पोप फ्राँसिस ने "संत जोसेफ का वर्ष घोषित" किया।

प्रेरितिक पत्र "कात्रिस कोरदे" (पिता के हृदय के साथ) के साथ, संत जोसेफ को विश्वव्यापी कलीसिया के संरक्षक घोषित किये जाने की 150वीं वर्षगाँठ मनाने हेतु पोप फ्राँसिस ने 8 दिसम्बर 2020 से 8 दिसम्बर 2021 को संत जोसेफ का वर्ष घोषित किया है।
प्रेमी, कोमल, आज्ञाकारी और स्वीकार करने वाला, साहसिक रचनात्मक पिता, परिश्रमी, हमेशा छाया प्रदान करने वाला आदि शब्दों के साथ पोप फ्राँसिस ने संत जोसेफ का वर्णन किया है।

संरक्षक घोषणा की 150वीं वर्षगाँठ:- यह वर्णन उन्होंने प्रेरितिक पत्र "पात्रिस कोरदे" (पिता के हृदय के साथ) में किया है, जिसको मरियम के पति काथलिक कलीसिया के संरक्षक घोषित करने के 150वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आज प्रकाशित किया गया। वास्तव में, धन्य पीयुस 9वें संत जोसेफ के लिए यह उपाधि चाहते थे, जिसके लिए क्वेमदमोदुम देउस आज्ञप्ति पर 8 दिसम्बर 1870 को हस्ताक्षर किया गया था। इस वर्षगाँठ को मनाने के लिए पोप ने आज 8 दिसम्बर 2020 से 8 दिसम्बर 2021 तक को, विशेष वर्ष, येसु के पालक पिता का वर्ष घोषित किया है।

प्रेमी, कोमल आज्ञाकारी पिता:- "प्रेरितिक पत्र की पृष्ठभूमि में कोविड-19 महामारी है जिसने आम लोगों को समझने में मदद दी है जो प्रकाश से दूर हैं, हर दिन धीरज का अभ्यास करते, आशा स्थापित करते एवं सह-जिम्मेदारी बोते हैं, ठीक संत जोसेफ के समान प्रतिदिन हाजिर रहने पर भी गुप्त और छिपे, ध्यान दिये बिना पार हो जाते  हैं। फिर भी "मुक्ति के इतिहास में उनका एक अद्वितीय नायकत्व है।"

वास्तव में, संत जोसेफ ने मसीह की सेवा में अर्पित अपने जीवन को प्यार में एक आहूति के समान व्यक्त कर, अपने पितृत्व को ठोस रूप में प्रस्तुत किया। यही कारण है कि वे ख्रीस्तियों द्वारा बहुत प्यार किये जाते हैं। उनमें येसु ने ईश्वर की कोमलता को देखा, जिनके कारण हम अपनी कमजोरियों को स्वीकार कर पाते हैं, और कई ईश्वरीय योजना पूर्ण हुई हैं। ईश्वर वास्तव में दण्ड नहीं देते बल्कि स्वागत करते हैं, आलिंगन करते, सहारा देते एवं क्षमा करते हैं।

जोसेफ एक ऐसे पिता है जो ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी हैं, उन्होंने अपनी व्यवस्था में मरियम और येसु को बचाया तथा अपने पुत्र को मुक्ति के महान रहस्य में सहयोग करते हुए पिता की इच्छा पूरी करना सिखाया।  

ईश्वर की इच्छा का स्वागत:- पोप फ्रांसिस ने कहा है कि जोसेफ एक ऐसे पिता है जो "स्वागत" करते हैं क्योंकि उन्होंने बिना शर्त मरियम का स्वागत किया, जो आज भी इस दुनिया में एक महत्वपूर्ण भाव है जहाँ महिलाओं के खिलाफ मानसिक, मौखिक और शारीरिक हिंसा हो रहे हैं। किन्तु मरियम के पति ने ईश्वर पर भरोसा रखकर उन्हें अपने जीवन में स्वीकारा, उन घटनाओं का साहस एवं दृढ़ता से सामना किया, जिनको वह नहीं समझ पाया था कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति से हो रहे थे। संत जोसेफ के द्वारा ईश्वर ने मानो हमसे कहा है, "डरो मत!" क्योंकि विश्वास हर खुशी और दुःख की घड़ी को अर्थ प्रदान करता है।

