मन्दिर में सिमेयोन और अन्ना

सन्त लूकस का सुसमाचार
2:22-40

जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरूसालेम ले गये; जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें। उस समय येरूसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था। उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये, तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, "प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर; क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।" बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये। सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, "देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा। इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी। अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर विधवा हो गयी थी और अब चैरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी। वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरूसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी। प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज़रेत-लौट गये। बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।

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