जलवायु परिवर्तन विश्वास और विज्ञान का संयुक्त योगदान महत्वपूर्ण। 

संयुक्त राज्य अमरीका के पर्यावरण विद ग्रेगोरी असनार ने कहा है कि विश्वास और विज्ञान दोनों मिलकर जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न पर्यावरण के ह्रास को कम करने के प्रयासों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। बुधवार को साप्ताहिक आम दर्शन के अवसर पर सन्त पिता फ्राँसिस के विश्व पत्र "लाओदातो सी" अभियान के सदस्यों का नेतृत्व करने के उपरान्त पर्यावरण विद ग्रेगोरी असनार ने वाटिकन रेडियो से बातचीत में कहा कि जलवायु परिवर्तन पर शोध और इससे सम्बन्धित चुनौतियों का सामना करने के प्रयास में विज्ञान, काथलिक विश्वासियों को, उपकरण प्रदान कर सकता है।
उन्होंने कहा कि सन्त पिता फ्राँसिस ने अपने विश्व पत्र लाओदातो सी की प्रकाशना कर वास्तव में मानवजाति को एक अनमोल वरदान दिया है, जिसमें पर्यावरण के अखण्ड विकास तथा उसके प्रति ज़िम्मेदारी का आह्वान निहित है।
विज्ञान और विश्वास साथ-साथ:- पर्यावरण विद असनार ने कहा, "सन्त पिता फ्राँसिस कलीसिया तथा "लाओदातो सी" को पर्यावरण के विषय में सुनने पर मैं जलवायु परिवर्तन तथा जैव विविधता पर लोगों में समझदारी उत्पन्न होते देख रहा हूँ।" उन्होंने कहा, "हमें इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी तथा लोगों एवं सम्पूर्ण विश्व की स्थिति को बेहतर बनाने के लिये एकजुट होकर काम करना होगा।"
श्री असनार ने कहा कि विज्ञान एवं धर्म इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विचार भ्रामक है कि विज्ञान और विश्वास एक दूसरे के विपरीत हैं। उन्होंने कहा कि हमारा अनुभव दर्शाता है कि विश्वास हमें समझदारी और प्रज्ञा प्रदान करता है, जो शायद विज्ञान नहीं दे सकता तथापि, विज्ञान हमें इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये बेजोड़ उपकरण प्रदान करता है, ताकि हम विश्व को एक बेहतर स्थल बना सकें। उन्होंने कहा कि विज्ञान एक उपकरण है, एक माध्यम है, एक रास्ता है जिस पर चलकर हम विकास के पथ पर आगे बढ़ते हैं।
लाओदातो सी:- श्री असनार ने कहा कि सन्त पापा फ्राँसिस का विश्व पत्र "लाओदातो सी" विज्ञान और विश्वास के बीच बनी खाई को पाट कर एक सेतु तैयार करता है, जो कि एक "अनूठा दृष्टिकोण" है।
उन्होंने कहा, "सन्त पिता फ्राँसिस की मानसिकता यह है कि दोनों एक साथ मिलकर काम करें और दोनों एक साथ मिलकर मानव प्रगति के लक्ष्य को हासिल करें। धर्म अथवा विश्वास, चाहे वह कोई भी धर्म क्यों न हो, इस तथ्य की उपोक्षा नहीं कर सकता कि सर्वत्र विज्ञान का बोलबाला है, जो हमसे कह रहा है कि हमें हमारी जीवन शैली को बदलना होगा, जिस प्रकार से हम धरती के संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं, उसके तौर-तरीकों को हमें बदलना होगा तथा पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, और जलवायु पर हम जो दबाव डाल रहे हैं, उस रवैये को तत्काल बदलना होगा।"     
पर्यावरण विद ग्रेगोरी असनार ने इस बात पर बल दिया कि मानव जाति को इस धरती की, जो हमें वरदान स्वरूप मिली है, रक्षा की ज़िम्मेदारी वहन करनी होगी।  

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