बुल्गारिया के काथलिकों को संत पापा का संदेश

बुल्गारिया के काथलिक समुदाय से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

संत पापा ने काथलिक समुदाय को "विश्वास एवं प्रेम की नजर से देखने" हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "विश्वास की नजर से देखना। मैं "भले संत पापा" (संत पापा जॉन तेइसवें) की याद करता हूँ। उन्होंने कहा था कि उनका हृदय प्रभु से इतना जुड़ा था कि वे अपने आस-पास के लोगों के साथ जो उनसे असहमत थे महसूस कर सकते थे, जो बुराई के अलावा कुछ भी नहीं देख सकते तथा उन्हें "कयामत का पैगंबर" कहते थे। वे ईश्वर की दया पर भरोसा रखने की आवश्यकता से आश्वस्त थे जो हमेशा हमारा साथ देते और विपत्ति के बीच भी अपनी बड़ी और अप्रत्याशित योजनाओं को साकार करने में सक्षम होते हैं।" (वाटिकन द्वितीय महासभा, 11 अक्टूबर 1962)

ईश प्रजा की विशेषता-

ईश्वर की प्रजा - देखना, भरोसा करना एवं खोजना सीखती तथा पुनरूत्थान की शक्ति से संचालित होती है। वह उस श्रृंखला को स्वीकारती है कि उसमें हमेशा कष्टमय एवं अप्रिय परिस्थिति आयेगी, फिर भी वह अपना हाथ नहीं मरोड़ती, डर से पीछे नहीं हटती अथवा अविश्वास, परेशानी, बाधा आदि की भावना उत्पन्न नहीं करती क्योंकि ये भावनाएँ किसी की भलाई नहीं करती बल्कि आत्मा को हानि पहुचाते एवं हर प्रकार के समाधान में बाधा डालते हैं।  

ईश्वर के स्त्री पुरूष में, इस बात का साक्ष्य देने के लिए प्रथम रचनात्मक कदम उठाने हेतु साहस होना चाहिए कि प्रेम मरा नहीं है बल्कि वह हर बाधा पर विजय है। ईश प्रजा इसे अपनाती है क्योंकि इसने इसे येसु से सीखा है जो ईश्वर से संयुक्त हैं, जिन्होंने अपना शरीर ही दाँव पर लगा दिया ताकि कोई भी अकेला अथवा परित्यक्त महसूस न करे।

हर व्यक्ति ईश्वर की संतान-

संत पापा ने एक शरणार्थी शिविर जिसका दौरा उन्होंने किया था उसका उदाहरण दिया जहाँ उनकी मुलाकात बेहतर स्थान की खोज में अपना घर छोड़ने वाले लोगों एवं शिविर में लोगों की मदद करने वाले कारितास के स्वयंसेवकों से हुई। उन्होंने संत पापा को बतलाया कि उनके जीवन एवं कार्य का केंद्रविन्दु है यह पहचानना कि हर व्यक्ति ईश्वर की संतान है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।  

संत पापा ने कहा, "किसी को प्यार करने के लिए उसके जीवनवृत्तांत को जानने की आवश्यकता नहीं है। प्रेम उससे बढ़कर है वह पहला कदम लेता है क्योंकि यह मुफ्त है।" संत पापा ने बतलाया कि उस कारितास केंद्र में कई ख्रीस्तीय हैं जिन्होंने ईश्वर की नजरों से देखना सीख लिया है। ईश्वर विस्तारपूर्वक जानने की चिंता नहीं करते बल्कि पिता की निगाह से हरेक व्यक्ति का इंतजार करते हैं। विश्वास की नजर से देखने का अर्थ, हमारे लिए आह्वान है कि हम जीवन के बारे नाम पत्र पर देखते हुए समय व्यतीत न करें, न ही लोगों को श्रेणीबद्ध करें कि वे प्रेम के योग्य हैं अथवा नहीं किन्तु एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करें जिसमें हर व्यक्ति प्रेम किया गया महसूस कर सके, विशेषकर, जो ईश्वर द्वारा भूला दिये गये और अपने भाई-बहनों द्वारा छोड़ दिये गये महसूस करते हैं।

