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बोने वाले का दृष्टान्त
सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
13: 01-23
ईसा किसी दिन घर से निकल कर समुद्र के किनारे जा बैठे।
उनके पास इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वे नाव पर चढ़ कर बैठ गये और सारी भीड़ तट पर बनी रही।
उन्होंने दृष्टान्तों द्वारा उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। उन्होंने कहा, "सुनो! कोई बोने वाला बीज बोने निकला।
बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया।
कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी।
सूरज चढने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये।
कुछ बीज काँटों में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया।
कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाये- कुछ सौ गुना, कुछ साठ गुना और कुछ तीस गुना।
जिसके कान हों, वह सुन ले।"
दृष्टान्तों का उद्देश्य
ईसा के शिष्यों ने आ कर उन से कहा, "आप क्यों लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देते हैं?"
उन्होंने उत्तर दिया, "यह इसलिए है कि स्वर्गराज्य का भेद जानने का वरदान तुम्हें दिया गया है, उन लोगों को नहीं;
क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा। लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उससे वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।
मैं उन्हें दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ, क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी न सुनते और न समझते हैं।
इसायस की यह भविष्यवाणी उन लोगों पर पूरी उतरती है- तुम सुनते रहोगे, परन्तु नहीं समझोगे। तुम देखते रहोगे, परन्तु तुम्हें नहीं दिखेगा;
क्योंकि इन लोगों की बुद्धि मारी गई है। ये कानों से सुनना नहीं चाहते; इन्होंने अपनी आँख बंद कर ली हैं। कहीं ऐसा न हो कि ये आँखों से देख ले, कानों से सुन लें, बुद्धि से समझ लें, मेरी ओर लौट आयें और मैं इन्हें भला चंगा कर दूँ।
परन्तु धन्य हैं तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं!
मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।
बोने वाले के दृष्टान्त की व्याख्या
"अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो।
यदि कोई राज्य का वचन सुनता है, लेकिन समझता नहीं, तब उसके मन में जो बोया गया है, उसे शैतान आ कर ले जाता हैः यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है।
जो पथरीली भूमि में बोया गया है, यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है;
परन्तु उस में जड़ नहीं है, और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है।
जो काँटों में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता है; परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता।
जो अच्छी भूमि में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।"
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