दुःख में ईश्वर को समर्पित करना येसु सिखाते हैं

Pope Francis

संत पापा ने कहा ईश महिमा प्रेम में अंतिम व्यारी के भोज उपरांत हम येसु के प्रथम वचन को देखते हैं जहाँ वे अपनी आंखें स्वर्ग की ओर उठाते हुए कहते हैं,“पिता,वह समय आ गया है, तू अपने पुत्र को महिमान्वित कर, संसार की सृष्टि से पहले मुझे तेरे यहाँ जो महिमा प्राप्त थी, अब उस महिमा से मुझे विभूषित कर।” (यो.17.5.5) येसु अपने को महिमान्वित करने हेतु कहते हैं, यह निवेदन हमारे लिए विरोधाभास लगता है क्योंकि वे अपने दुःखभोग की दहलीज पर हैं। इस महिमा का संदर्भ क्या हैॽ बाईबल में महिमा, हमारा ध्यान ईश्वर के प्रकट होने की ओर कराता है जहाँ वे निश्चित रुप में मानव को बचाने हेतु उनके बीच में आते हैं। येसु ख्रीस्त पिता की ओर से अपने को हमारी मुक्ति हेतु एक विशिष्ट रुप में प्रकट करते हैं। वे अपने पास्का में, क्रूस मरण से पुनर्जीवित होते हुए अपनी महिमा प्रकट करते हैं।(यो. 12.23-33) यहां हम ईश्वर को अपनी महिमा प्रकट करते हुए देखते हैं वे हमारे बीच से अंतिम पर्दा हटाते और हमें पहले की अपेक्षा अधिक आश्चर्यचकित करते हैं। वास्तव में हम ईश्वर की महिमा को उनके विशुद्ध प्रेम में पाते हैं जो असीमित और अतुल्य है जिसके बारे में हम सोच-विचार और कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

सच्ची महिमा प्रेम की महिमा

संत पापा ने कहा कि हम येसु ख्रीस्त की प्रार्थना को अपना बनायें। हम पिता से अपने लिए निवेदन करें कि वे इन दिनों हमारी आंखों से पर्दा दूर करें जिससे हम क्रूसित येसु की ओर अपनी निगाहें फेरते हुए अपने में ईश्वर को स्वीकार कर सकें जो कि प्रेम हैं। हम कितनी बार अपने जीवन में ईश्वर को मालिक की तरह देखते लेकिन उन्हें पिता के रुप में स्वीकार नहीं करते हैं। हम कितनी बार उन्हें कठोर न्यायकर्ता के रुप में देखते लेकिन करुणामय मुक्तिदाता के रुप में नहीं सोचते हैं। लेकिन ईश्वर हमारी इन विचारों को हम से दूर करते और नम्रता में हमारे लिए अपने प्रेम को प्रकट करते हुए हमसे उसी प्रेम की मांग करते हैं। इस भांति अपने प्रेममय जीवन के द्वारा और अपने सारे कार्यों को प्रेमपूर्ण हृदय से उनके लिए करने के फलस्वरुप हम ईश्वर की महिमा करते हैं। (कलो.3.17) सच्ची महिमा प्रेम की महिमा है क्योंकि हम केवल इसके द्वारा दुनिया को जीवन प्रदान करते हैं। यह महिमा दुनियावी महिमा के भिन्न है जहाँ हम किसी की प्रंशसा, महिमा और वाहवाही को नहीं देखते हैं। संत पापा ने कहा कि दुनियावी महिमा में हम स्वयं आकर्षण का केन्द्र-बिन्दु बन जाते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर ईश्वर की महिमा में हम विरोधाभास पाते हैं जहाँ कोई तालियाँ और दर्शक नहीं होते हैं। इस ईश्वरीय महिमा में हम केन्द्र-बिन्दु पर नहीं होते वरन् दूसरे केन्द्र पर होते हैं पास्का में हम इसी तथ्य को पाते हैं जहाँ पुत्र पिता की महिमा करते और पिता पुत्र को महिमान्वित करते हैं। हम स्वयं अपनी महिमा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज हम अपने आप से पूछें, “हम किसकी महिमा हेतु जीते हैंॽ स्वयं की महिमा या ईश्वर की महिमाॽ क्या मैं अपने लिए केवल आशा करता हूँ या अपने को दूसरों के लिए देता हूँॽ

