यूएन ने मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के 'अपरिवर्तनीय' प्रभावों की चेतावनी दी। 

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु पैनल ने जलवायु परिवर्तन के कारणों और प्रभावों पर एक गहन रिपोर्ट जारी किया और आरोप लगाया है कि मानवीय गतिविधियाँ "स्पष्ट" हैं जिनसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने जलवायु संकट पर अपनी नवीनतम और सबसे व्यापक रिपोर्ट पेश करने के लिए सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया।
"जलवायु परिवर्तन 2021: भौतिक विज्ञान का आधार", शीर्षक से जारी रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों और इसे उत्पन्न करने में मनुष्यों की जिम्मेदारी की चेतावनी देता है। रिपोर्ट संकलित करनेवाले 200 वैज्ञानिकों के अनुसार, वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैस का स्तर पहले से ही दशकों तक जलवायु विघटन सुनिश्चित करने में सक्षम स्तर तक पहुंच गया है।

मनुष्यों का दोष
3,000 पृष्टों के इस रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि जलवायु परिवर्तन मनुष्यों के कारण हो रहा है। रिपोर्ट के सराँश की पहली पक्ति में कहा गया कि "यह स्पष्ट है कि मानव प्रभाव ने वातावरण, महासागर और भूमि को गर्म कर दिया है।"
वैज्ञानिकों का कहना है कि 19वीं शताब्दी के बाद से दर्ज तापमान वृद्धि का केवल एक अंश प्राकृतिक शक्तियों के कारण है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुटेर्रेस ने इसे मानव के लिए "रेड कोड" कहा। उन्होंने कहा, "खतरे की घंटी जोर से बज रही है और प्रमाण को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ˸ जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हमारे ग्रह को प्रभावित कर रहा है और अरबों लोगों को तत्काल जोखिम में डाल रहा है।"

बिगड़ता मौसम
रिपोर्ट में कठोर मौसम पर भी चिंता व्यक्त की गई है। कहा गया है कि कभी दुर्लभ या अभूतपूर्व मानी जानेवाली मौसम की घटनाएं अब अधिक सामान्य हो गई हैं, और यह प्रवृत्ति खराब हो जाएगी, भले ही ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो।
हर 50 साल के बजाय लगभग हर दशक में घातक गर्मी की लहरें आ रही हैं, जबकि तूफान मजबूत हैं और कई जगहों पर हर साल अधिक बारिश या हिमपात हो रही है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि वैज्ञानिक प्रगति की गई है जो चरम मौसम की घटनाओं के बारे में परिमाणात्मक बयान देने की अनुमति देती है।

बर्फ का गलना और समुद्री स्तर का बढ़ना
रिपोर्ट का सबसे आशावादी परिदृश्य बताता है कि आर्कटिक महासागर के ऊपर समुद्री बर्फ 2050 तक एक बार पूरी तरह गायब हो जाएगी।
उत्तरी क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक औसत से दोगुनी दर से गर्म हो रहा है। साथ ही, समुद्र का स्तर सैकड़ों या हजारों वर्षों तक बढ़ना तय है, चाहे सरकार की नीतियां कुछ भी हों।
भले ही ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक दिया गया हो, समुद्र का औसत स्तर संभवतः 2 से 3 मीटर के बीच बढ़ सकता है, अधिक नहीं।

कोप 26
आईपीसीसी की रिपोर्ट स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कोप 26 जलवायु सम्मेलन से ठीक तीन महीने पहले आई है। जो जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए अपने कार्यों को तेज करने हेतु सरकारों का आह्वान करती।

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