ईसा का भाषण

सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार
7: 1-2, 10, 25-30

इसके बाद ईसा गलीलिया में ही घूमते रहे। वह यहूदिया में घूमना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहूदी उन्हें मार डालने की ताक में रहते थे। यहूदियों का शिविर-पर्व निकट था। बाद में, जब उनके भाई पर्व के लिए जा चुके थे, तो ईसा भी प्रकट रूप में नहीं, बल्कि जैसे गुप्त रूप में पर्व के लिए चल पड़े। कुछ येरूसालेम-निवासी यह कहते थे, "क्या यह वही नहीं है, जिसे हमारे नेता मार डालने की ताक में रहते हैं? देखो तो, यह प्रकट रूप से बोल रहा है और वे इस से कुछ नहीं कहते। क्या उन्होंने सचमुच मान लिया कि यह मसीह है? फिर भी हम जानते हैं कि यह कहाँ का है; परन्तु जब मसीह प्रकट हो जायेंगे, तो किसी को यह पता नहीं चलेगा कि वह कहाँ के हैं।" ईसा ने मंदिर में शिक्षा देते हुए पुकार कर कहा, "तुम लोग मुझे भी जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह सच्चा है। तुम लोग उसे नहीं जानते। मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसके यहाँ से आया हूँ और उसीने मुझे भेजा है।" इस पर वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला; क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।

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