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मछुओं का बुलावा
सन्त लूकस का सुसमाचार
5:1-11
एक दिन ईसा गेनेसरेत की झील के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे। उस समय उन्होंने झील के किनारे लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे। ईसा ने सिमोन की नाव पर सवार हो कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिये कहा। इसके बाद वे नाव पर बैठे हुए जनता को शिक्षा देते रहे। उपदेश समाप्त करने के बाद उन्होंने सिमोन से कहा, "नाव गहरे पानी में ले चलो और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो"। सिमोन ने उत्तर दिया, "गुरूवर! रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा"। ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया। उन्होंने दूसरी नाव के अपने साथियों को इशारा किया कि आ कर हमारी मदद करो। वे आये और उन्होंने दोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं। यह देख कर सिमोन ने ईसा के चरणों पर गिर कर कहा, "प्रभु! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ।" जाल में मछलियों के फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये। यही दशा याकूब और योहन की भी हुई; ये ज़ेबेदी के पुत्र और सिमोन के साझेदार थे। ईसा ने सिमोन से कहा, "डरो मत। अब से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे।" वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड़ कर ईसा के पीछे हो लिये।
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