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ईश्वर एवं पड़ोसी के प्रति प्रेम ख्रीस्तियों के लिए मौलिक
वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 25 अक्टूबर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
आज के सुसमाचार पाठ में (मती. 22:34-40) एक शास्त्री येसु से पूछता है, "गुरूवर, संहिता में सबसे बड़ी आज्ञा कौन सी है।" अर्थात् ईश्वरीय नियमों में से सबसे प्रमुख आज्ञा। येसु उत्तर देते हैं, "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।" उसके बाद वे तुरन्त जोड़ते हैं ˸ "अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।"
ईश्वर के नियमों को प्यार से पूरा करना:- संत पापा फ्रांसिस ने कहा, "येसु का उत्तर दो मौलिक नियमों को एक साथ जोड़ता है जिसको ईश्वर ने मूसा के द्वारा अपने लोगों को प्रदान किया था (विधि.6˸5, लेवी.19˸18) इस तरह वे जाल से बच जाते हैं जिसको उनकी परीक्षा करने के लिए बिछायी गई थी। (मती. 22˸35) सवाल करने वाले ने वास्तव में उन्हें शास्त्रियों के बीच आज्ञाओं के क्रम पर विवाद में खींचने की कोशिश की थी, किन्तु येसु सभी समय के विश्वासिसयों के लिए हमारे जीवन के दो मुख्य सिद्धांतों को प्रस्तुत करते हैं। पहला, नैतिक और धार्मिक जीवन को चिंतित और मजबूर होकर, आज्ञापालन भर तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। कुछ लोग हैं जो आज्ञाओं को परेशान और मजबूर होकर पूरा करने की कोशिश करते हैं। येसु हमें समझने में मदद देते हैं कि नैतिक और धार्मिक जीवन को, परेशान और मजबूर होकर आज्ञापालन तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें प्यार से पूरा किया जाना चाहिए।
ईश्वर के प्रति प्रेम व पड़ोसियों के प्रति प्रेम:- दूसरा सिद्धांत है कि ईश्वर के प्रति प्रेम और पड़ोसी के प्रति प्रेम को अलग नहीं किया जा सकता। यह येसु की नई पद्धति है और यह हमें समझने में मदद देता है कि पड़ोसी से नहीं किया गया प्रेम, ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं हो सकता। उसी तरह जो प्रेम ईश्वर के साथ संबंध से प्रेरित नहीं है वह सच्चा पड़ोसी प्रेम नहीं हो सकता। येसु इन शब्दों से अपने जवाब का अंत करते हैं, "इन्हीं दो आज्ञाओं पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित है।" इसका अर्थ है कि वे सभी नियम जिन्हें प्रभु ने अपने लोगों को दिया है उन्हें ईश्वर और पड़ोसियों से जुड़ा होना चाहिए।
वास्तव में, सभी आज्ञाएँ इन दोहरी अविभाजित प्रेम को लागू एवं व्यक्त करने में मदद देते हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम सबसे बढ़कर प्रार्थना में व्यक्त होता है, खासकर, आराधना में। हम ईश्वर की आराधना की उपेक्षा करते हैं। हम धन्यवाद की प्रार्थना करते, मांगने के लिए निवेदन की प्रार्थना करते...किन्तु हम आराधना की उपेक्षा कर देते हैं। ईश्वर की आराधना करना ही प्रार्थना का केंद्र है।
भ्रातृप्रेम:- पड़ोसियों के प्रति प्रेम, जिसको भ्रातृप्रेम कहा जा सकता है, जो दूसरों के करीब रहने, सुनने, बांटने और चिंता करने में व्यक्त होता है। कई बार हम दूसरों को नहीं सुनते हैं क्योंकि वह ऊबाउ होता अथवा हमारा समय चला जाता है या हम उनका साथ देना नहीं चाहते, पीड़ा और परेशानी में उनका समर्थन करना नहीं चाहते हैं बल्कि गपशप के लिए हमारे पास हमेशा समय होता है। संत पापा ने कहा कि हमें पीड़ितों को सांत्वना देने का समय नहीं होता किन्तु टीका-टिप्पणी करने का समय मिल जाता है। आप सावधान रहें।" प्रेरित संत योहन लिखते हैं, "यदि कोई यह कहता कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ और अपने भाई से बैर करता है तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है प्यार नहीं करता तो वह ईश्वर जिसको कभी देखा नहीं, प्यार नहीं कर सकता।" (1यो.4˸20) इस तरह हम इन दो आज्ञाओं की एकता को पाते हैं।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा, "आज के सुसमाचार पाठ में, येसु फिर एक बार हमें प्रेम के जीवित एवं बहते झरने के पास जाने में मदद देते हैं। यह झरना स्वयं ईश्वर हैं जिनसे पूरा प्रेम करना है और इस संबंध को कोई भी नहीं तोड़ सकता।" एकता एक वरदान है जिसको हर दिन मांगा जाना चाहिए किन्तु यह एक व्यक्तिगत समर्पण भी है कि हमारा जीवन दुनिया की मूर्तियों का गुलाम न बन जाए। मन-परिवर्तन एवं पवित्रता की हमारी यात्रा पड़ोसी प्रेम से ही प्रमाणित होती है। यह एक जाँच है, यदि मैं कहूँ, कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ और अपने पड़ोसियों से प्रेम नहीं करता तो यह व्यर्थ है। मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ इसका प्रमाण इस बात में है कि मैं अपने पड़ोसियों से प्रेम करता हूँ। जब तक कोई भाई अथवा बहन से हम अपना दिल बंद रखते हैं, तब तक हम शिष्य होने से दूर ही रहते हैं, जैसा कि येसु कहते हैं। परन्तु उनकी करुणा हमें निराश होने नहीं देती बल्कि हमें सुसमाचार को दृढ़ता पूर्वक नये सिरे से जीने के लिए हर दिन बुलाती है।
संत पापा फ्रांसिस ने धन्य कुंवारी मरियम से प्रार्थना की कि अति पवित्र माता मरियम हमारे हृदय को महान आज्ञा, प्रेम की दोहरी आज्ञा का स्वागत करने के लिए खोल दे, जिसमें ईश्वर के सभी नियम सम्माहित हैं और जिसमें हमारी मुक्ति निर्भर है। इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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