ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा की 13वीं वर्षगांठ पर अधिकार पुरस्कार। 

भारत के ख्रीस्तीय 25 अगस्त को कंधमाल दिवस मनाते हैं जब ओडिशा में 2008 को ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा भड़क उठी थी। भारत के राष्ट्रीय एकात्मता मंच (एनएसएफ) ने 25 अगस्त को कंधमाल दिवस के अवसर पर, भारत के ख्रीस्तीयों के खिलाफ 13 साल पहले हुए हिंसक आक्रमण से पीड़ित लोगों की मदद करनेवाले कार्यकर्ताओं एवं दलों को कंधमाल मानव अधिकार पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की है।
कंधमाल के आदिवासी एवं दलित ख्रीस्तियों के खिलाफ हिंसा के शिकार एवं उससे बचे लोगों के सम्मान में ओडिशा एवं कर्नाटक राज्यों में दो वार्षिक पुरस्कार स्थापित किये गये हैं। पुरस्कार में कुछ राशि एवं स्मारिका प्रदान की जाएंगी। एनएसएफ के संयोजक डॉ. राम पुण्यानी ने कहा, "गैर-सरकारी संगठनों और समूहों के लिए पुरस्कार मानव अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता, विकास, सद्भाव और शांति निर्माण के मुद्दों पर लंबे और निरंतर कार्य को मान्यता देने के लिए प्रदान की जाएगी। पुरस्कार की घोषणा जल्द ही की जाएगी।
राष्ट्रीय एकात्मता मंच एक राष्ट्रीय स्तर का मंच है जिसमें 70 संगठन और कार्यकर्ता, पत्रकार, अनुसंधान कर्ता, कानून के विशेषज्ञ, फिल्म निर्माता, कलाकार, लेखक एवं वैज्ञानिक शामिल हैं जिसका गठन कंधमाल हिंसा के बाद 2010 में किया गया था। एनएसएफ हर साल 25 अगस्त को कंधमाल, भुनेश्वर, नई दिल्ली और अन्य जगहों में कंधमाल दिवस मनाती है।
2020 में महामारी के कारण इसे ऑनलाईन मनाया गया था जिसमें हाशिये पर जीवन यापन करनेवाले लोगों के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों, खासकर, जीवन, जीविका एवं धर्म और आस्था की स्वतंत्रता पर विचार-विमार्श किया गया था।  
बुधवार को कंधमाल दिवस मनाते हुए पुरस्कार घोषणा कार्यक्रम को वर्चुवल रूप में सम्पन्न किया जाएगा। वेबिनार की विषयवस्तु है, "मानव अधिकार एवं घरेलू स्वतंत्रता की रक्षा।" "इसमें राष्ट्रीय विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, एपी शाह, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, एस वाई कुरैशी और प्रसिद्ध फिल्म और साहित्य व्यक्तित्व जावेद अख्तर जैसी हस्तियां शामिल होंगे। अन्य प्रतिभागियों में भाषा सिंह, डॉ. रूथ मनोरमा, डॉ अरुणा ज्ञानदासन, दयामणि बारला, हेनरी टिफागने और डॉ. जॉन दयाल शामिल हैं।                                                 
23 अगस्त को हिंदू नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या ने 2008 की हिंसा को जन्म दिया था। भले ही माओवादी विद्रोहियों ने हत्या की जिम्मेदारी ली हो, हिंदू चरमपंथियों ने इसके लिए ख्रीस्तीय लोगों को ही जिम्मेदार ठहराया। दो दिन बाद 25 अगस्त को, ओडिशा के कंधमाल जिले के ख्रीस्तीयों पर नर्क टूट पड़ा था, जो महीनों तक बेरोक-टोक जारी रहा। विडंबना यह है कि इसकी शुरुआत भारत के स्वतंत्रता दिवस के 10 दिन बाद हुई थी।
ओडिशा के ख्रीस्तियों को 2007 के क्रिसमस के दौरान भी इसी तरह की हिंसा का सामना करना पड़ा था, लेकिन यह बहुत कम पैमाने पर थी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि 8 महीनों बाद होनेवाला यह आक्रमण सावधानीपूर्वक सुनियोजित अत्याचारों के लिए एक पूर्वाभ्यास था।
ख्रीस्तीय विरोधी इस हिंसा में करीब 100 ख्रीस्तीय मारे गये थे, उनमें से कई पुरोहित थे। करीब 75 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। 360 से अधिक गिरजाघरों, पूजा स्थलों, शिक्षा केंद्रों, सामाजिक केंद्रों और स्वास्थ्य सेवा संस्थाओं को नष्ट किया गया था। करीब 12,000 बच्चों की शिक्षा बाधित हुए थी और लगभग 40 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था।
एनएसएफ ने सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर और कानून की प्रोफेसर डॉ. सौम्या उमा द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें अदालत में लाए गए मामलों में सजा की दर 5.13% थी। एनएसएफ ने कहा कि कंधमाल हिंसा बुनियादी मानवाधिकारों और सबसे कमजोर समूहों की गरिमा के कई उल्लंघनों का एक अनूठा मामला है। न्याय होना अभी बाकी है और अधिकारों को बहाल किया जाना है।

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