Radio Veritas Asia Buick St., Fairview Park, Queszon City, Metro Manila. 1106 Philippines | + 632 9390011-15 | +6329390011-15
एकात्मता में ऱोधक क्षमता
पोप फ्रांसिस ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों की उपस्थिति में वाटिकन के संत दमासो प्रांगण में बुधवारीय आमदर्शन समारोह की शुरूआत की जो कोरोना के कारण कई महीनों से स्थागित था। उन्होंने सभों का अभिवादन किया।
बहुत महीनों के बाद हम पर्दे के सामने नहीं वरन् आमने-सामने मिल रहे हैं। यह कितनी अच्छी बात है। इस महामारी ने एक-दूसरे पर हमारी निर्भरता को उजागर किया है- हम एक-दूसरे से संयुक्त हैं, चाहे यह अच्छाई या बुराई से संबंधित हो। इसलिए इस महामारी से निजात पाने हेतु हमें एक साथ मिलकर एकता में कार्य करने की आवश्यकता है। आज मैं इसे एकात्मकता की संज्ञा देता हूँ।
मानव परिवार के रुप में हमारी उत्पत्ति ईश्वर से हुई है, हमारा एक सामान्य निवास, पृथ्वी रुपी वाटिका है जिसमें ईश्वर ने हमें रोपा है, इस भांति येसु ख्रीस्त में हमारा एक सामान्य लक्ष्य है। लेकिन जब हम इस तथ्य को भूल जाते तो हम एक-दूसरे में आश्रित रहने के बदले कुछेक में निर्भर होकर रह जाते हैं जो हममें असमान और तुच्छ बना देता है। यह हमारी सामाजिक व्यवस्था और पर्यावरण को कमजोर बना देता है।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि यही कारण है कि एकात्मकता का सिद्धांत वर्तमान परिवेश में पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हो गया है जैसे की संत पापा जोन पॉल द्वितीय ने हमें अपनी शिक्षा में कहा है -एक-दूसरे से जुड़े रहने की दुनिया में, हम “वैश्विक गाँव” में जीवन जीने के एक अनुभव से रुबरु होते हैं। यह कितनी सुन्दर अनुभूति है। यह दुनिया अपने में वैश्विक गाँव से अलग नहीं है क्योंकि हम एक-दूसरे से संयुक्त हैं लेकिन हम अपने में एक-दूसरे के संग जुड़े रहने को सदैव एकात्मकता में परिणत नहीं करते हैं। आत्मनिर्भरता से एकात्मकता तक पहुंचने हेतु हमें एक लम्बी यात्रा तय करनी है। हम अपने बीच में स्वार्थपरता, व्यक्तिवाद, राष्ट्रीयता और शक्तिशाली समुदायों जैसी आदर्श वैचारिक कर्कशताओं को पाते हैं जो पापों के रूप में हैं।
एकजुटता एक मानसिकता है
पोप फ्रांसिस ने कहा कि “एकात्मकता” शब्द अपने में थोड़ा घिसा और पुराना लगता है लेकिन यह उदारता के थोड़े कार्यों को अपने में संदर्भित करता है। यह हमें नये मनोभावों को वहन करने हेतु प्रेरित करता है जहाँ हम सभी रुपों में समुदाय और जीवन की प्रथामिकता को पाते हैं जिसके फलस्वरुप वस्तुओं का उपयोग कुछेक की अपेक्षा सभी लोग करते हैं । एकात्मकता का अर्थ यही है न कि सिर्फ दूसरों की सेवा करना, यह हमें न्याय के संदर्भ को प्रस्तुत करता है । परस्पर-निर्भरता जिसके द्वारा हम एकात्मकता में बने रहते हुए फलहित होते हैं मानवीय और सृष्टि के संग हमारी जड़ों को मजबूत करने की मांग करती है, जहाँ हमें मानवीय चेहरे और धरती का सम्मान करने की जरुरत है।
