निर्भीकता से ईसा को स्वीकार करना

सन्त मत्ती के अनुसार सुसमाचार
10: 26-33

26) "इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा।

27) मैं जो तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुस-फुसाहटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।

28) उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।

29) "क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।

30) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल-बाल गिना हुआ है।

31) इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

32) "जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा।

33) जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।

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