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येसु जीवन की रोटी हैं
संत पापा फ्रांसिस ने मकेदूनिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान स्कोपेजे के प्रांगण में यूखारीस्तीय बलिदान अर्पित किया।
“मैं जीवन की रोटी हूँ जो मेरे पास आता है उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है उसे कभी प्यास नहीं लगेगी”। (यो.6.35) हमने येसु के वचनों को अभी-अभी सुना है।
सुसमाचार में एक भीड़ येसु के चारों ओऱ जमी थी। उन्होंने रोटियों का चमत्कार देखा था यह उन घटनाओं में से एक थी जो येसु के शिष्यों के मन और दिल में छाया हुआ था। यह एक समारोह के समान था जहाँ ईश्वर अपनी बड़ी उदारता को दिखलाते और अपने बच्चों की चिंता करते हैं जो रोटियों को आपस में साझा करते हुए एक दूसरे के लिए भाई-बहन बनते हैं। हम एक क्षण उस भीड़ के बारे में विचार करें। वे लोगों जो भूखे-प्यासे चुपचाप येसु के वचनों की खोज करते थे अपने हाथों में और अपने शरीर में येसु के चमत्कार का अनुभव करते हैं जो भ्रातृत्व में उन्हें बहुतायत में तृप्त करती है।
येसु जीवन देने आये
ईश्वर हमें जीवन देने हेतु धरती पर आये। वे हमेशा ऐसा करते हैं जो हमारे सोच विचारों और आशाओं के परे जाता है। यह हमें विचार करने में बाध्य करता और हमारे मनोवृतियों में परिवर्तन लाते हुए एक नई क्षितिज की ओर ले चलता है जहाँ हम सच्चाई को एक अलग नजरों से देखने के काबिल होते हैं। वे स्वर्ग से उतरी हुए जीवन की रोटी हैं, जो हमें कहते हैं, “जो मेरे पास आता है उसे कभी भूखा नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है उसे कभी प्यास नहीं लगेगी”।
उन लोगों ने अपने में इस बात का अनुभव किया कि ऱोटी की भूख का एक दूसरा नाम भी है, ईश्वर की भूख, भ्रातृत्व, मिलन और भोज में शामिल होने की भूख।
संत पापा ने कहा कि हम अपने जीवन में भ्रामक सूचना की बासी रोटी खाने के आदी हो गये हैं जो हमें अनादर का गुलाम बना देती है। हम सोचते हैं कि दूसरों के द्वारा हमारा अनुसरण करना हमारी प्यास बुझायेगी, यद्यपि हम अपने को उदासीनता और असंवेदशीलता का शिकार होता पाते हैं। हम अपनी शान-शौकत और तड़क-भड़क में खोये रहते हैं और उपभोक्तावाद, अकेलेपन का शिकार होते हैं। हम दूसरों से अपना संबंध स्थापित करने में ग्रस्ति रहते और भ्रातृत्व के स्वाद को खो देते हैं। हम अतिशीघ्र और सुरक्षित परिणाम की चाह रखते जो हमें अपने में अधीरता और चिंता से बोझिल कर देती है। हम आभासी बातों के गुलाम हो जाते और सच्चाई के स्वाद को खो देते हैं।
हम भूखे हैं
संत पापा ने कहा कि हम स्पष्ट शब्दों में यह घोषित करने हेतु न डरें, प्रभु, हम सभी भूखे हैं। हम ईश्वर के शब्दों के भूखे हैं जो हमारी संकीर्णता और अकेलेपन को दूर करती है। हम भ्रातृत्व के भूखे हैं जो उदासीनता, बेईज्जती और बदनामी को हम से दूऱ करती है। हम मिलन के भूखे हैं जिसे येसु के शब्द आशा,कोमलता और संवेदना के रुप में हमारे हृदयों में जागृत करती और हमारे जीवन में परिवर्तन लाती है।
