहता है कि “बुजुर्ग अंत के पास नहीं पहुंच रहा है, लेकिन यह अनंत काल का रहस्य है ; इसे समझने के लिए उसे ईश्वर के करीब जाने और उसके साथ रिश्ते में रहने की जरूरत है। बुजुर्गों की आध्यात्मिकता का ख्याल रखते हुए, मसीह के साथ आत्मीयता की उनकी आवश्यकता और विश्वास को साझा करना कलीसिया का उदार कार्य है।”

दस्तावेज़ में आगे बताया गया है कि केवल बुजुर्गों के कारण ही युवा अपनी जड़ों को फिर से खोज सकते हैं और युवाओं के कारण ही बुजुर्ग सपने देखने की अपनी क्षमता को पुनर्प्राप्त कर सकते हैं।

कमजोरी के रुप में मजिस्टेरियम:- दस्तावेज़ नोट करता है कि हमें उस अनमोल गवाह को समझना चाहिए जो बुजुर्ग अपनी कमजोर अवस्था के साथ "मजिस्टेरियमʺ यानी एक ʺवास्तविक शिक्षाʺ का वहन करते हैं।

"वृद्धावस्था को भी इस आध्यात्मिक ढांचे में समझा जाना चाहिए कि यह ईश्वर के हाथों अपने आप को अर्पित करने का आदर्श उम्र है। जैसे-जैसे शरीर कमजोर होता है, जीवन शक्ति, याददाश्त और दिमाग मंद होता जाता है, इंसान की ईश्वर पर निर्भरता बढ़ती जाती है।

सांस्कृतिक मोड़:- अंत में, दस्तावेज़ "पूरे सभ्य समाज, कलीसिया और विभिन्न धार्मिक परंपराओं, संस्कृति की दुनिया, स्कूल, स्वयंसेवा, व्यवसायिक वर्गों और मनोरंजन, शास्त्रीय एवं आधुनिक सामाजिक संचार की अपील करता है कि वे " नए और लक्षित उपायों पर अपना सुझाव दें और उनका समर्थन करें "जो बुजुर्गों के लिए उन घरों में रहना संभव बनाते हैं जिन्हें वे जानते हैं और किसी भी मामले में परिचित वातावरण जो अस्पताल के बजाय, घर की तरह दिखते हैं।"
दस्तावेज़ जोर देता है कि इस सांस्कृतिक परिवर्तन को लागू किया जाए।

Add new comment

1 + 16 =