राष्ट्रवाद एवं परमाणु युद्ध के ख़तरों से सन्त पापा चिंतित

संत पापा फ्राँसिस

सन्त पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को विदेशियों के खिलाफ आक्रामक भावनाओं के पुनर्उदय और साथ ही सामान्य जनकल्याण की उपेक्षा करनेवाले राष्ट्रवाद पर गहन चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति अंतरराष्ट्रीय सहयोग, आपसी सम्मान और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को गौण बना देते हैं।

सन्त पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को विदेशियों के खिलाफ आक्रामक भावनाओं के पुनर्उदय और साथ ही सामान्य जनकल्याण की उपेक्षा करनेवाले राष्ट्रवाद पर गहन चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति अंतरराष्ट्रीय सहयोग, आपसी सम्मान और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को गौण बना देते हैं।

वाटिकन में पहली मई से 03 मई तक सामाजिक विज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद की पूर्णकालिक सभा में गुरुवार को 50 सदस्यों ने भाग लिया। सभा में राष्ट्र और राज्य पर गहन विचार विमर्श किया गया। सदस्यों को सम्बोधित शब्दों में सन्त पापा फ्राँसिस ने परमाणु युद्ध के ख़तरों पर भी गहन चिन्ता व्यक्त की।

आप्रवास और संकीर्ण राष्ट्रवाद

सन्त पापा फ्राँसिस ने रेखांकित किया कि कलीसिया ने हमेशा लोगों की विविध संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और परम्पराओं का सम्मान करते हुए अपनों एवं अन्यों के प्रति प्रेम और एकात्मता का आग्रह किया है। साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि अन्यों के प्रति सम्मान के अभाव में दूसरों को बाहर करने और उनसे नफ़रत करने के प्रति हमारा झुकाव बढ़ जाता है जिसके दुखद परिणाम होते हैं, संकीर्ण राष्ट्रवाद और दीवारों के निर्माण में देखने को मिलते हैं तथा नस्लवाद अथवा यहूदी-विरोधीवाद को प्रश्रय देते हैं। 

उन्होंने ध्यान आकर्षित कराया कि प्रायः राज्य और प्रशासन भी, खास तौर पर आर्थिक स्वार्थों की वजह से किसी एक प्रमुख समूह अथवा दल के हितों के अधीन हो जाते हैं, जो अपने क्षेत्र के भीतर निवास करनेवाले जातीय, भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करते हैं। इसके विपरीत, सन्त पापा ने कहा, "जिस तरह एक राष्ट्र प्रवासियों का स्वागत करता है, उसी से मानवीय गरिमा और मानवता के साथ उसके संबंध के बारे में पता चलता है।"

एकात्मता की अपील

उन्होंने अपील की कि अपने घर से पलायन कर अन्यत्र शरण लेने पर बाध्य किये गये व्यक्ति अथवा परिवार का मानवता के नाते स्वागत किया जाये। इस सन्दर्भ में, आप्रवासी का स्वागत कैसे किया जाये उन्होंने अपने 4-क्रिया फार्मूला को दोहराया और वह हैः स्वागत करना, रक्षा करना, समर्थन देना और एकीकृत करना।

सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि कोई भी राष्ट्र स्वतः को विश्व से अलग नहीं कर सकता क्योंकि अलगाव नागरिकों के सामान्य हित को क्षति पहुँचायेगा तथा जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण के ह्रास, नई दासताएँ और शांति के समक्ष उन्हें वर्तमान विश्व की महान चुनौतियों को लड़ने में असमर्थ बना देगा।

परमाणु ख़तरा

सन्त पापा फ्राँसिस ने गहन क्षोभ व्यक्त किया कि एक बार फिर विश्व में परमाणु हमलों का ख़तरा बढ़ता नज़र आ रहा है जिसे रोकने के लिये विश्व के प्रत्येक राष्ट्र द्वारा हर सम्भव प्रयास किये जाने चाहिये। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि नवीन तकनीकियों का उपयोग विकास के लिये जाना चाहिये राष्ट्रों के बीच युद्धों को भड़काने के लिये नहीं।

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