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येसु मेरे लिए कौन हैंॽ
पोप फ्रांसिस ने अपने रविवारीय प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकात्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि इस रविवार का सुसमाचार हमारे लिए उस क्षण को व्यक्त करता है जब पेत्रुस अपने विश्वास में येसु को ख्रीस्त के मसीह, ईश्वर के पुत्र होने की घोषणा करते हैं। इस घोषणा की पहल स्वयं येसु ख्रीस्त की ओर से की जाती है जहाँ वे अपने शिष्यों को अपने संग एक मजबूत संबंध में बने रहने की चाह रखते हैं। वास्तव में, वे अपने पीछे आने वालों को और विशेषकर शिष्यों को विश्वास में पुख्ता होने की शिक्षा देते हैं। सबसे पहले वे उनसे यह सवाल करते हैं, “मानव पुत्र कौन है? इसके बारे में लोग क्या कहते हैं?” शिष्यों को भी दूसरों के बारे में बातें करना अच्छा लगता है जैसे कि हम करते हैं। हम टीका-टिप्पणी पसंद करते हैं। हमें दूसरों के “बाल की खाल” निकालने में अच्छा लगता है। लेकिन इस संदर्भ में हम टीका-टिप्पणी नहीं वरन विश्वास की मांग को पाते हैं, “लोग क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँॽ” दूसरों के विचारों को प्रकट करने में शिष्यों के बीच हम एक प्रतिस्पर्धा को देखते हैं, जो उनके स्वयं के विचार भी हैं कि नाजरेत के येसु ख्रीस्त एक नबी के रुप में देखे जाते हैं।
विश्वास की चट्टान पर कलीसिया
अपने दूसरे सवाल के द्वारा येसु उनके जीवन का स्पर्श करते हैं, “लेकिन तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँॽ” इस सावल पर हम शिष्यों को थोड़े क्षण के लिए मौन पाते हैं क्योंकि यह उन्हें व्यक्तिगत आत्ममंथन करने हेतु विवश करता है कि वे किस उद्देश्य से येसु का अनुसरण कर रहे हैं, अतः उनका अपने में मौन होना लाजिमी है। सभों की ओर से पेत्रुस विश्वास में उत्तर देते हैं, “आप मसीह, जीवंत ईश्वर के पुत्र हैं।” यह उत्तर जो अपने में दिव्य ज्योति से परिपूर्ण है पेत्रुस की ओर से नहीं आता वरन यह उसे ईश्वरीय विशेष कृपा स्वरुप प्राप्त होता है। येसु स्वयं इसके बारे कहते हैं, “किसी निरे मनुष्य ने नहीं बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।” पेत्रुस का जवाब पिता ईश्वर से मिली कृपा को व्यक्त करता है जिसके द्वारा वे येसु को पिता के पुत्र घोषित करते हैं। पोप फ्रांसिस ने कहा कि हम भी इस कृपा हेतु निवेदन करें कि हम येसु को इस रुप में घोषित कर सकें। पेत्रुस के सटीक जवाब की प्रंशसा करते हुए येसु कहते हैं, “तुम पेत्रुस अर्थात चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा और अधोलोक के फाटक उसके सामने टिक नहीं पायेंगे।” येसु अपने इस कथन के द्वारा यह सुनिश्चित करते हैं कि ईश्वर का पुत्र विश्वास की इसी “चट्टान” पर अपनी कलीसिया, अपने समुदाय की स्थापना करना चाहते हैं। कलीसिया पेत्रुस के इसी विश्वास के आधार पर आगे बढ़ती है जो कलीसिया के सिरमौर हैं।
मेरे लिए, येसु कौन हैंॽ
पोप फ्रांसिस ने कहा कि आज हम सभों को येसु यही प्रश्न करते हैं,“और तुम, क्या कहते हो कि मैं कौन हूँॽ” यह हम से कोई बनी बनाई उत्तर की मांग नहीं करता है वरन यह हमारे विश्वास की मांग करता है जो अपने में जीवन है,क्योंकि यह हमारा विश्वास है जो हमें जीवन प्रदान करता है। शिष्यों की भांति येसु के सवाल का उत्तर देना हमें स्वयं अपने में, पिता की आवाज को सुनने हेतु निमंत्रण देता है, जिसके फलस्वरुप हम कलीसिया के अंग बनते और संत पेत्रुस के उत्तर को निरंतर घोषित करते हैं। य़ह हमें येसु ख्रीस्त को जानने और समझने की मांग करता है, क्या वे कलीसिया और समाज में हमारे जीवन के केन्द्र-बिन्दु हैं। पोप फ्रांसिस ने पुनः सभों के सामने यह सवाल रखा,“येसु ख्रीस्त आपके लिए कौन हैंॽ इसका उत्तर हमें प्रतिदिन देना है।
करुणा के कार्य लोकोपकारी मात्र नहीं
इसके उपरांत पोप फ्रांसिस ने करूणा के कार्य और येसु ख्रीस्त में विश्वास पर चिंतन करते हुए कहा कि काथलिक समुदायों को चाहिए कि हम उन लोगों को विभिन्न रुपों में अपनी सेवा प्रदान करें जो कई रुपों में गरीब और मुसीबतों के शिकार हैं। करूणा के कार्य परिपूर्णतः की चरमसीमा है। उन्होंने कहा कि एकात्मकता, करूणा के कार्य जिसे हम अपने जीवन में करते हैं येसु ख्रीस्त से हमारे संबंध को विखंडित न करे। ख्रीस्तीय कारूणा के कार्य अपने में साधारण लोकोपकारी कार्य नहीं हैं, बल्कि यह एक ओर दूसरों की ओर येसु ख्रीस्त की आँखों से देखना है तो दूसरी ओर गरीबों में ईश्वर के चेहरे को पहचानना है।
माता मरियम जो अपने विश्वास के कारण धन्य हैं, येसु ख्रीस्त में विश्वास करने हेतु हमारी साहयिका और आदर्श बनें, वे हमें इस बात का एहसास दिलायें कि ईश्वर में विश्वास करना हमारे करूणा के कार्यों और हमारे सम्पूर्ण जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।
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