आशा का निर्माण-

संत पापा ने कहा कि जो प्रेम करते हैं वे आत्मदया पर समय नष्ट नहीं करते बल्कि कुछ ठोस करना चाहते हैं। वे समस्या को देखने, पहचानने एवं उनका सामना करना सीखते हैं। वे प्रभु की नजरों के अनुसार आत्मजाँच करते हैं। जैसा कि संत पापा जॉन पौल द्वितीय कहते हैं, "मैं कभी किसी निराशावादी से नहीं मिला जो अच्छा कर सकता था।" निराशावादी नहीं बनने में प्रभु प्रथम हैं। वे हम सभी के लिए लगातार पुनरूत्थान का द्वार खोलते हैं। यह कितना अच्छा है जब हमारा समुदाय आशा निर्माण करने वाला स्थान बन जाता है।

दूसरी ओर, ईश्वर की नजरों से चीजों को देखने के लिए हमें अन्य दूसरे लोगों की आवश्यकता है। हमें उनके द्वारा येसु के समान देखने एवं अनुभव करने सीखना है और हमारे हृदय को उनके समान महसूस करना है।

प्रभु हमारे परिवार के केंद्र में आना चाहते हैं

संत पापा ने मितको और मिरोस्वाला नामक एक दम्पति के साक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका दूसरा घर, पल्ली है जहाँ से वे आगे बढ़ने के लिए शक्ति प्राप्त करते हैं। इस तरह पल्ली एक बड़ा परिवार बन जाता है जहाँ हर व्यक्ति अथवा परिवार प्रभु की उपस्थिति महसूस करता। प्रभु हमारे परिवार के केंद्र में आना चाहते हैं और हमसे कहना चाहते हैं जैसा कि उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था, "तुम्हें शांति मिले।"

संत पापा ने सभी दम्पतियों को परामर्श दिया कि वे एक दूसरे से नाराज स्थिति में सोने न जाएँ। उन्होंने कहा कि यह ख्रीस्तियों के लिए भी मददगार है। यह सच है कि हम कई चीजों से परेशान रहते हैं किन्तु अपने आप पर ध्यान दें कि कड़वाहट अथवा बदले की भावना हम पर हावी न हो। हम इस दूसरे की सहायता करें ताकि हमारे हृदयों में प्रज्वलित पवित्र आत्मा कभी बाहर न हो जाए।  

पल्लीवासियों का पुरोहितों से संबंध-

संत पापा ने ईश्वर की प्रजा की अगली विशेषता बतलाते हुए कहा कि वह अपने पुरोहितों के प्रति आभारी होती है और दूसरी ओर पुरोहित भी उनसे सीखते हैं कि लोगों, परिवारों और उनके बीच रहते हुए वे किस तरह विश्वास में मजबूत बन सकते हैं। एक जीवित समुदाय जो एक-दूसरे का समर्थन करता, साथ देता, एकीकृत होता एवं समृद्ध बनाता है, वह कभी अलग नहीं होता बल्कि एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है एवं उनके लिए ईश्वर के आशीर्वाद का चिन्ह बनता है। एक पुरोहित अपने लोगों के बिना अपनी पहचान खो देता है जबकि व्यक्ति एक पुरोहित के बिना भटक जाता है। पुरोहित अपने लोगों के लिए संघर्ष करता एवं विश्वासी अपने पुरोहित के लिए कष्ट उठाते हैं इस तरह वे एक-दूसरे से संयुक्त होते हैं। हम में से कोई भी सिर्फ अपने लिए नहीं जीता। इस प्रकार हम एक ऐसी कलीसिया, ऐसा परिवार एवं समुदाय बनना सीखते हैं जो एक माँ के समान स्वागत करती, सुनती तथा एक-दूसरे की चिंता करती है।