रचनात्मक साहसी, प्रेम के आदर्श:- येसु के पिता का स्वागत करना, हमें निमंत्रण देता है कि हम दूसरों का स्वागत वैसा ही करें जैसे वे हैं, कमजोर लोगों को प्राथमिकता देते हुए किसी को अलग किये बिना। "पात्रिस कोरदे" संत जोसेफ के "रचनात्मक साहस" पर प्रकाश डालता है जो कठिनाई को अवसर में बदलना जानते हैं। हमेशा ईश्वर की कृपा को पहला स्थान देते हैं। उन्होंने दुनिया के दूसरे परिवारों की तरह अपने परिवार की ठोस समस्याओं का सामना किया, विशेषकर, पलायन की समस्या। येसु और मरियम के संरक्षक के रूप में जोसेफ, कलीसिया एवं ख्रीस्त के शरीर के मातृत्व के संरक्षक हुए बिना नहीं रह सकते। हर जरूरतमंद एक "बच्चा है" जिसकी रक्षा संत जोसेफ करते हैं और उनके द्वारा हम कलीसिया तथा गरीब को प्यार करना सीखते हैं।

काम के मूल्य, प्रतिष्ठा एवं आनन्द की सीख देने वाले :- मरियम के पति, एक ईमानदार बढ़ाई हमें अपने परिश्रम की कमाई से रोटी खाने के मूल्य, प्रतिष्ठा एवं आनन्द की भी सीख देते हैं। येसु के पिता के ये उदाहरण पोप को काम के पक्ष में अपील करने का अवसर देते हैं जो उन देशों के लिए भी एक आवश्यक सामाजिक मुद्दा बन गया है, जो एक स्तर तक अच्छा जीवन जी सकते हैं। काम के अर्थ को समझना आवश्यक है जो प्रतिष्ठा प्रदान करता है और जो मुक्ति के कार्य में सहभागिता तथा अपने एवं समाज की मूल ईकाई, परिवार को साकार करने का अवसर बन गया है। अतः पोप फ्रांसिस सभी का आह्वान करते हैं कि कार्य के मूल्य, महत्व एवं आवश्यकता की पुनः खोज करें, जिससे एक नई सामान्यता उत्पन्न हो सके जिसमें कोई भी बहिष्कृत न रहे। कोविड-19 महामारी के समय में बेरोजगारी को देखते हुए उन्होंने सभी लोगों की प्रतिबद्धता की अपील की है कि हम कह सकें˸ कोई भी युवा, कोई भी व्यक्ति, कोई भी परिवार बेरोजगार न रहे।

येसु और मरियम पर केंद्रित:- पोप फ्रांसिस ने कहा है कि पिता जन्म नहीं लेते बल्कि बनते हैं जब वे एक बच्चे के जीवन की रक्षा करते हुए उसकी देखभाल करते हैं। दुर्भाग्य से, आज के समाज में, बच्चे बहुधा अनाथ हो जाते हैं जबकि पिता उनपर अधिकार किये बिना, उन्हें जीवन के अनुभवों से अवगत करा सकते हैं और चुनाव करने एवं स्वतंत्रता पूर्व निर्णय लेने के लायक बना सकते हैं। इस अर्थ में जोसेफ का नाम "अति शुद्ध" पड़ा है जो अधिकार का उल्टा है। वास्तव में, वे असाधारण रूप से मुक्त प्रेम करना जानते थे। वे येसु एवं मरियम को अपने जीवन के केंद्र में रखना जानते थे। उनकी खुशी खुद को देने में थी। वे कभी निराश नहीं हुए बल्कि हमेशा दृढ़ता के साथ मौन रहे, शिकायत नहीं की वरन भरोसा का ठोस भाव प्रकट किया। अतः उनका व्यक्तित्व एक ऐसे जगत में, जहाँ पिता की जरूरत है, जो मालिक से इंकार करता, अधिकार का अधिनायकवाद से एवं सेवा का चाटुकारिता, शोषण का सहारा, उदारता का मददवाद, विनाश का शक्ति के भ्रम में डालनेवालों का बहिष्कार करता है, उसका एक महान आदर्श है।

"पात्रिस कोरदे" संत पोप फ्राँसिस के जीवन की आदत को भी प्रकट करता है। संत पिता हर दिन, फ्राँसीसी भक्ति पुस्तिका से मरियम के पिता के पास प्रार्थना करते हैं। यह एक ऐसी प्रार्थना है जो संत जोसेफ के प्रति भक्ति और भरोसा प्रकट करती है किन्तु कुछ चुनौतियों को भी प्रकट करती है क्योंकि यह उन शब्दों के साथ समाप्त होती है ˸ "ऐसा कहना न पड़े कि आपसे व्यर्थ प्रार्थना की गई, मुझे दिखला कि आपकी अच्छाई आपके सामर्थ्य के समान महान है।"

प्रेरितिक पत्र "पात्रिस कोरदे" की प्रकाशना के साथ पोप फ्रांसिस ने इस साल को, संत जोसेफ को समर्पित एवं विशेष पाप मुक्ति की कृपा का साल घोषित किया है।

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