उपवास करना चाहिए या नहीं?

येसु स्वयं को उपवास के उद्देश्य तथा धर्मशास्त्रों में इसकी दीर्घ परंपरा के बारे में धार्मिक चर्चाओं में नहीं उलझाते। उपवास करना अपने में एक अच्छी चीज है, परन्तु समय और परिस्थिति के अनुकूल ही करना चाहिए। जब सवाल पूछा गया, वह उचित समय और महौल नहीं था। येसु सामान्य अर्थों में धर्मविज्ञान की शिक्षा देते हैं, और घरेलू उदाहरणों से उसे पुष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि सामान्य व्यक्ति उपवास एवं शोक मनाने की बात कैसे कर सकता है जब तक वह वर और वधू के साथ विवाह भोज में जश्न मना रहा हो।
येसु सामान्य ज्ञान की बात , जन सामान्य के समझने के लिए करते हैं। यही वजह है कि उनकी ये सामान्य बातें लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं। येसु हमें समझाने का प्रयास करते हैं कि जब तक धर्मविज्ञान सामान्य जन की परीक्षा में खरा नहीं उतरता तब तक धर्मविज्ञान संदेह का विषय है।  सरल और सहज वाक्यों में कहें, तो जब तक येसु साथ हैं, तब तक हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।

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