हे प्रभु, हम अनुभूति के भूखे हैं जैसे की भीड़ थी जो हमारे करुणा की वृद्धि करती जिसके फलस्वरुप हमारी रुढ़िवादी धारणा का विनाश होता और हम ईश्वरीय करुणा को दूसरों के साथ बांटते विशेषकर उनके साथ जिनकी सुधि कोई नहीं लेता है, जो भूला दिये गये हैं या अपने में तिरस्कृत हैं। हम निर्भय होकर यह कहें कि हम वचन रुपी रोटी, भ्रातृत्व की रोटी के लिए भूखे हैं।
येसु का बुलावा हाथ बंटाने हेतु
संत पापा ने कहा कि कुछ ही समय में हम वेदी में रोटी का उपहार अर्पित करेंगे जो जीवन की रोटी है। हम इसे ईश्वर की आज्ञाकारिता में करते हैं,“जो मेरे पास आता वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझ में विश्वास करता वह कभी प्यासा नहीं होगा”।(यो.6.35) येसु हमें अपने पास बुलाते हैं। वे हमें अपनी ओर कदम बढ़ने, आने को कहते हैं। वे हमें बुलाते और अपने प्रेरितिक कार्य में हाथ बंटाने का निमंत्रण देते हैं। वे हमें कहते हैं “आओ”। इसका अर्थ ईश्वर के लिए यह नहीं कि हम सिर्फ एक स्थान से दूसरे स्थान को जायें बल्कि वे हमें अपने वचनों से प्रेरित और परिवर्तित करते हैं जिससे हम अपने कार्यों, विकल्पों और अनुभवों में उनके मनोभावों को धारण कर सकें। उनकी रोटी की भाषा कोमलता, मित्रता, उदारता में दूसरों से लिए समर्पण है, प्रेम की भाषा जो ठोस और दृश्यमान है क्योंकि यह सत्य है जिसकी जरुरत हमें रोज दिन होती है।
हर यूखारीस्तीय बलिदान में येसु अपने को तोड़ते और हमें देते हैं। वे हमें अपने को तोड़ने और अपने साथ संयुक्त होते हुए अपने को दूसरों के लिए देने को कहते हैं जिससे चमत्कारिक ढ़ग से इस देश के हर शहर और कोने में उनकी करुणा और प्रेम प्रसारित हो सकें।
भूख की तृप्ति प्रेम में
रोटी की भूख, भ्रातृत्व की भूख और ईश्वर की भूख। संत मदर तेरेसा ने इस बातों को अपने जीवन में दो स्तंभों, यूखारीस्त में येसु और गरीबों में येसु की मूरत स्वरुप आत्मसात किया। उन्होंने प्रेम का अनुभव किया और उस प्रेम को प्रसारित किया। इन दो स्तंभों के साथ उन्होंने अपने जीवन की यात्रा को यादगार बनाते हुए अपनी भूख और प्यास को तृप्त करने की चाह रखी। वे येसु के पास ठीक उसी तरह गयीं जैसे वे गरीबों, प्रेमविहीनों, अकेलेपन में रहने वालों और भूले-बिसरों के पास गयीं। अपने भाई-बहनों के पास जाने के द्वारा उन्होंने येसु के चेहरे को पाया क्योंकि वह जानती थी कि “ईश्वर को प्रेम करना और पड़ोसी को प्रेम करना एक है, सबसे छोटे लोगों में हम येसु को पाते और येसु में ईश्वर को पाते हैं”। केवल प्रेम ही उनके जीवन को तृप्त कर सकता था।
संत पापा ने कहा कि हमारे जीवन और हमारे अनुभवों में पुनर्जीवित येसु आज भी हमारे साथ चलना जारी रखते हैं। वे हमारी भूख को जानते और हमें अपने पास बुलाते हैं। हम एक दूसरे को प्रोत्साहित करें कि हम उनकी ओर आते हुए उनके असीम प्रेम को अनुभव करें। हम वेदी के संस्कार और अपने भाई-बहनों के संस्कार में उन्हें अपनी भूख और प्यास मिटाने दें।
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