अकेलापन कोई समाधान नहीं, प्रार्थना जरूर

अंतिम व्यारी भोज के बाद येसु गेतसेमानी बारी में प्रवेश करते, वे वहाँ भी अपने पिता से प्रार्थना करते हैं। शिष्य अपने में जगे नहीं रह सकते हैं और यूदस सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचने वाला होता है, येसु अपने में “भय और दुःख” का अनुभव करते हैं। येसु अपने ऊपर घटने वाली घटनाओं, विश्वासघात, घृणा, दुःख और असफल होने का एहसास करते हैं। वे अपने में दुःखित हैं और अपने हृदय की गहराई में दुःख से पीड़ित अपने पिता से अति कोमलता और मधुरता में बातें करते हुए कहते हैं, “अब्बा” अर्थ पिता।(मार.14.33-36) अपनी इस परीक्षा की घड़ी में येसु हमें पिता को अलिंगन करने की शिक्षा देते हैं क्योंकि प्रार्थना में उनके साथ अपने को जोड़ना हमें दुःख और दर्द की घड़ी में आगे बढ़ने हेतु साहस प्रदान करता है। अपने थकान की घड़ी में प्रार्थना हमारे लिए राहत, सांत्वना और विश्वास प्रदान करती है। अपने परित्यक्त और आंतरिक निराशा की स्थिति में येसु अकेले नहीं वरन् अपने को पिता के साथ पाते हैं। हम अपने दुःख की घड़ी में अकेला रहने की सोचते हैं बल्कि हमें येसु की तरह “पिता” को पुकारते हुए अपने को उनकी इच्छा के अनुरूप सौंपने की जरूरत है। संत पापा ने कहा लेकिन जब हम परीक्षा की घड़ी में अपने को अंदर से बंद कर लेते तो हम अपने लिए अंतरिक रुप में एक सुरंग खोदते हैं जो हमारे लिए और भी एक तरफा गहरा मार्ग बन जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में दुःख सबसे बड़ी तकलीफ नहीं है लेकिन हम इसका सामना कैसे करते हैं। अकेलापन हमारे लिए कोई समाधान नहीं लाती लेकिन प्रार्थना जरूर क्योंकि यह एक संबंध है जो हमारे विश्वास को ब्यां करती है। येसु ख्रीस्त सारी चीजों को पिता के हाथों में अर्पित करते हैं वे अपने को ईश्वर के हाथों में सौंप देते हैं। वे अपने जीवन की सारी अनुभूतियों को पिता के पास लाते और अपने संघर्ष की घड़ी में पिता के कांधों पर अपना माथा टेकते हैं। संत पापा ने कहा कि जब हम अपने जीवन की गेतसेमानी में प्रवेश करें, तो हम येसु की तरह प्रार्थना करें, “हे पिता”।

दुःख की घड़ी में क्षमा की शक्ति

अंततः येसु हमारे लिए अपने पिता को तीसरी प्रार्थना अर्पित करते हैं, “हे पिता तू उन्हें क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” (लूका. 23.34) येसु उनके लिए प्रार्थना करते हैं जिन्होंने उन्हें प्रताड़ित किया और उन्हें मृत्युदंड दिया। सुसमाचार हमें यह बतलाता है कि येसु क्रूस से यह प्रार्थना करते हैं। यह उस समय हुआ होगा जब वे अपने में घोर पीड़ा का अनुभव कर रहे थे होंगे, उनके हाथों और पैरों को कील से ठोंका जा रहा था होगा। दुःख की इस चरमसीमा में हम प्रेम की सर्वोच्चतम स्थिति को पाते हैं जहाँ से क्षमा की वह शक्ति निकलती है जो बुराइयों के घेरे को बेधती है।

ईश महिमा और क्षमा की कृपा

संत पापा ने कहा कि इन दिनों “हे पिता हमारे” की प्रार्थना करते हुए हम ईश्वर से अपने लिए एक कृपा की याचना करें कि हम अपने जीवन को ईश्वर की महिमा हेतु प्रेम में जी सकें, हम अपने दुःख की घड़ी में अपने को पिता के हाथों में समर्पित करते हुए उन्हें “आब्बा” पुकरते हुए उनकी क्षमाशीलता को प्राप्त करें और दूसरों को क्षमा करने का साहस प्राप्त कर सकें। ये दोनों चीजें एक साथ चलती हैं पिता हमें क्षमा करते और दूसरों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान करते हैं।

इतना कहने के बाद पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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