सब ठीक हो जाएगा !

सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच, या फिर “सब ठीक हो जाएगा” ! चंद शब्द ही नहीं है, बल्कि इसमें एक प्रकार ही शक्ति ठूस ठूस कर भरी है जिसे सिर्फ अनुभव ही किया जा सकता है।  ये ज़िंदगी का एक अहम पहलू हैं अगर सभी लोग इसको अपने जीवन में अपना लें, तो जीवन में कितने भी उतार चढ़ाव आयें उससे निकल ने का रास्ता भी मिल ही जाता है। परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत क्यों न हो मंज़िल ख़ुद-बख़ुद मिल जाती है। बस ज़रूरत है जीवन में सकारात्मक सोच अपनाने की। और हाँ, अगर हमें अपने यह बोल दे कि सब ठीक हो जाएगा ! सकारात्मक सोच से आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मविश्वास से कुछ कर गुज़रने का साहस पैदा होता है। इसी साहस से उत्पन्न बल से व्यक्ति कठिन से कठिन समस्या को सुलझा लेता है।

प्यारे श्रोता साथियों, कई बार हम कुछ ऐसे लोगों की संगति में फँस जाते हैं, जो हमेशा अपने दु:खों का ही रोना लेकर बैठ जाते हैं। जीवन में उन्हें खुश रहना तो आता ही नहीं है। न ही हमारा उचित मार्गदर्शन कर पाते हैं। आपके लिए अच्छा होगा कि आप ऐसे लोगों से दूर ही रहें। इसलिए मित्रों, सकारात्मक सोच के लिए अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करना आपके लिए और हम सब के लिए नितांत आवश्यक है। यदि आप हर रोज अपने जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव लाएँगे तो नि:संदेह ही आप अच्छा सोचेंगे व अच्छा करेंगे।   

विपरीत परिस्थितियाँ सबकी ज़िंदगी में आती हैं, मेरी भी ज़िंदगी में आयी यक़ीनन आप सब की ज़िंदगी में भी कभी न कभी आयी होंगी। सोच कर देखिये ऐसे कितने लोग होंगे जो अपने आत्मविश्वास को सुखी रेत की तरह मुठ्ठी से फिसलने नहीं देते। हालात के आगे अपने घुट्ने नहीं टेकते। तो शायद सिर्फ चंद लोग ही होंगे जिन्होंने अपनी सकारात्मक सोच से अपने आत्म विश्वास को खोने नहीं दिया बल्कि इसे अपनी ताकत बनाकर अपनी मंजिल को पाया है।

श्रोता मित्रों, हमारी सोच सकारात्मक हो तो हमें अपने जीवन में परिणाम भी अच्छे मिलते हैं। ये बात हमें अपने माता -पिता, बड़े बुजुर्गों और अपने शिक्षकों से सुनने को मिलती है। हम  उनसे यह भी सुनते है कि "सब ठीक हो जाएगा" ! हम चाहे कितनी भी आधी आबादी के आत्मनिर्भर होने, सशक्तिकरण और उसकी हर क्षेत्र में हिस्सेदारी की बात करें फिर भी "सब ठीक हो जाएगा" एक ऐसा आशा का दीप बना कर जलाया करते हैं कि उसके जलने की प्रतीक्षा में हम सबका जीवन बद से बदतर बन सकता है। ये सिर्फ एक व्यक्ति या फिर नारी के लिए ही नहीं बल्कि हम सब के लिए एक सुखद और शांतिपूर्ण जीवन की एक किरण दूर से नजर आती है। और फिर हम महीनों नहीं बल्कि वर्षों उसी किरण का पीछा करते हुए गुजार देते हैं। यानि कि "सब ठीक हो जाएगा" ! यह सिर्फ एक अनुभूति है लेकिन हमारे मन दिल में दीप सी जलती हुई आत्मसम्मान और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है।

प्यारे श्रोता मित्रों, हमारी आशावादी सोच जीवन को कहाँ से कहाँ पहुंचा सकती है ये बात हम सोचने की तकलीफ तक नहीं करते हैं और आखिर करें भी क्यों? इसके सहारे हम एक बोझ से मुक्त होने जो जा रहे हैं। कुछ और कभी ठीक नहीं होता है। यथार्थ के धरातल पर चल कर ही काँटों की चुभन महसूस कीजिये और उस पर औरों को चलने की सलाह मत दीजिये। वैसे तो कहते हैं कि आशा से आसमान टिका है लेकिन जीवन बहुत महत्वपूर्ण होता है, उसे सोच समझ कर और धैर्यपूर्वक ही इस जुमले के सहारे छोड़ें।  

