धर्मान्तरण की आरोपी तीन ईसाई महिलाएं ज़मानत पर रिहा।

उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के कथित उल्लंघन के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई तीन ईसाई महिलाओं को एक स्थानीय अदालत ने 13 अक्टूबर को ज़मानत पर रिहा कर दिया है।
14 अक्टूबर को प्रॉटेस्टेण्ट ख्रीस्तीय सम्प्रदाय के पास्टर दीनानाथ जायसवाल ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले में हुई घटना में गिरफ्तार एक पादरी सहित चार अन्य की ज़मानत याचिकाओं पर 16 अक्टूबर को सुनवाई होने की संभावना है। हिंदू कट्टरपंथियों ने रविवार को एक प्रार्थना समारोह में शामिल लगभग 50 ईसाइयों पर हमला कर दिया था। उक्त सात व्यक्ति इन्हीं ईसाइयों में से थे।
पास्टर जयसवाल ने कहा, "महिलाएं इतनी आहत हैं कि वे अपनी पीड़ा को समझाने की स्थिति में नहीं हैं।" उन्होंने कहा, "राज्य के विभिन्न हिस्सों में उनकी प्रार्थना सभाओं पर बार-बार हमलों के बाद राज्य में ईसाई जबरदस्त दबाव और भय में जी रहे हैं।"
अपना नाम न बताने की शर्त पर एक स्थानीय काथलिक पुरोहित ने यूसीए न्यूज़ को बताया कि कथित बलात  धर्मांतरण गतिविधियों पर रोक लगाने के बहाने कट्टरपंथी हिंदू दलों के हमले उत्तरप्रदेश में बढ़ते ही जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि मऊ ज़िले में, पादरी अब्राहम शकील और उनकी पत्नी को एक ताजा घटना में सलाखों के पीछे डाल दिया गया था, जबकि पादरी राजू मांझी को कुछ दिन पहले गिरफ्तार किया गया था। फिर, आजमगढ़ में पादरी नथानिएल अपनी पत्नी के साथ जेल में थे। पुरोहित का कहना था कि यदि उन्हें निचली अदालतों में ज़मानत नहीं मिलती है, तो उन्हें न्याय के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
उन्होंने कहा, “हम भयभीत हैं क्योंकि वे किसी भी समय हम पर हमला कर सकते हैं और दोष हम पर डाल सकते हैं। पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व भी प्रायः हमलावरों के साथ होते हैं। उन्होंने कहा कि भयवश कई ख्रीस्तीय पुरोहितों  ने प्रार्थना सभा आयोजित करना बंद कर दिया है।”
ग़ौरतलब है कि सन् 2017 में भारतीय जनता पार्टी के श्री योगी आदित्यनाथ के मुख्य मंत्री बन जाने के बाद से उत्तरप्रदेश में ख्रीस्तीयों पर हमलों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, मंत्री आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद से उत्तर प्रदेश के लगभग हर ज़िले में ईसाइयों के उत्पीड़न के 374 मामले सामने आए हैं। इसके अलावा, सितंबर 2020 में प्रांतीय विधायिका द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने के बाद से हमले और अधिक बढ़ गए हैं।

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