पृथ्वी की क्षति से जीवन को ही खतरा। 

संत पिता फ्राँसिस ने रोम के लातेरन विश्वविद्यालय में अध्ययन के नये चक्र का उद्घाटन किया है जिसको कुस्तुनतुनिया के प्राधिधर्माध्यक्षालय और यूनेस्को के संयोजन में, पारिस्थितिक और पर्यावरणीय मुद्दे को समर्पित किया गया है। अपने भाषण में संत पापा ने रेखांकित किया कि पारिस्थितिक संकट की जटिलता के सामने जिम्मेदारी, ठोस होने और कार्य कुशलता की आवश्यकता है।
प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमियो प्रथम और यूनेस्को के निदेशक औड्रे अजौले की उपस्थिति में संत पापा फ्राँसिस ने सख्त चेतावनी दी। जब कोप 26 शिखर सम्मेलन निकट आ रहा है हम जागरूक है कि जो क्षति हम ग्रह को पहुँचा रहे हैं वह क्षति जलवायु, जल और मिट्टी ही तक सीमित नहीं है बल्कि अब पृथ्वी का जीवन ही खतरे में है।  
संत पिता फ्राँसिस ने कहा कि इसके सामने यह पर्याप्त नहीं है कि उन सिद्धांतों के बयानों को दोहराया जाए जो हमें अच्छा महसूस कराते हैं। पारिस्थितिक संकट की जटिलता वास्तव में जिम्मेदारी, ठोस कार्य एवं कार्य-कुशलता की मांग करता है।
रोम के परमधर्मपीठीय लातेरन विश्वविद्यालय में लोगों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने विश्वास और विज्ञान कार्यक्रम की याद की जो इसी सप्ताह वाटिकन में आयोजित थी। कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। उन्होंने बतलाया कि वे एक वैज्ञानिक के शब्दों से प्रभावित हुए जिन्होंने कहा कि "मेरी पोती जिसका जन्म पिछला महीना हुआ है उसे एक ऐसे विश्व में जीना होगा जो रहने योग्य नहीं रहेगा यदि हम चीजों में बदलाव नहीं लाते।"  
सीखने की जगह से बोलते हुए संत पापा ने विश्वविद्यालय के मूल मिशन पर प्रकाश डाला जहाँ विद्यार्थी और विभाग एक साथ आकर चिंतन करते एवं नये रास्तों पर आगे बढ़ने के लिए रचनात्मक रूप से कार्य करते हैं। "पारिस्थितिकी चेतना बनाने और आम घर की रक्षा के लिए अनुसंधान विकसित करने का प्रयास विश्वविद्यालयों से होकर गुजरता है।"  
संत पिता फ्राँसिस ने इस बात को भी रेखांकित किया कि शैक्षणिक क्रिया-कलाप को, प्रकृति के वैभव को सुरक्षित रखने के लिए एक अभिन्न पारिस्थितिक बदलाव को बढ़ावा देने के पक्ष में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, सबसे पहले, प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के बीच आवश्यक एकता को धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक प्रतिबिंब द्वारा प्रस्तुत की गई एकता के पुनर्निर्माण के द्वारा, ताकि न्यायिक मानदंडों और एक अच्छी आर्थिक दृष्टि को प्रेरित किया जा सके।
संत पिता फ्राँसिस ने अपने सम्बोधिन में संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) को पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण के पहल के लिए, इसके सक्रिय ध्यान हेतु धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, "यह एक रास्ता है जो कुस्तुनतुनिया के प्राधिधर्माध्यक्षालय के साथ एक खुले दृष्टिकोण से मिलकर कार्य करेगा, जो ख्रीस्तीय कलीसियाओं, विभिन्न धार्मिक समुदायों एवं गैर-विश्वासियों के ध्यान का स्वागत करेगा।" अतः संत पापा ने जोर दिया कि अध्ययन चक्र अनुभवों एवं विचारों का एक मिलन विन्दु होगा जो वैज्ञानिक अनुसंधान की पद्धति के द्वारा उन्हें एक साथ लायेगा। यूनिवर्सिटी न केवल ज्ञान की एकता की अभिव्यक्ति को दिखाता बल्कि यह एक अनिवार्यता का भंडार भी है जिसका कोई धर्म, विचारधार या सांस्कृतिक सीमा नहीं होता।  
चेतावनी देते हुए कि 2030 सतत् विकास लक्ष्यों की उम्मीदें कम हो रही हैं, संत पापा ने कहा कि पारिस्थितिकी के बिना कोई मनुष्य जाति का सही विज्ञान नहीं है। एक सच्चे अभिन्न पारिस्थितिकी के बिना, हमारे पास एक नया असंतुलन होगा, जो न केवल समस्याओं को हल करने में विफल होगा, बल्कि नई समस्याओं को जोड़ देगा।”
संत पिता फ्राँसिस ने रेखांकित किया कि इसप्रकार अध्ययन के विशेष चक्र का विचार "विश्वासियों के बीच भी पर्यावरण में रुचि को प्रशिक्षित लोगों द्वारा किए गए एक मिशन में बदलने के लिए कार्य करता है, जो पर्याप्त शैक्षिक अनुभव का फल है। यह उन लोगों के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी है जो पर्यावरण के पतन के कारण बहिष्कृत, परित्यक्त और भुला दिए जाते हैं।"
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा कार्य है जिसमें योगदान देने, आवाजहीन लोगों की आवाज बनने, अपने स्वार्थ से ऊपर उठने और सिर्फ शिकायत नहीं करने के लिए कलीसियाएँ और भली इच्छा रखने वाले सभी लोग बुलाये जाते हैं।
सभा के अंत में संत पिता फ्राँसिस ने प्राधिधर्माध्यक्ष एवं यूनेस्को के निदेशक के साथ पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर "पोप विश्वविद्यालय" में अध्ययन के नए चक्र के लिए यूनेस्को कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किया।

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