झारखंड की धर्मबहन महिला रचनात्मकता पुरस्कार की उम्मीदवार। 

सिस्टर जेसी मारिया ग्रामीण जीवन में महिलाओं की रचनात्मकता के पुरस्कार के लिए जिनेवा स्थित डब्ल्यूडब्ल्यूएसएफ द्वारा चयनित 10 अंतिम प्रतिभागियों की सूची में शामिल हैं। उन्होंने हमेशा कमजोर लोगों के साथ काम किया है तथा पर्यावरण की रक्षा में सहयोग दिया है।
सिस्टर जेस्सी मरिया झारखंड में बेथानी की लिटल फ्लवर की धर्मबहनों के धर्मसंघ की सदस्य है। वे जेनेवा स्थित महिला विश्व शिखर सम्मेलन फाउंडेशन द्वारा प्रदान किये जानेवाले ग्रामीण जीवन में महिला रचनात्मकता पुरस्कार के 10 उम्मीदवारों में से एक हैं। सिस्टर जेस्सी राँची में प्रोविंशल सुपीरियर की सहायिका एवं सामाजिक और मेडिकल की प्रेरिताई की संयोजिका है। अपने जीवन के अधिकांश समय में उन्होंने झारखंड और हरियाणा के आदिवासी समुदायों और दुर्गम क्षेत्रों में काम किया है।
उन स्थानों में उन्होंने दलितों की मदद की है, झुग्गी झोपड़ियों में रहनेवाले लोगों के बच्चों की शिक्षा में योगदान दिया है तथा हाशिये पर जीवनयापन करनेवाली महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम किया है। उन्होंने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी अपना सहयोग दिया है।
सिस्टर जेस्सी ने कहा, "मैं सिंहभूम जिले में हो आदवासी लोगों के बीच काम कर रही थी। जहाँ के स्थानीय लोग पेड़ काटकर और जलावन की लकड़ी बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। जलावन की लकड़ी हर दिन ट्रेन से ढोया जाता है।"
इस बात ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और उन्होंने जंगल को उजाड़ने से रोकने के लिए उपाय करने का निश्चय किया। उनका लक्ष्य था लोगों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाना एवं लोगों को पेड़ काटने से रोकने के लिए प्रेरित करना एवं जंगल विभाग को मदद करते हुए नये पेड़ लगाना। पर्यावरण के सम्मान और आमघर की देखभाल के कारण धर्मबहन सम्बलपूर में जल संसाधन व्यवस्था में भी शामिल थी जहाँ जलापूर्ति एक बड़ी समस्या है।
उन्होंने कहा, "हमने कई परियोजनाओं पर काम किया है ताकि वर्षा के जल को एकट्ठा कर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में काम सहज थे और गरीब लोगों के लिए अधिक लाभदायक भी।"
इस प्रकार सिस्टर जेस्सी ने अपनी सारी शक्ति गरीबों को मदद करने में लगायी है एवं कमजोर लोगों के करीब रहने का प्रयास किया है। उसके बाद वे हरियाणा भेजी गई। जहाँ वे अपने प्रेरिताई का अनुभव बतलाते हुए कहती हैं, "मैं यहाँ महसूस करती हूँ कि सबसे कमजोर दलों के साथ रहना अधिक जरूरी है। इसीलिए मैंने बाल शिक्षा पर काम करने का निश्चय किया।" उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि बहुधा बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते और शोषण के शिकार होते हैं।
सिस्टर जेस्सी ने हाशिए की महिलाओं को "व्यावसायिक प्रशिक्षण और नौकरी के बाजार में प्रवेश करने का तरीका सीखाने" के माध्यम से "तथाकथित 'स्व-सहायता' समूह" स्थापित करने में भी योगदान दिया है। झारखंड में उनका मुख्य योगदान था मानव तस्करी के खिलाफ संघर्ष में सहयोग देना।
उन्होंने कहा, "हमने कई छोटे स्वतंत्र दलों का निर्माण किया, सदस्यों को इस अपराध की गंभीरता के बारे में अच्छी तरह जानकारी दी", न केवल सक्षम अधिकारियों को रिपोर्ट करने के लिए, बल्कि स्थानीय लोगों के बीच इस तरह की तस्करी का विरोध करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी।"

Add new comment

8 + 6 =