रोटी ईश्वर का एक उपहार है

आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

आज हम “हे पिता हमारे” प्रार्थना के दूसरे भाग पर चिंतन करेंगे जहाँ हम अपनी आवश्यकताओं के लिए ईश्वर से निवेदन करते हैं। इस दूसरे भाग की शुरूआत एक शब्द “रोटी” से होती है जिसकी खुशबू हम अपने रोज दिन के जीवन में करते हैं।

हम आत्मनिर्भर नहीं हैं

येसु की प्रार्थना एक महत्वपूर्ण निवेदन से होती है जो भिखारी के निवेदन पूर्ण भीख मांगने के समान है, “हमारे प्रति दिन का आहार हमें दे।” इस प्रार्थना की शुरूआत एक ऐसे परिणाम से होती है जिसे हम अपने रोज दिन के जीवन में सदैव भूल जाते हैं अर्थात हम सभी अपने में आत्मनिर्भर जीव नहीं हैं, हम अपने रोज दिन के भोजन हेतु दूसरे पर आधारित रहते हैं।

धर्मग्रंथ हमारे लिए बहुत सारे लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करता है जहाँ हम लोगों को विभिन्न तरह की आवश्यकताओं के साथ येसु के पास आते देखते हैं। येसु उनसे कोई अति विशेष सवाल जबाव नहीं करते हैं बल्कि वे उनके दैनिक जीवन की बातों और तकलीफों से वाकिफ होते जो एक प्रार्थना बनती है। धर्मग्रंथ बाईबल में हम बहुत से भिखारियों की चर्चा सुनते हैं जो अपने लिए मुक्ति और स्वतंत्रता की याचना करते हैं। कोई उनसे रोटी की मांग करता, तो कोई चंगाई, कोई शुद्ध होने की चाह रखता, कोई अपने लिए दृष्टि की मांग करता तो कोई अपने प्रियजनों के लिए नया जीवन...। येसु उनके निवेदन प्रार्थनाओं और उनके दुःख तकलीफों के प्रति कभी उदासीन नहीं रहते हैं।

अभाव, प्रार्थना का उद्गम स्थल

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि येसु हमें अपने पिता से प्रतिदिन का आहार मांगने की शिक्षा देते हैं। वे हमें अपने उन असंख्य भाई-बहनों के साथ मिलकर इस प्रार्थना को करने का आहृवान करते हैं जो अपने रोज दिन के जीवन में चिंतित हैं, जो इस प्रार्थना को अपने हृदय की गहराई में धारण किये रहते हैं। उन्होंने कहा कि आज भी कितने सारे माता-पिता हैं जो अपनी संतान हेतु, कल के लिए प्रार्याप्त भोजन की व्यवस्था किये बिना दुःख और पीड़ा में सोने चले जाते हैं। इस प्रार्थना के संबंध में इस बात की कल्पना करें, हम इस प्रार्थना को अपने आरामदेह घरों और सुरक्षा के घेरे में रहते हुए नहीं कर सकते हैं वरन हम इसे तब उच्चरित करते जब हम जीवन में जीविका के साधनों की कमी का एहसास करते हैं। येसु के वचन हमें एक नई शक्ति प्रदान करते हैं। ख्रीस्तीय प्रार्थना की शुरूआत ऐसी परिस्थिति में होती है। यह योगियों का क्रियाकलाप नहीं है परन्तु यह एक सच्चाई से उत्पन्न होती है, लोगों के हृदय की गरहाई से जो जरुरत की स्थिति में अपना जीवनयापन करते या उस परिस्थिति में जीवन व्यतीत करते हैं जहाँ लोगों को जीविका की चीजों का अभाव है। कोई सिद्धि प्राप्त किया हुए ख्रीस्तीय व्यक्ति भी इस साधारण याचना का खंण्डन नहीं कर सकता है। “हे पिता, तू आज हम सभों को हमारी रोटी प्रदान कर।” संत पापा ने कहा “रोटी” अपने में पानी, दवाई, निवास, श्रम... सारी बातों को समाहित करती है, अतः हम ईश्वर से अपने जीविका की आवश्यक वस्तुओं की मांग करें।

