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द्वितीय वर्ग के लोग वे हैं जो तिरस्कार करते
संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 9 मई को करीब 500 रोम और सिनती लोगों के साथ वाटिकन में एक प्रार्थना सभा में भाग लिया तथा उनके प्रति भेदभाव एवं जाति के नाम पर घृणा के लिए उनके दुःखों के प्रति सहानुभूति प्रकट की।
रोम निवासी रोम और सिनती लोगों के प्रति अपना आध्यात्मिक सामीप्य प्रकट करते हुए संत पापा ने कहा कि उनके अपमान, जाति के नाम भेदभाव एवं हिंसा की खबर सुन उन्हें अत्यन्त दुःख होता है। यह सभ्यता के विरूद्ध है जबकि प्रेम सभ्य है।
प्रार्थना सभा का आयोजन इताली काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (चेई) के विस्थापितों के लिए गठित फाऊँडेशन द्वारा किया गया था जिसमें चेई के अध्यक्ष कार्डिनल ग्वालतियेरो बास्सेती, प्रेरितिक कार्यों से जुड़े लोग एवं अन्यों ने भाग लिया।
प्रार्थना सभा एक सरकारी आवास परिसर में एक खानाबदोश परिवार के लिए अपार्टमेंट के आवंटन के खिलाफ रोम परिवार के निवासियों द्वारा हिंसक विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर आयोजित की गयी थी।
रूढ़िबद्धता
एक रोम पुरोहित एवं चार बच्चों की एक माता के हृदय स्पर्शी साक्ष्य सुनने के बाद संत पापा ने अलगाव के कड़वे दर्द के लिए दुःख प्रकट किया जिसको वे अपनी त्वचा में महसूस करते हैं जो उन्हें एक किनारे ढकेल देता है। उन्होंने कहा, "समाज परियों की कहानियों, रूढिवादिता, भिखारी और पापी के समान जीता है।" संत पापा ने प्रश्न किया कि कौन पापी नहीं है? उन्होंने कहा कि हम सभी पापी हैं, हम सभी गलतियाँ करते हैं किन्तु दूसरों की सही अथवा झूठे पापों के लिए मैं अपना हाथ नहीं धो लेता। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को पहले अपने पापों पर गौर करना चाहिए और यदि वह दूसरे व्यक्ति को गलत रास्ते पर जाते देखता है तो उसे मदद करना चाहिए।
विशेषण मन और हृदय के बीच दरार पैदा करते हैं
संत पापा ने कहा, "एक चीज से मुझे गुस्सा आती है और वह चीज है कि हम बातचीत में व्यक्तियों के लिए विशेषण का प्रयोग करते हैं। व्यक्ति के लिए कुरूप, खराब, शैतान आदि विशेषणों का प्रयोग लोगों के मन और हृदय के बीच दूरी उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि यह कोई राजनीतिक, सामाजिक, संस्कृतिक अथवा भाषा की समस्या नहीं है बल्कि मन और हृदय के बीच की दूरी है।"
संत पापा ने स्वीकार किया कि द्वितीय वर्ग के लोग समाज में होते हैं किन्तु सही में द्वितीय वर्ग के नागरिक वे हैं जो लोगों का तिरस्कार करते हैं क्योंकि वे उनका आलिंगन नहीं कर सकते। विशेषण एवं अपमान के द्वारा वे लोगों को बाहर करते एवं अपने हाथों में झाड़ू लेकर उन्हें हटाने की कोशिश करते हैं।
वास्तविक रास्ता?
संत पापा ने कहा कि सही रास्ता भाईचारा का रास्ता है। उन्होंने खतरे एवं आक्रोश या कुढ़ के बढ़ने की चेतावनी दी क्योंकि विद्वेष हृदय, सिर और सब कुछ को बीमार बना देता और बदले की भावना को उभाड़ता है।
नाम लिये बिना संत पापा ने इटली के आपराधिक संगठनों की ओर इंगित कर उन्हें बदले की भावना का मास्टर कहा। उन्होंने कहा, "एक दल के लोग जो बदला लेते तथा शांति से जीते हैं, यह अपराधी लोगों का दल है न कि काम करने वालों का।"
संत पापा ने रोम और सिनती लोगों से कहा कि जब सच्चे ईश्वर में दृढ़ आशा हो तो यह हमें कभी निराश नहीं करती। माताएं जो अपने बच्चों की आँखों में आशा की झलक देखती हैं उन्हें साकार करने के लिए हर दिन मेहनत करती हैं। कोई अस्पष्ट चीज के लिए नहीं बल्कि अपने बच्चों को बढ़ाने, उनके पालन पोषण, शिक्षा और समाज में शामिल करने के लिए। ये ठोस चीजें हैं जो आशा प्रदान करते हैं, रास्ता दिखलाते हैं और क्षितिज का निर्माण करते हैं।
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