कलीसिया एक माता-

कलीसिया एक माता है जो अपने बच्चों की समस्याओं को सुनती है। वह उन्हें तैयार जवाब नहीं देती परम्तु उनके साथ जीने एवं मेल-मिलाप के रास्ते को खोजती है। वह ईश्वर के राज्य को प्रस्तुत करने की कोशिश करती है। संत पापा ने कहा कि एक कलीसिया, एक परिवार या समुदाय जो जीवन की समस्याओं की जटिलताओं को स्वीकार करते हैं, वे उन्हें अपना बनाते, अपने हाथों में लेते एवं उन्हें अपना स्नेह देते हैं। जो कलीसिया या परिवार आज के युग में साक्ष्य देती है वह विश्वास, आशा एवं प्रभु के प्रति प्रेम के लिए खुली होती है।

संत सिरिल एवं संत मेथोडियस-

संत पापा ने संत सिरिल एवं संत मेथोडियस की याद दिलाते हुए कहा कि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि ईश्वर के साथ बात करने का सच्चा माध्यम हमारी अपनी भाषा होती है। इस विचार ने उन्हें बाईबिल का अनुवाद करने की प्रेरणा दी ताकि कोई भी व्यक्ति जीवन वचन से वंचित न रहे।

संत सिरिल एवं संत मेथोडियस के पदचिन्हों पर खुले द्वार का घर होने का अर्थ है कि हमें आज भी साहसी और रचनात्मक होने की आवश्यकता है। हमें चिंतन करने की जरूरत है कि हम किस तरह युवा पीढ़ी के लिए ईश्वर के प्रेम को ठोस एवं सरल भाषा में अनुवाद कर सकें। हम अनुभव से जानते हैं कि युवा कई बार हमारे कार्यक्रमों में अपनी आश्वयकताओं, समस्याओं एवं मुद्दों का जवाब नहीं पाते हैं।

यही कारण है कि हमें पुनः अवलोकन करने तथा हमारे प्रेरितिक कार्यों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। उनके हृदयों तक पहुँचने के लिए रास्ता खोजने, उनकी आकांक्षाओं को जानने का प्रयास करने तथा उनके सपनों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है उस सामुदायिक परिवार की तरह जो उनका समर्थन करता, उनका साथ देता एवं उनके लिए भविष्य की आशा प्रदान करता है।

युवाओं पर ध्यान-

संत पापा ने काथलिकों का आह्वान करते हुए कहा कि वे नई चुनौतियों से न डरें। वे कभी न भूलें कि कलीसिया के जीवन में सबसे सुन्दर पाठ उस समय लिखा गया जब ईश प्रजा ने अपने समय में रचनात्मक रूप से ईश्वर के प्रेम को प्रकट किया और समस्याओं का धीरजपूर्वक सामना किया। युवाओं के लिए बड़ा प्रलोभन है मूल का गहरा नहीं होना। जिसके कारण वे उखाड़ दिये गये एवं एकाकी महसूस करते हैं। जब उन्हें उनकी क्षमताओं को निखारने का अवसर मिलता है तो बहुधा वे उसे निराशा के कारण आधे रास्ते पर ही छोड़ देते हैं क्योंकि उनकी जड़ें गहरी नहीं होतीं, जिनपर वे भविष्य के लिए आधार ले सकें। उससे भी बढ़कर कि उन्हें अपना घर, देश एवं परिवार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

संत पापा ने काथलिकों का आह्वान करते हुए कहा कि वे नई चुनौतियों से न डरें। यह कभी नहीं भूल सकते कि कलीसिया के जीवन में सबसे सुंदर अध्याय तब लिखे गए थे, जब ईश्वर की प्रजा ने अपने समय में ईश्वर के प्रेम का अनुवाद करने के लिए रचनात्मकता के साथ और चुनौतियों का धीरजपूर्वक सामना करते हुए किया था। यह जानना अच्छा है कि हम एक महान जीवित इतिहास पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन यह महसूस करना और भी सुंदर है कि हमको इसके अगले अध्याय को लिखने के लिए कहा जा रहा है। अतः एक ऐसी कलीसिया बनने से कभी न थकें जो इस भूमि पर 21वीं सदी में विरोधाभास, दुःख और गरीबी के बीच भी जन्म दे सकती है। हमेशा एक कान से सुसमाचार को और दूसरे कान से लोगों के हृदय को सुन सकती है।

संत पापा ने सभी विश्वासियों को धन्यवाद देते हुए उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान किया।

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