धर्मबहनों से पोप का आग्रह- आप उदारता के मार्ग पर चलने में माहिर हैं। 

संत जोवान्ना अंटिडा थौरेट की दया के धर्मबहनों के धर्मसंध के 21वें महासभा के प्रतिभागियों से संत पापा ने मुलाकात की और उनके उदारता के कामों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
संत पिता फ्राँसिस ने सोमवार ११ अक्टूबर को वाटिकन के संत क्लेमेंटीन सभागार में संत जोन एंटिडा थौरेट की दया के धर्मबहनों के धर्मसंध के महासभा के करीब 60 प्रतिभागियों से मुलाकात की। संत पापा ने उनका स्वागत किया जो अपने धर्मसंघ के 21वे महासभा के लिए एकत्रित हुई हैं। संत पापा ने नव निर्वाचित परमाधिकारिणी (सुपीरियर जनरल) को उनके अभिवादन के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें एवं नये महा सलाहकारों को धर्मसंघ के संचालन हेतु शुभकामनाएँ दी। साथ ही संत पापा ने निवर्तमान परमाधिकारिणी और महा सलाहकारों के प्रति अपना आभार में व्यक्त किया।
संत पिता फ्राँसिस ने कहा कि जब सिस्टर नुन्जिया ने धर्मध्यक्षीय धर्मसभा के उद्धाटन और अपने धर्मसंघ की महासभा के संयोग को चिन्हित करते हुए लिखा "हम पूरी कलीसिया और आपके साथ एकता में रहेंगे।" संत पापा ने उन्हें प्रार्थनाओं के लिए धन्यवाद दिया। इस संयोग का लाभ उठाते हुए संत पापा ने कहा कि एक कलीसिया के रूप में हम जो प्रतिबद्धता लेते हैं, वह धर्मसंघीय महासभा की एकात्मकता को विकसित करने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन है, विशेष रूप से, आप धर्मसंघियों की उपस्थिति कलीसिया में अपूर्णीय है। संत पापा ने कहा कि जब येसु गलील, समारिया और यहूदिया के मार्गों पर चलते थे तो उसके साथ चेले भी हैं और उन में बहुत सी स्त्रियां भी हैं; कुछ महिलाओं का तो हम नाम भी जानते हैं। (सीएफ. लूकस 8: 1-3) आप उन महिलाओं की उपस्थिति का विस्तार हैं जो येसु के मिशन को साझा कर रही हैं और अपना विशेष योगदान दे रही हैं।”
संत पिता फ्राँसिस ने उनसे प्रश्न पूछा कि वे दया की धर्मबहनों के रुप में किस तरह से इस यात्रा में विशेष रूप से भाग लेती हैं? उनका मूल योगदान क्या है?  आगे संत पापा ने कहा कि उसका उत्तर पहले से तैयार नहीं है इसका उत्तर उनके महासभा के विषय में है: “बेथनी से नए सिरे से शुरू करना, मार्था की उत्सुकता के साथ और मरिया को सुनना।”
संत पिता फ्राँसिस ने कहा कि सुसमाचार के माध्यम से हम जानते हैं कि येसु और चेलों के जीवन में दो महिलाओं, मार्था और मरिया का महत्वपूर्ण स्थान था। यह पुष्टि करता है कि सबसे पहले महिलाओं के रूप में और बपतिस्मा प्राप्त, अर्थात्, येसु के शिष्य के रुप में कलीसिया में आपकी सक्रिय उपस्थिति हैं और आप येसु के मिशन में भाग ले रही हैं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इसका आधार बपतिस्मा है, क्योंकि यही सबका मूल है। संस्थापिका संत जोवान्ना अंटिडे के करिश्मे के अनुसार, इस जड़ से ही ईश्वर ने आप में धर्मसंघीय जीवन के पौधे को विकसित किया है।
संत पिता फ्राँसिस ने कहा कि उनके महासभा का विषय उन दो शब्दों "उत्सुकता" और "सुनना"  पर गौर करते हुए कहा, “मुझे यकीन है कि यदि आप बेथानी की बहनों मार्था और मैरी के उदाहरण का अनुसरण करते हुए वास्तव में एकांत और सुनने में सक्षम हैं, तो आप पूरी कलीसिया की यात्रा में अपना बहुमूल्य योगदान देना जारी रखेंगी। खासकर गरीबों की चिंता करना और गरीबों की सुनना। संत पापा ने उनके धर्मसमाज के इतिहास पर गौर करते हुए बहुत सी धर्मबहनों को याद किया जिन्होंने एकांत में और बुजुर्गों, बीमारों, हाशिए के लोगों, गरीबों और परित्यक्त लोगों के बीच उनकी बातों को ईश्वर की कोमलता और करुणा के साथ सुना, उनकी सेवा में अपने प्राणों की आहुति दी। दया का यह कार्य कलीसिया की निर्मान करता और मसीह के मार्ग में चलने के लिए दूसरों को प्रेरित करता है।
अंत में संत पिता फ्राँसिस ने पूरी कलीसिया की ओर से उनकी सेवा के लिए सहृदय धन्यवाद दिया और उन्हें माता मरियम एवं संत जोवान्ना अंटिडा के संरक्षण में सुपुर्द किया। संत पापा ने उन्हें और पूरे धर्मसमाज की धर्मबहनों को अपना आशीर्वाद दिया।

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