प्रभु प्रकाश का पर्व 

"ख्रीस्त जयन्ती" और "प्रभु प्रकाश" दोनों पर्व एक दूसरे के पूरक हैं। "प्रभु प्रकाश" का अर्थ है- प्रकटीकरण। यह पर्व प्रभु येसु के शरीरधारण की वास्तविकता को प्रकट करता है। साथ ही साथ ख्रीस्त का परिचय एवं उनके इस दुनिया में भेजे जाने के उद्देश्य को प्रकट करता है। राजा हेरोद को इस बात का डर नहीं था कि कोई स्वर्गिक राजा इस दुनिया में पैदा हो रहे हैं। बल्कि उन्हें इस बात का डर था कि कोई दुनियावी राजा उत्पन्न न हो। ये तीन ज्योतिषी जो पूरब दिशा से आये थे, किसी दुनियावी राजा की तलाश में नहीं वरन् स्वर्गिक राजा की तलाश में निकले थे। फिर इन तीनों राजाओं ने अपना राजदरबार, सुख - सुविधा सब को छोड़कर इतनी लम्बी यात्रा क्यों तय की? वे अन्य राजा के दर्शन क्यों करना चाहते थे? इसका जवाब है “ईश्वरीय शक्ति", जिसने उनके हृदय में "ईसा" के दर्शन की इच्छा को तीव्र किया था। वे बालक येसु की खोज करने के लिए उत्सुक थे। वे एक ऐसे राजा की खोज में थे, जो दुनियावी राजाओं से अलग हो। जो एक सच्चा राजा हो। इस खोज में उन्होंने भूख- प्यास, असुरक्षा, थकान, निराशा सब कुछ भुला दिया था, या हम कह सकते हैं कि वे ये सब कुछ सहने के लिए तैयार थे। आज के संदर्भ में क्या हम ईश्वर को पाने के लिए लालायित हैं? क्या हम उन ज्योतिषियों की तरह कष्ट सहने और मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार हैं?

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