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क्षमाशीलता व दयालुता, पीड़ा एवं युद्ध को दूर करने में सहायक, पोप
वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 13 सितम्बर को पोप फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।
दृष्टांत जिसको हम आज के सुसमाचार पाठ में पढ़ते हैं, करुणावान राजा का है (मती. 18. 21-35) हम इस अर्जी को दो बार सुनते हैं ˸ "मुझे समय दीजिए और मैं आपको सब चुका दूँगा।"
पहली बार इसका उच्चारण उस सेवक के द्वारा किया जाता है जो अपने स्वामी से लाखों रूपये का कर्जदार है। दूसरी बार दूसरा सेवक उस मालिक से गिड़गिड़ाता है जो स्वयं बहुत अधिक कर्ज में डूबा है। इस दूसरे सेवक का कर्ज बहुत कम था शायद सप्ताह भर के वेतन के समान ही था।
करुणा द्वारा न्याय पर विजय
संत पापा ने कहा कि इस दृष्टांत का केंद्रविन्दु मुक्ति है जिसको स्वामी नौकर के प्रति भारी कर्ज माफ करने के द्वारा दिखलाते हैं। सुसमाचार लेखक जोर देता है कि स्वामी दयालु थे। वे अपने वचन को कभी नहीं भूलते, जैसा कि हम येसु में पाते हैं। येसु हमेशा तरस खाते थे। उस सेवक को स्वामी ने जाने दिया और उसके कर्ज माफ कर दिये। उस सेवक के स्वामी को तरस हो आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज़ माफ़ कर दिया।
जब वह सेवक बाहर निकला, तो वह अपने एक सह- सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ दीनार का कर्ज़दार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घोंट कर कहा, ’अपना कर्ज़ चुका दो’।
सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’मुझे समय दीजिए और मैं आपको चुका दूँगा’।
परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिये बन्दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे!
यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुःखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं।
तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ’दुष्ट सेवक! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कजऱ् माफ़ कर दिया था,
तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’
ईश्वरीय मनोभाव और मानवीय मनोभाव
संत पापा ने कहा, "दृष्टांत में हम दो अलग-अलग मनोभवों को पाते हैं ˸ ईश्वर का मनोभाव – जिसकी तुलना राजा से की गई है, जो बहुत अधिक क्षमा करते हैं क्योंकि ईश्वर हमेशा क्षमा करते हैं तथा दूसरा मनुष्य का मनोभाव। ईश्वरीय मनोभाव में न्याय में करुणा व्याप्त है जबकि मानवीय मनोभाव केवल न्याय तक सीमित है। येसु हमसे आग्रह करते हैं कि हम क्षमा की शक्ति के लिए साहसपूर्वक खुलें क्योंकि हम जानते हैं कि जीवन में सब कुछ का समाधान केवल न्याय से नहीं होता। इसके लिए करुणापूर्ण प्रेम की भी आवश्यकता होती है जो पेत्रुस के सवाल का, प्रभु द्वारा उत्तर का आधार है। पेत्रुस इस तरह सवाल करते हैं, "यदि मेरा भाई मेरे विरूद्ध अपराध करता जाए, तो कितनी बार उसे क्षमा कर दूँ? और येसु ने उत्तर दिया, "मैं तुम से नहीं करता सात बार तक बल्कि सत्तर गुणा सात बार तक।"
क्षमाशीलता एवं करुणा
बाईबिल के इस प्रतीकात्मक भाषा में इसका अर्थ है कि हम हमेशा क्षमा करने के लिए बुलाये गये हैं। यदि क्षमाशीलता एवं करुणा हमारी जीवनशैली होती तो हम कितनी पीड़ा, दुःख और युद्ध से बच गये होते। कई टूटे परिवार नहीं जानते कि एक-दूसरे को किस तरह माफ करना है। कितने लोगों के मन में बदले की भावना होती है। यह आवश्यक है कि सभी मानवीय संबंधों में करुणामय प्रेम को लागू किया जाए ˸ पति पत्नी के बीच, माता-पिता एवं बच्चों के बीच, हमारे समुदायों में, कलीसिया, समाज और राजनीति में।
मृत्यु को याद रखो, आज्ञाओं का पालन करो
संत पापा ने पहले पाठ पर प्रकाश डालते हुए कहा, "आज सुबह, जब मैं ख्रीस्तयाग अर्पित कर रहा था, मैं रूक गया, मैं प्रवक्ता ग्रंथ से लिए गये पहले पाठ के एक वाक्य से प्रभावित था। वाक्य इस प्रकार है, "मृत्यु को याद रखो और आज्ञाओं का पालन करो।" संत पापा ने कहा कि यह एक सुन्दर वाक्य है। मैं अंत के बारे सोचता हूँ। क्या आप चिंतन करते हैं कि आप शव पेटिका में होंगे...और वहाँ भी घृणा को अपने साथ रखेंगे? संत पापा ने कहा, "अपने अंत के बारे सोचें, घृणा करना छोड़ दें, कुढ़ना बंद करें। आइये, हम इस मर्मस्पर्शी वाक्य पर चिंतन करें, "मृत्यु को याद रखो और आज्ञाओं का पालन करो।"
क्षमा करना आसान नहीं है क्योंकि शांति के क्षण व्यक्ति कहता है, कि जी हाँ इसने मेरे साथ बहुत कुछ किया है किन्तु मैंने भी किया है। क्षमा पाने के लिए क्षमा देना अच्छा है किन्तु बाद में बदले की भावना फिर आती है। संत पापा ने कहा कि क्षमा देना मात्र क्षणभर के लिए नहीं है। यह जारी रहना चाहिए और बदले की भावना जब भी आती है क्षमा करते रहना है। हम अपनी मृत्यु की याद करें और घृणा करना छोड़ दें।
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