मैं इस बात को सुनकर आश्चर्य में पद गयी कि जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी उस काम को करने में होनी चाहिए जिसे लोग कहते है कि तुम नहीं कर सकते हो। इस सोच से यह नहीं है कि आप अपने अपनों को या फिर यों कहें कि अपने परामर्शदाताओं को नीचे दिखाना चाहते हो बल्कि अपनी सोई भावनाओं को जगाना चाहते हो और फिर अपने आपको एक और मौका देना चाहते हो और वो सिर्फ आप ही कर सकते हो और कोई नहीं।

इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुंचाती है।

श्रोता साथियों, सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुंचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।

आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा।

अगर हमारा अपना हमें कहता है कि सब ठीक हो जाएगा तो हमें बड़ा सुकून मिलता है और हाँ साथियों, उन्होंने हमारे भीतर की क्षमताओं को ज़रूर समझा व परखा होगा। इसलिए हमें भी चाहिए कि हम अपने आपको भी तुच्छ नही बल्कि कुछ कर दिखाने वाला समझे। और हाँ, Accept All the Responsibility कभी भी जीवन में जिम्मेदारियों से दूर न भागे..!! आगे बढ़ कर सभी responsibility को पूरे जोश के साथ हम पूरा करें ! इससे हमारी ability increase होगी, हमें कुछ नया experience मिलेगा ! हमे ख़ुशी मिलेगी ! और सकारात्मक सोच आएगी ! आप जरा सोच कर देखिये कि आपने कभी life में किसी responsibility को लिया और उसे पूरा किया तो आपको कैसे feel हुआ?? Just think About it.. & दूसरी और आपके पास कोई responsibility या opportunity आई और आपने उसे नहीं लिया तो आपको कैसा लगा?  आपको स्वयं ही उत्तर मिल जायेगा ..!

शरीर पर रोगों के प्रभाव और सोच का गहरा संबंध है। अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झड़ने लगते हैं शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है। अत्यधिक सोचने से असमय बुढ़ापा घेर लेता है। उच्च रक्तचाप हृदयाघात का कारण बनता है। शंका, रोग निवारण में अवरोध का काम करती है। रोग का निवारण रोगी के विश्वास से होता है, चिकित्सक की दवा से नहीं। दवा दी जा रही है, यह भावना अधिक काम करती है। नदियों का स्रोत यदि हिमालय है तो हमारे स्वास्थ्य का स्रोत हमारा स्वस्थ मन है। यदि व्यक्ति प्रतिदिन रात्रि में सोते समय सकारात्मक भाव से स्वयं को भावित करे, तो वह अनेक साध्य व असाध्य रोगों का सफल व स्थायी निवारण कर सकता है। स्वस्थ रहना आसान है और सोच को सकारात्मक रूप देना उससे भी आसान है। जरूरत है तो सिर्फ सकारात्मक रुख अपनाने की। सकारात्मक सोच से सेहत बनती है और नकारात्मक सोच अनेक मनोशारीरिक रोगों को जन्म देता है। अगर सोच को समय के साथ स्वस्थ रूप दिया जाए तो सोच की लकीरें चेहरे पर खिंच नहीं सकतीं। स्वस्थ व्यक्ति सकारात्मक सोच से हर चीज को देखता है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति की सोच नकारात्मक रूप से सामने आती है।

शरीर की बीमारियाँ सोच से प्रेरित होती हैं। ऐसे में अपनी सोच को सही दिशा देना या सोच को सीमित करना आज के युग में मुश्किल काम है। आसपास के वातावरण से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। केवल प्रकृति के समीप रहकर ही स्वस्थ रहा जा सकता है। मनुष्य का दिमाग और शरीर दोनों ही संतुलित रह सकते हैं। क्रोधित होने पर यदि व्यक्ति शीघ्र प्रसन्न हो जाए तो शरीर में होने वाले नुकसान से स्वयं को बचा जा सकता है। नकारात्मक सोच का प्रभाव बहुत जल्दी शरीर को रोगग्रस्त बनाता है। सकारात्मक सोच का प्रभाव बहुत ही धीमा होता है। लेकिन होता अवश्य है।

श्रोता साथियों मैं अंत में यही कहना चाहती हूँ कि सकारात्मक सोच, सकारात्मक   शक्ति, अनुभूति का हमारे जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है। सिर्फ हमें एक बात कि ज़रूरत है कि उस अनुभूति को हम समझे और ओरों से सुनने के बजाये अपने आप से कहें कि – “सब ठीक हो जायेगा”  !              

धन्यवाद !

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