आदर्श प्रार्थना

सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
6:7-15

7) "प्रार्थना करते समय ग़ैर-यहूदियों की तरह रट नहीं लगाओ। वे समझते हैं कि लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करने से हमारी सुनवाई होती है।

8) उनके समान नहीं बनो, क्योंकि तुम्हारे माँगने से पहले ही तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें किन-किन चीज़ों की ज़रूरत है।

9) तो इस प्रकार प्रार्थना किया करो- स्वर्ग में विराजमान हमारे पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाये।

10) तेरा राज्य आये। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में, वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो।

11) आज हमारा प्रतिदिन का आहार हमें दे।

12) हमारे अपराध क्षमा कर, जैसे हमने भी अपने अपराधियों को क्षमा किया है।

13) और हमें परीक्षा में न डाल, बल्कि बुराई से हमें बचा।

14) यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।

15) परन्तु यदि तुम दूसरों को क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।

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