हिरासत में पूछताछ की रिकॉर्डिंग के आदेश का स्वागत।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है वह सभी संदिग्धों की गिरफ्तारी और अपराध के संदिग्धों से पूछताछ की डिजिटल रिकॉर्डिंग करे। मानवाधिकारों की सुरक्षा की दिशा में इसे एक कदम निरूपित कर ख्रीस्तीय संगठनों ने कोर्ट के इस निर्देश का स्वागत किया है।

हिरासत में मौतें :- इस वर्ष जून माह में यातनाओं और उत्पीड़न पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत में हिरासत में पूछताछ के दौरान 1,731 लोगों की मौत की सूचना दी गई थी, इसका अर्थ हुआ प्रतिदिन पाँच लोगों की मौत हुई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मरनेवालों में सर्वाधिक दलित एवं निर्धन व्यक्ति शामिल थे जिन्हें छोटे-मोटे अपराधों के लिये गिरफ्तार किया गया था।

2 दिसंबर को अदालत ने संघीय और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे भारत भर में नागरिकों को गिरफ्तार करने की शक्ति रखने वाली सभी जांच एजेंसियों के कार्यालयों में कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण स्थापित करें जिससे लोगों के अधिकारों का अतिक्रमण न हो।

निर्देश का स्वागत :- तमिलनाडु उच्च न्यायालय में वकालात करने वाले येसु धर्मसमाजी पुरोहित फादर सहाया फिलोमेन राज ने कहा, "यह एक आदेश है जो मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है।"

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुए यह भी कहा कि नागरिकों को जांच एजेंसी से कथित उल्लंघनों की रिकॉर्डिंग मांगने का अधिकार है और वह किसी भी उल्लंघन के खिलाफ अदालत का रुख कर सकते हैं। राज्य एवं संघीय सरकारों से यह भी मांग की गई है कि वे छः सप्ताहों के भीतर उक्त निर्देश को कार्यरूप प्रदान करें।

नागरिकों को सशक्त करने की पहल :- 03 दिसम्बर को फादर फिलोमेन राज ने ऊका न्यूज़ से कहा, "अदालत ने पीड़ितों के उल्लंघन की रिकॉर्डिंग करने की तथा निवारण के लिए उपयुक्त मंच पर जाने की अनुमति देकर वास्तव में नागरिकों को सशक्त बनाया है।"

इसी बीच, असम ख्रीस्तीय मंच के अध्यक्ष एलेन ब्रूक्स ने भी अदालत के निर्देश का स्वागत किया है किन्तु कहा है कि, "अदालत सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन एजेंसियाँ इस इरादे को वास्तविकता प्रदान करने के लिये कितना आगे बढ़ेंगी यह एक बड़ी चिंता है।"

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