ब्यारी की कोठरी में दर्शन

सन्त लूकस के अनुसार सुसमाचार
24:35-48

35) तब उन्होंने भी बताया कि रास्ते में क्या-क्या हुआ और उन्होंने ईसा को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचान लिया।

36) वे इन सब घटनाओं पर बातचीत कर ही रहे थे कि ईसा उनके बीच आ कर खड़े हो गये। उन्होंने उन से कहा, "तुम्हें शान्ति मिले!"

37) परन्तु वे विस्मित और भयभीत हो कर यह समझ रहे थे कि वे कोई प्रेत देख रहे हैं।

38) ईसा ने उन से कहा, "तुम लोग घबराते क्यों हो? तुम्हारे मन में सन्देह क्यों होता है?

39) मेरे हाथ और मेरे पैर देखो- मैं ही हूँ। मुझे स्पर्श कर देख लो- प्रेत के मेरे-जैसा हाड़-मांस नहीं होता।"

40) उन्होंने यह कह कर उन को अपने हाथ और पैर दिखाये।

41) जब इस पर भी शिष्यों को आनन्द के मारे विश्वास नहीं हो रहा था और वे आश्चर्यचकित बने हुए थे, तो ईसा ने कहा, "क्या वहाँ तुम्हारे पास खाने को कुछ है?"

42) उन्होंने ईसा को भुनी मछली का एक टुकड़ा दिया।

43) उन्होंने उसे लिया और उनके सामने खाया।

44) ईसा ने उन से कहा, "मैंने तुम्हारे साथ रहते समय तुम लोगों से कहा था कि जो कुछ मूसा की संहिता में और नबियों में तथा भजनों में मेरे विषय में लिखा है, सब का पूरा हो जाना आवश्यक है"।

45) तब उन्होंने उनके मन का अन्धकार दूर करते हुए उन्हें धर्मग्रन्थ का मर्म समझाया

46) और उन से कहा, "ऐसा ही लिखा है कि मसीह दुःख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे

47) और उनके नाम पर येरूसालेम से ले कर सभी राष्ट्रों को पापक्षमा के लिए पश्चात्ताप का उपदेश दिया जायेगा।

48) तुम इन बातों के साक्षी हो।

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