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जरूरत में पड़े व्यक्ति के प्रति करुणा, प्रेम का सच्चा चेहरा
आज का सुसमाचार पाठ भले समारी के मशहूर दृष्टांत को प्रस्तुत करता है (लूक. 10,25-37) जिसको एक शास्त्री द्वारा पूछे गये सवाल कि "अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए" के उत्तर में येसु ने बतलाया था। येसु ने उसे धर्मग्रंथ का पालन करने की सलाह दी थी जिसमें कहा गया है, "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसियों को अपने समान प्यार करो।" (पद. 27) पड़ोसी की व्याख्या अलग-अलग तरह से की गयी थी अतः उस शास्त्री ने येसु से पुनः सवाल किया, "लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?" (पद. 29)
भले समारी का दृष्टांत
तब येसु ने एक दृष्टांत सुनाकर इसका उत्तर दिया। संत पापा ने विश्वासियों को फरीसी के सवाल "अनन्त जीवन के अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? को अपने आप पर लागू करते हुए चिंतन करने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा, "यह सुसमाचार का एक सुन्दर दृष्टांत है।" यह ख्रीस्तीय जीवन का एक प्रतिमान है। एक ख्रीस्तीय को कैसे जीना है यह इसका आदर्श प्रस्तुत करता है।
दृष्टांत का नायक एक समारी था जो एक लम्बी यात्रा में, एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात करता है जो लुटेरों के हाथों पड़कर घायल और अधमरा हो गया था। वह उसे उठाता और उसकी सेवा करता है। हम जानते हैं कि यहूदी उन्हें विदेशी और अपमानित समझते थे। इसलिए यह कोई संयोग नहीं था कि येसु ने समारी को दृष्टांत में एक सकारात्मक चरित्र के रूप में चुना। वे इस पूर्वाग्रह को दूर करना चाहते थे, यह दिखलाते हुए कि एक विदेशी भी जो सच्चे ईश्वर को नहीं जानता और न ही मंदिर जाता है, उनकी इच्छा पूर्ण कर सकता है यदि वह जरूरतमंद भाई पर दया दिखलाता और वह सब कुछ करने की कोशिश करता है जो उसके लिए सम्भव है।
उस समारी से पहले उसी रास्ते से एक याजक एवं लेवी पार हो चुके थे जो ईश्वर के लिए समर्पित व्यक्ति समझे जाते हैं। वे उस बेचारे को जमीन पर पड़ा देखकर भी कतरा कर पार हो गये। शायद वे उसके खून से दूषित होना नहीं चाहते थे। उन्होंने वहाँ दया दिखाने हेतु ईश्वर की आज्ञा के बदले, अशुद्ध नहीं होने के मनुष्यों के नियम का पालन किया।
सच्ची मानवता एवं पूर्ण धार्मिकता
संत पापा ने कहा कि येसु यहाँ समारी के आदर्श को प्रस्तुत करते हैं जो एक अविश्वासी था। हम भी कई बार इसी तरह सोचते हैं जबकि एक नास्तिक हमसे अच्छा काम करता है। येसु ने एक ऐसे व्यक्ति को मॉडर के रूप में चुना जो अविश्वासी था किन्तु अपने भाई को अपने समान प्यार करने के द्वारा, एक अज्ञात ईश्वर को अपने सारे हृदय और सारी शक्ति से प्यार करता था। इस तरह उसने एक ही समय में सच्ची मानवता एवं पूर्ण धार्मिकता को प्रकट किया था।
इस दृष्टांत को बतलाने के बाद येसु शास्त्री की ओर मुड़े जिसने पूछा था कि "मेरा पड़ोसी कौन है?" और उनसे कहा, "उन तीनों में से कौन लुटेरों के हाथों पड़े व्यक्ति का पड़ोसी था।" (पद. 36) इस तरह येसु ने अपने वार्ताकार के सवाल को उलट दिया। आज वे हमें भी यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं जो जरूरतमंद है वही हमारा पड़ोसी है और जो हमें अपने पड़ोसी के रूप में महसूस कर सकता है क्या हममें दया की भावना है क्योंकि दया की भावना ही हमारी कुँजी है।
जरूरत में पड़े व्यक्ति के प्रति करुणा, प्रेम का सच्चा चेहरा है
संत पापा ने स्वार्थ की भावना से बचने की चेतावनी देते हुए कहा, "यदि आप जरूरतमंद व्यक्ति के प्रति दया की भावना महसूस नहीं करते हैं, उनसे प्रभावित नहीं होते हैं तब सब कुछ सही नहीं है। आप सावधान रहें। हम अपने आप को स्वार्थी उदासीनता की भावना द्वारा के चंगुल में पड़ने न दें।" उन्होंने कहा कि यदि ऐसा है तो दया की भावना कड़ा पत्थर बन चुका है। येसु स्वयं हमारे प्रति पिता ईश्वर की करुणा को प्रकट करते हैं। अतः यदि आप सड़कों पर बेघर लोगों को देखते हुए उनकी ओर देखे बिना आगे बढ़ जाते हैं अथवा सोचते हैं कि वह कोई मतवाला है तो अपने आप से पूछें कि क्या मेरा हृदय हिम के समान कठोर नहीं हो गया है? इसका निष्कर्ष यही है कि जरूरत में पड़े व्यक्ति के प्रति करुणा, प्रेम का सच्चा चेहरा है। इसी के द्वारा एक व्यक्ति येसु का सच्चा शिष्य हो सकता है और पिता के चेहरे का साक्ष्य दे सकता है। "दयालु बनो जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता दयालु है।" (लूक. 6:36) ईश्वर हमारे पिता दयालु हैं क्योंकि उनमें सहानुभूति की भावना है, उन्हें हमारे दुःखों, पापों, दुर्गुणों एवं परेशानियों को देखकर तरस आती है। इस तरह ईश्वर को प्यार करने और अपने पड़ोसियों को प्यार करने की आज्ञा एक ही है। यह जीवन का तर्कयुक्त नियम है।
संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि वे हमें मदद दें ताकि हम पिता ईश्वर के प्रति प्रेम एवं भाई के प्रति प्रेम के अटूट संबंध को जी सकें। ईश्वर हमें दया की भावना रखने और उसमें बढ़ने की कृपा प्रदान करे।
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