पोप फ्राँसिस ने गर्भपात, विवाह, टीकाकरण आदि पर की चर्चा। 

स्लोवाकिया में अपनी चार दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर रोम की वापसी हवाई यात्रा के दौरान बुधवार को सन्त पिता फ्राँसिस ने विमान में उपस्थित कई पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया। उन्होंने इस अवसर पर कई अहं मुद्दों, जैसे गर्भपात, विवाह, टीकाकरण, पवित्र परमप्रसाद तथा धर्माध्यक्षों की भूमिका आदि पर अपने विचार व्यक्त किये।

गर्भपात "हत्या" है
गर्भपात अधिकार के समर्थक अमरीकी राष्ट्रपति जो बाईडेन तथा अन्य राजनीतिज्ञों को पवित्र परमप्रसाद दिया जाना चाहिये अथवा नहीं? इस सवाल का जवाब देते हुए सन्त पिता फ्राँसिस ने कहा कि धर्माध्यक्षों को दया, करुणा एवं कोमलता के साथ अपनी प्रेरिताई का निर्वाह करना चाहिये, उन्हें न तो किसी का खण्डन करना चाहिये और न ही राजनीति में पड़ना चाहिये।
ख्रीस्तयाग समारोहों के दौरान पवित्र परमप्रसाद ग्रहण करने के बारे में सन्त पिता फ्राँसिस ने कहा कि काथलिक धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों को यह प्रयास करना चाहिये कि परमप्रसाद ग्रहण करने के मामले में राजनीति का प्रवेश कतई न हो। सन्त पापा ने कहा, "यूखारिस्त पूर्णता का कोई पुरस्कार नहीं है अपितु यह कलीसिया में प्रभु येसु की उपस्थिति का एक अनुपम उपहार है।"  
अमरीका के काथलिक धर्माध्यक्ष, धर्मशिक्षा पर, एक नवीन दस्तावेज़ का प्रारूप तैयार करने पर सहमत हो गये हैं तथा कईयों की उम्मीद है कि यह अमरीकी राष्ट्रपति बाईडेन सहित उन राजनीतिज्ञों की निन्दा करेगा जो गर्भपात का समर्थन करने के बावजूद परमप्रसाद ग्रहण करते हैं। इस सिलसिले में, सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि वे अमरीका में जारी उक्त बहस से अपरिचित थे, किन्तु इस तथ्य को रेखांकित किया कि किसी भी स्थिति में गर्भपात "हत्या" है, क्योंकि गर्भ के आरम्भिक क्षण से लेकर मृत्यु के क्षण तक जीवन की रक्षा की जानी चाहिये।  
सन्त पिता फ्राँसिस ने कहा कि काथलिक पुरोहित उन लोगों को यूखारिस्त प्रदान नहीं कर सकते जो कलीसिया के संग सहभागिता में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि काथलिक धर्माध्यक्ष अथवा पुरोहित हर समस्या का समाधान राजनैतिक ढंग से नहीं अपितु प्रेरितिक रूप से खोजे। उन्होंने कहा कि धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों को "ईश्वर की शैली" का उपयोग कर "निकटता, करुणा और कोमलता" के साथ विश्वासियों का पथ प्रदर्शन करना चाहिये। उन्हें खण्डन नहीं करना चाहिये बल्कि पुरोहित और मेषपाल के रूप में अपने रेवड़ की रखवाली करनी चाहिये।
सन्त पिता फ्राँसिस ने उन मामलों का स्मरण किया जब कलीसिया ने राजनैतिक आधारों पर सिद्धान्तों की व्याख्या की और हल ग़लत निकला। धर्माधिकरण के जिज्ञासु-युग में अपधर्म के आरोप में दण्डित जोर्दानो ब्रूनो के प्रकरण का उन्होंने स्मरण किया जिन्हें रोम के काम्पो देई फ्योरी चौक में जला दिया गया था। सन्त पापा ने कहा, "जब-जब कलीसिया ने किसी सिद्धान्त की रक्षा के लिये समस्या को मेषपाली ढंग से सम्पादित न कर राजनीति की तरफदारी की है तब-तब वह ग़लत सिद्ध हुई है। यदि कोई धर्माध्यक्ष अथवा पुरोहित अपनी प्रेरिताई का परित्याग करता है तो वह राजनीतिज्ञ में परिणत हो जाता है।"
स्लोवाकिया से रोम तक की यात्रा हालांकि एक छोटी यात्रा थी तथापि, सन्त पिता फ्राँसिस ने पत्रकारों के साथ कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। कोविड महामारी के बाद टीकाकरण पर उठे वाद-विवाद पर उन्होंने कहा कि उनकी समझ में नहीं आता कि कुछ लोग टीकाकरण के खिलाफ़ क्यों हैं। उन्होंने कहा कि बाल्यकाल से ही हम लोग विभिन्न बीमारियों के विरुद्ध टीका लेते रहे हैं इसलिये टीकाकरण का विरोध तर्कयुक्त नहीं जान पड़ता। उन्होंने कहा, "मानवता का टीकों के साथ दोस्ती का इतिहास रहा है", इसलिये शांतिपूर्ण विचार-विमर्श की ज़रूरत है।   
समलिंगकामियों के बीच विवाह के बारे में, सन्त पिता फ्राँसिस ने कहा कि सरकारों को नागर कानून लागू कर यह सुनिश्चित्त करना चाहिये कि समलिंगकामियों को भी विरासत अधिकार तथा स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार मिल सकें, किन्तु कलीसिया समलिंगकामियों के बीच विवाह को कतई स्वीकार नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि विवाह, विवाह है। विवाह, एक पुरुष एवं एक स्त्री के बीच, एक पवित्र संस्कार है।  

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