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परमेश्वर का वचन मुक्ति और स्वतंत्रता का आह्वान करता है,संत पापा
संत पापा ने लम्पेदूसा की पहली यात्रा का 6वीं वर्षगांठ पर सोमवार 8 जुलाई को संत पेत्रुस महागिरजाघर में पवित्र मिस्सा समारोह का अनुष्ठान किया।
संत पापा फ्राँसिस ने लम्पेदूसा की पहली यात्रा का 6वीं वर्षगांठ पर सोमवार 8 जुलाई को संत पेत्रुस महागिरजाघर में पवित्र मिस्सा समारोह का अनुष्ठान किया। इस समारोह में प्रवासियों, शरणार्थियों और उनके लिए काम करने वाले करीब 250 लोगों ने भाग लिया। वे सभी विशेष रूप से समग्र मानव विकास हेतु गठित परमधर्मपीठ से संलग्न प्रवासी और शरणार्थी विभाग द्वारा आमंत्रित किए गए थे।
याकूब की सीढ़ी
संत पापा ने फ्राँसिस ने आज के प्रथम पाठ उत्पत्ति ग्रंथ पर चिंतन करते हुए प्रवचन में कहा कि याकूब ने बएर-शेबा छोड़कर हारान के लिए प्रस्थान किया। शाम को एक याकूब एकांत जगह में रुकने और आराम करने का फैसला किया। रात को सपने में उसने एक सीढ़ी देखा: इसका आधार पृथ्वी पर था और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचता था। ईश्वर के दूत उसपर उतरते-चढ़ते थे। (सीएफ, उत्पत्ति , 28: 10-22)। सीढ़ी, मसीह के अवतार में ऐतिहासिक रूप से पूरे हुए दिव्य और मानव के बीच संबंध का प्रतिनिधित्व करता है (सीएफ, योहन, 1:51),यह पिता ईश्वर के मुक्ति विधान को प्रकट करता है। सीढ़ी दिव्य योजना का रुपक है जो मानवीय गतिविधि के पहले होती है। ईश्वर स्वयं इस धरती पर आये, मनुष्य का रुप लिया एम्मानुएल- (ईश्वर हमारे साथ) और मनुष्यों को मुक्ति दिलाई। उनहोंने मनुष्यों को पूर्ण जीवन का भागी बनाया।
सच्ची मुक्ति
संत पापा ने कहा कि याकूब नींद से जागने के बाद प्रतिज्ञा की कि यदि ईश्वर उसके साथ सदा रहेगा, यात्रा में उसकी रक्षा करेगा तो वही प्रभु उसका ईश्वर होगा।” (उत्पत्ति 28:21) यही पूर्ण विश्वास हम संत मत्ती के सुसमाचार में वर्णित सिनागॉग के प्रमुख और बीमार महिला में पाते हैं। दोनों येसु के पास आये और येसु ने सिनागॉग के प्रमुख की बेटी को मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दिया। महिला अपनी बामारी के कारण अपवित्र और हाशिये पर जीने के लिए मजबूर थी पर येसु ने सामाजिक बंधनों की परवाह न करते हुए उन्हें सच्ची मुक्ति प्रदान की।
प्रवासियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता
संत पापा ने कहा कि लम्पेदूसा यात्रा की 6वीं वर्षगाँठ पर वे उन सभी की याद करते हैं जो अपनी कठिनाइयों से उबरने का प्रयास करते हैं। वे लोग मरुभूमि में मरने के लिए छोड़ दिये जाते हैं और अनेक हिरासत केंद्रों में अनेक तरह की शारीरिक और मानसिक यातनायें सहते हैं। युद्ध और हिंसा से बचने के लिए तथा एक निश्चित भविष्य और शांति की खोज में अपने देश को छोड़ने वाले इन गरीब लोगों के दुःख को कम करने, उनकी मदद करने हेतु आज प्रभु हमें आह्वान करते हैं। हम अपनी सेवा द्वारा उन्हें ईश्वर की देखभाल करने की भावना का अनुभव करने दें।संत पापा ने कहा कि प्रवासियों को हम दो अर्थों में लेते हैं सर्वप्रथम तो वे सभी मानव व्यक्तियों में से एक हैं, वे व्यक्ति हैं और दूसरा कि वे आज के वैश्विक समाज द्वारा खारिज किए गए सभी लोगों के प्रतीक हैंसंत पापा ने कहा कि याकूब की सीढ़ी के समान प्रभु येसु, पृथ्वी और स्वर्ग के बीच के संबंध की गारंटी हैं और सभी के लिए सुलभ हैं। फिर भी इस सीढ़ी पर चढ़ने के लिए प्रतिबद्धता, प्रयास और अनुग्रह की आवश्यकता होती है। हमें सबसे लाचार और कमजोर लोगों की मदद हेतु तत्पर रहना चाहिए। यह एक जबरदस्त जिम्मेदारी है, जहाँ हम मुक्ति और स्वतंत्रता के मिशन को पूरा करना चाहते हैं जिसमें स्वयं ईश्वर हमारा साथ देते हैं।
अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने कार्यकर्ताओं को उनके सहयोग और एकजुटता के इस सबसे सुंदर उदाहरण के लिए धन्यवाद दिया।
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