हिंसक असामियों का दृष्टान्त

सन्त मारकुस के अनुसार सुसमाचार
21: 20-25

1) वह लोगों को दुष्तान्तों में शिक्षा देने लगे- "किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगवायी, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उस में उस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे असामियों को पट्टे पर दे कर वह परदेश चला गया।

2) समय आने पर उसने दाखबारी की फ़सल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास एक नौकर को भेजा।

3) असामियों ने नौकर को पकड़ कर मारा-पीटा और खाली हाथ लौटा दिया।

4) उसने एक दूसरे नौकर को भेजा। उन्होंने उसका सिर फोड़ दिया और उसे अपमानित किया।

5) उसने एक और नौकर को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। इसके बाद उसने और बहुत -से नौकरों को भेजा। उन्होंने उन में से कुछ लोगों को पीटा और कुछ को मार डाला।

6) अब उसके पास एक ही बच गया- उसका परममित्र पुत्र। अन्त में उसने यह सोच कर उसे उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे।

7) किन्तु उन असामियों ने आपस में कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत हमारी हो जायेगी।’

8) उन्होंने इसे पकड़ कर मार डाला और दाखबारी के बाहर फेंक दिया।

9) दाखबारी का स्वामी क्या करेगा? वह आ कर उन असामियों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी दूसरों को सौंप देगा।

10) "क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में यह नहीं पढ़ा?- कारीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है।"

11) यह प्रभु का कार्य है। यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है।"

12) वे समझ गये कि ईसा का यह दृष्टान्त हमारे ही विषय में है और उन्हें गिरफ़्तार करने का उपाय ढूँढ़ने लगे। किन्तु वे जनता से डरते थे और उन्हें छोड़ कर चले गये।

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