संवदेनशीलता में प्रार्थना करें

एक ख्रीस्तीय जो अपनी प्रार्थना में अपने लिए “रोटी” की मांग करता वह उसकी रोटी नहीं है। संत पापा ने कहा कि हम इस बात पर गौर करें, यह “हमारी” रोटी बनती है। येसु हमसे यही चाहते हैं। वे हमसे चाहते हैं कि हम केवल अपने लिए रोटी की मांग न करें वरन हम सभों के लिए, विश्व के अपने सभी भाई-बहनों के लिए इसकी मांग करें। उन्होंने कहा,“यदि हम ऐसी प्रार्थना नहीं करते तो यह ख्रीस्तीय प्रार्थना नहीं रह जाती है।” यदि ईश्वर हमारे पिता हैं तो हम दूसरों को अपने साथ संयुक्त किये बिना कैसे उसके सामने अपने हाथों को फैला सकते हैंॽ और जिस रोटी को वे हमें देते उसे हम अपने बीच से चोरी करते, तो हम अपने को उनकी संतान कैसे कह सकते हैंॽ संत पापा ने कहा कि यह प्रार्थना हमें संवेदनशील होने की मांग करता है, हमें अपने में एकात्मकता के मनोभाव धारण करने का आहृवान करता है। मैं अपनी भूख में अन्यों की भूख का अनुभव करता हूँ अतः मैं ईश्वर से अपनी प्रार्थना में तब तक निवेदन करता हूँ जब तक लोगों की जरुरतें पूरी न हो जायें। इस भांति येसु ने अपने समुदाय को, अपनी कलीसिया को इस बात की शिक्षा दी कि हम सभों की जरुरतों को ईश्वर के सम्मुख लायें। “पिता, हम सभी आप की संतान हैं, हम पर कृपा दृष्टि कीजिए।” संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हम यहाँ उन बच्चों की याद करें जो युद्धग्रस्त देशों में भूखे हैं, यमन और सीरिया के भूखे बच्चे, उन देशों के बच्चें जहाँ खाने की चीजें का अभाव है जैसे कि सूडान में। संत पापा फ्रांसिस ने उन सभी बच्चों की याद करते हुए सभों के साथ ईश्वर को पुकारते हुए यह प्रार्थना की, “पिता, हमारे प्रतिदिन का आहार आज हमें दे।”

रोटी को नहीं बांटना, दोष का कारण

हम अपनी प्रार्थना में जिस रोटी की याचना ईश्वर से करते हैं वही हमें एक दिन दोषी करार देगा। हम अपने पड़ोसियों, अपने निकट रहने वालों के साथ अपनी रोटियों को नहीं बांटने के कारण दंडित किये जायेंगे। यह रोटी पूरी मानवता के लिए उपहार में दी गई है लेकिन हममें से कुछ लोगों ने इसे अपने अधिकार में कर लिया है। संत पापा ने कहा कि प्रेम में ऐसा स्वीकार्य नहीं है। ईश्वर का प्रेम जो हम सभों के लिए है वे हमारे इस स्वार्थपन को सहन नहीं कर सकते हैं।

जो कुछ है उसे येसु को दें

एक समय येसु के पास लोगों की भीड़ थी जो अपने में भूखे थे। येसु ने पूछा कि किसी के पास खाने को कुछ है और केवल एक ही बच्चे के पास खाने को पांच रोटियाँ और दो मच्छलियाँ थीं, जिसे उसने स्वेच्छा से दूसरों के साथ बांटा। येसु ने इस उदारता को अपनी आशीष से भर दिया। (यो.6.9) उस बच्चे ने “हे पिता हमारे” की प्रार्थना को अच्छी तरह समझा। “भोजन हमारे लिए व्यक्तिगत संपति नहीं है हम इस बात का ख्याल करें”, संत पापा ने कहा। यह ईश्वर का हमारे लिए दिया हुआ उपहार है हमें इसे एक दूसरे के संग बांटना है।

संत पापा ने कहा कि वास्तव में भीड़ के लिए येसु द्वारा रोटियों का चमत्कार अपने में बड़ा नहीं था लेकिन उस बच्चे की उदारता बड़ी थी। येसु हमें कहते हैं तुम्हारे पास जो है उसे मुझे दो और उनके द्वारा मैं चमत्कार करूंगा। रोटी के उस चमत्कार द्वारा येसु स्वयं अपने आप को हमारे लिए यूख्रारीस्त की रोटी में प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह यूख्रारीस्त बलिदान है जो हमारी अनंत भूख को मिटाती है जिसके द्वारा ईश्वर हर मानव को प्रोषित करते यद्यपि मानव उस रोटी की खोज करता है।  

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों को एक साथ मिलकर “हे पिता हमारे” प्रार्थना करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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