ओडिशा की पीड़िता सिस्टर मीना के लिए दुःख व्यर्थ नहीं। 

13 साल पहले कंधमाल जिला में हिंसा भड़क उठी थी। इस ख्रीस्तीय विरोधी तबाही के दौरान बलात्कार की शिकार धर्मबहन अपनी कहानी बताने के लिए जीवित रह गयी। सिस्टर मीना ने एशिया न्यूज को बतलाया कि लॉकडाऊन के दौरान उन्होंने पवित्र बाईबिल को पढ़कर पूरा किया। उन्होंने महसूस किया कि ईश्वर का वचन उनके लिए हकीकत है। समुदाय ने बहुत अधिक कष्ट सहा किन्तु अब उनका विश्वास मजबूत हो गया है।
भारत के इतिहास में ठीक 13 साल पहले, अगस्त 2008 को कंधमाल जिला ने एक भयंकर ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा का सामना किया। सिस्टर मीना बारवा जो इस तबाही से बच गईं और इस तबाही की एक प्रतीक बन गईं, उन्होंने उस समय के अपने अनुभव को एशिया न्यूज के साथ साझा किया है। उन्होंने कहा, "मैं सामान्य और खुशहाल जीवन जी रही हूँ क्योंकि येसु मेरे प्रभु के साथ मेरा संबंध मजबूत है। इसका कारण बेशर्त क्षमाशीलता एवं प्रेम है जिसको मैंने अनुभव किया है कि मैं नकारात्मकता से मुक्त हूँ। मैं पूर्ण व्यक्ति नहीं हूँ, मैं एक कमजोर मानव हूँ किन्तु मैं महसूस करती हूँ कि इसके लिए मुझे प्रयास करने की जरूरत है।"
सिस्टर मीना ने बतलाया, "लॉकडाउन के दौरान मैं पवित्र बाईबिल को पूरा पढ़ा। मैंने महसूस किया कि ईश्वर का वचन मेरे लिए वास्तविक है। उदाहरण के लिए, "उनका प्रेम चिरस्थायी है। उनकी सत्यप्रतिज्ञता युगानुयुग बनी रहती है।" (स्तोत्र 99.5) तू मेरा सम्मान बढ़ाकर, मुझे फिर सान्त्वना प्रदान करेगा। (स्तोत्र 71,21) उसने मुझे शत्रुओं के पंजे के छुड़ाया। (स्तोत्र 136, 24) ये ईश्वर के शब्द हैं जो मेरे लिए सच्चे साबित होते हैं। ये जीवित एवं सक्रिय वचन हैं जो मुझे प्रेरित करते एवं बल प्रदान करते हैं।"  
"मुझे इस बात का यकीन है कि दुःख हमारे जीवन में चुनौती बनकर आते हैं हमें नीचे गिराने के लिए नहीं बल्कि हमें और ऊपर उठाने के लिए। ये हमें धैर्यशील, आशावान, साहसी और समझदार बनाते हैं। हमें शुद्ध और पवित्र करते हैं। इसी तरह येसु की पीड़ा अर्थपूर्ण है और उनकी पीड़ा हमारी पीड़ा को अर्थ प्रदान करती है। हमारे अस्तित्व के दो पहलू हैं। हमें सब कुछ को धन्यवादी हृदय से स्वीकार करना है।"  
उन्होंने कहा, "जब हम शांति, न्याय, समानता, सम्मान एवं प्रतिष्ठा के साथ जीने हेतु संघर्ष करने के 13 वर्षों की याद कर रहे हैं, मैं कंधमाल के शरीदों की याद करती हूँ और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ। मेरी चिंता एवं समर्थन उन भाई बहनों के लिए है जिन्होंने दुःख सहा और आज भी दुःख सह रहे हैं। मैं उन लोगों की याद करता हूँ जिन्होंने अपने जीवन को जोखिम में डाला और कंधमाल के लोगों की मदद की कि चीजें सही हो सकें और जीवन बेहतर बन सके। मैं उन सभी दूतों के प्रति आभारी हूँ जिन्होंने मेरे जीवन में मदद दी और मेरे जीवन को स्वीकार करने, खुश रहने एवं एक बेहतर समाज का स्वप्न देखने में सहायता दी।"  
चुनौतियाँ आती हैं ताकि व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचान सके; वे हमें सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। कंधमाल के लोगों ने बहुत अधिक दुःख सहा है किन्तु प्रभु पर भरोसा रखा। दुःख सहना अपने आप में एक कृपा है। मैं इसे बढ़ने हेतु चुनौती के रूप में देखती हूँ। 2008 में जो हुआ उसके प्रति कंधमाल के लोगों का मनोभाव नकारात्मक नहीं है। वे आशावान हैं एवं उनका विश्वास गहरा है। त्रासदी ने उन्हें मजबूत बना दिया है। मेरे मन में संत पौलुस के शब्द गूँजते हैं, "कौन मुझे मसीह के प्रेम से अलग कर सकता है?" कंधमाल के लोग इसे जी रही हैं।  
सिस्टर मीना ने लिखा, "मैं अपने जीवन, अपनी शक्ति एवं अपने उद्देश्य के प्रति चेतना के लिए कृतज्ञ हूँ। ये सभी मुझे ईश्वर से मिले हैं। वे ही मेरे बल हैं और उन्होंने ही मुझे दूसरों की सेवा करने का बल प्रदान किया है। 2019 में मैंने अपनी लॉ की डिग्री प्राप्त की। अब मैं ओडिशा बार समिति की सदस्य हूँ। मेरा ही केस चल रहा है। तीन लोगों को दोषी ठहराया गया है, और अन्य सभी जमानत पर बाहर हैं।"
उन्होंने कहा कि उनके लिए न्याय का अर्थ है न्याय खोजना और खुद न्याय करना, अपराध को रोकना। संत पापा पौल छटवें की याद करते हुए उन्होंने कहा, "यदि आप दुनिया में शांति चाहते हैं तो न्याय के लिए कार्य करें। मैं समझती हूँ कि हमें इसपर चिंतन करना चाहिए।"

 

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