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महापुरोहित मसीह की प्रार्थना
सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
17: 1-11
1) यह सब कहने के बाद ईसा अपनी आँखें उपर उठाकर बोले, "पिता! वह घडी आ गयी है। अपने पुत्र को महिमान्वित कर, जिससे पुत्र तेरी महिमा प्रकट करे।
2) तूने उसे समस्त मानव जाति पर अधिकार दिया है, जिससे वह उन सबों को अनन्त जीवन प्रदान करे, जिन्हें तूने उसे सौंपा है।
3) वे तुझे, एक ही सच्चे ईश्वर को और ईसा मसीह को, जिसे तूने भेजा है जान लें- यही अनन्त जीवन है।
4) जो कार्य तूने मुझे करने को दिया था वह मैंने पूरा किया है। इस तरह मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट की है।
5) पिता! संसार की सृष्टि से पहले मुझे तेरे यहाँ जो महिमा प्राप्त थी, अब उस से मुझे विभूषित कर।
6) तूने जिन लोगो को संसार में से चुनकर मुझे सौंपा, उन पर मैने तेरा नाम प्रकट किया है। वे तेरे ही थे। तूने उन्हें मुझे सौंपा और उन्होंने तेरी शिक्षा का पालन किया है।
7) अब वे जान गये हैं कि तूने मुझे जो कुछ दिया है वह सब तुझ से आता है।
8) तूने जो संदेश मुझे दिया, मैने वह सन्देश उन्हें दे दिया। वे उसे ग्रहण कर यह जान गये है कि मैं तेरे यहाँ से आया हूँ और उन्होंने यह विश्वास किया कि तूने मुझे भेजा।
9) मैं उनके लिये विनती करता हूँ। मैं ससार के लिये नहीं, बल्कि उनके लिये विनती करता हूँ, जिन्हें तूने मुझे सौंपा है; क्योंकि वे तेरे ही हैं।
10) जो कुछ मेरा है वह तेरा है और जो तेरा, वह मेरा है। मैं उनके द्वारा महिमान्वित हुआ।
11) अब मैं संसार में नहीं रहूँगा; परन्तु वे संसार में रहेंगे और मैं तेरे पास आ रहा हूँ। परमपावन पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख, जिससे वे हमारी ही तरह एक बने रहें।
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