उन्होंने कहा कि मैं धर्मग्रंथ में “बाबुल घटना” की याद करता हूँ। यह हमें कहता है कि निर्माण कार्य के समय जब एक व्यक्ति गिर कर मरा तो किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन जब एक ईंट गिर गई तो सभी लोग इसके बारे में शिकायत करने लगे। दोषी को उसकी गलती के कारण सजा भी मिली। क्योंॽ क्योंकि ईंट कीमती थी। उसके निर्माण में समय और मेहनत लगता था। इस परिदृश्य में हम ईंट को मानव के जीवन से मूल्यवान पाते हैं। दूर्भाग्यवश आज भी ऐसा ही होता है। पोप फ्रांसिस ने कहा कि जब शेयर बाजार गिर जाता तो सभी अखबार इसे समाचार बनाते हैं। हजारों की संख्या में लोग भूखों मरते हैं लेकिन इसके बारे में कोई कुछ नहीं कहता है।
पेन्तेकोस्त बाबूल की मीनार के ठीक विपरीत है (प्रेरि.2.1-3) पवित्र आत्मा ऊपर से वायु और आग के रुप में उतरते और अंतिम व्यारी की कोटरी में बंद समुदाय को ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण कर देते हैं वे शिष्यों को सभी लोगों के बीच येसु ख्रीस्त को घोषित करने हेतु प्रेरित करते हैं। पवित्र आत्मा विविधता में एकता उत्पन्न करते हैं। वहीं बाबुल मीनार में हम एकता की कमी को पाते हैं वहाँ कार्य में धन-कमाने की धुन थी जो केवल कार्य तक ही सीमित थी, जबकि पेन्तेकोस्त में हम सभी समुदाय के निर्माण हेतु एक पूर्ण साधन बनते हैं।
एकात्मता महामारी के बाद आगे बढ़ने का रास्ता
पेंतेकोस्त के द्वारा ईश्वर अपने आप को उपस्थित करते एवं विविधता तथा एकात्मता में एकजुट सामुदायिक विश्वास को प्रेरित करते हैं। विविधता एवं एकात्मता में सौहार्द से एकजुट होना ही रास्ता है। एक विविध–एकात्मता में रोधक क्षमता (एंटीबोडी) होती है ताकि हरेक व्यक्ति जो एक वरदान के रूप में विशिष्ठ और अद्वितीय है, व्यक्तिवाद की बीमारी एवं स्वार्थ से ग्रसित न हो। विविध–एकात्मता में ऱोधक क्षमता होती है जो सामाजिक संरचना को चंगा करती एवं अन्याय और शोषण को नष्ट करती है। अतः एकात्मता आज महामारी के बाद आगे बढ़ने का रास्ता है, आपसी एवं सामाजिक बीमारी से चंगाई की ओर बढ़ना है। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है, या तो हम एकात्मता के रास्ते पर बढ़ सकते हैं या चीजें और भी बदतर हो सकती हैं। एक संकट के बाद व्यक्ति पहले के समान बाहर नहीं आ सकता। महामारी एक संकट है। संकट से कोई बेहतर स्थिति में आ सकता है या बदतर स्थिति में जा सकता है। चुनाव हमें करना है। एकात्मता निश्चय ही संकट के बाद बेहतर स्थिति में आने का रास्ता है, ऊपरी परिवर्तन के साथ, लेप लगाकर और दिखावा कर कि सब कुछ ठीक है, लेकिन यह सही नहीं है।
संकट के बीच, विश्वास-आधारित एकजुटता हमें ईश्वर के प्रेम को अपनी वैश्विक संस्कृति में बदलने की अनुमति देती है, न कि मीनारों या दीवारों के निर्माण की जो हमें विभाजित करती और टूट जाती है। संत पापा ने सवाल पूछते हुए कहा, "क्या मैं दूसरों की आवश्यकताओं का ख्याल रखता हूँ? प्रत्येक अपने हृदय में जवाब दें।"
संकट एवं आंधी के बीच, प्रभु हमें चुनौती देते और निमंत्रित करते हैं कि हम जागें और उदारतापूर्वक देने की क्षमता को सक्रिय करें, ऐसे समय में, जब सब कुछ बर्बाद होने के समान लग रहा है उसे समर्थन और मूल्य दें। पवित्र आत्मा की रचनात्मकता हमें परिवार के आतिथ्य, फलदायी बंधुत्व और सार्वभौमिक एकजुटता के नए रूपों को उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित करे।
Add new comment