महामारी भारत में नई गरीबी उत्पन्न करेगी

भारत के प्रवासी मजदूरभारत के प्रवासी मजदूर

करीब 25 मिलियन प्रवासी श्रमिक शहर छोड़कर गाँव लौट गये हैं जहाँ सभी को काम मिलना मुश्किल है। महामारी के कारण करीब 354 मिलियन लोग गरीबी की नई सूची में जुड़ सकते हैं। कलीसिया को लोगों की मदद करनी चाहिए ताकि वे निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग ले सकें।

अर्थशास्त्री एवं कारितास के पूर्व निदेशक फादर फ्रेडरिक डीसूजा ने कहा कि कृषि कार्य उन प्रवासी मजदूरों के लिए पर्याप्त रोजगार नहीं दे सकेगा जो कोविड-19 महामारी के कारण शहरों से गाँव लौटे हैं। आर्थिक समस्या के साथ-साथ महामारी से सामाजिक भेदभाव में भी वृद्धि आयेगी। हालांकि, संकट देश में एक समतावादी समाज बनाने में मददगार हो सकता है।

शहरों में प्रवासी मजदूरों का योगदान जिसे अनदेखा किया गया
फादर फ्रेडरिक ने कहा, "हम शहरी लोगों ने इन सालों में सड़क, फ्लाईओवर, स्टेडियम और मेट्रो के साथ  कई अन्य सुविधाओं का लाभ उठाया है। हर सुबह जब हम उठते हैं तो किसी व्यक्ति को हमारे घर के द्वार पर दूध, समाचारपत्र, सब्जी और दैनिक जीवन की अन्य आवश्यक चीजों को लेकर आते देखते हैं। ये "शहर निर्माता" जो आलीशान मकान बनाते, जिसमें हम रहते हैं, स्कूल घर जिसमें हमारे बच्चे पढ़ते हैं, अस्पताल जहाँ हमारा इलाज होता है, वे प्रवासी मजदूर हैं। विगत कुछ दिनों पहले हमने हजारों प्रवासी मजदूरों को, अपने बच्चों और सामानों के साथ घर लौटते हुए देखा था। उनमें से कई बूढ़े और छोटे बच्चे भी शामिल थे। कई लोग रास्ते पर दुर्घटना के शिकार हो गये थे और कुछ लोग धूप एवं गर्मी के कारण अपने घर नहीं पहुँच पाये थे।"

करीब 25 मिलियन प्रवासी मजदूर 64 जिलों से, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा लौटे हैं। बेरोजगारी के कारण शहर पलायन करने के लिए मजबूर मजदूरों के शहरों में इन योगदानों को भूला दिया गया, जिसके कारण जिन शहरों का निर्माण उन्होंने किया, वहाँ उन्हें असुरक्षा और अस्वीकृति की भावनाओं का सामना करना पड़ा।   

शहरों की ओर पलायन का कारण
जब वे शहरों में थे तब उन्होंने निश्चय ही पैसा कमाया और घरों में अपने बच्चों की शिक्षा में मदद दी, अपने बूढ़े माता-पिता का इलाज कराया, घर की मरम्मत करायी और अपनी बेटियों की शादी की। जो मजदूर गाँव में 41,000 रूपया कमाते थे उन्होंने शहर आकर 98,000 रूपया कमाया। जाहिर है, शहरों की ओर खिंचाव अधिक था, क्योंकि ज्यादातर निवेश और बुनियादी ढांचे का निर्माण शहरी क्षेत्रों में हुआ है, जिससे यह बेहतर रोजगार के अवसरों के कारण आकर्षक बना है।

फिर भी, भारत गाँवों में बसती है। इसकी कुल आबादी का 70 प्रतिशत गाँवों में गुजर- बसर करती है। लोगों के गाँव वापस लौटने से अर्थव्यवस्था पर और बोझ पड़ेगा, जो पहले से ही बेरोजगारी के कारण तनाव में थी। पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में निवेश में गिरावट आई है। जबकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है और खेती के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करती है। इस तरह यह इतने लोगों को रोजगार देने में समर्थ नहीं हो पायेगी। रोजगार बढ़ाने के लिए कुछ निर्माण कार्य भी कराये जा रहे हैं किन्तु वह भी पर्याप्त नहीं होगा।

इस तरह हम सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि गरीबी बढ़ेगी। सवाल है कि किस तरह उनकी गिनती की जाए। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का दावा है (अप्रैल 2020) "कि भारत के अनौपचारिक क्षेत्र के लगभग 400 मिलियन श्रमिकों को कोविड-19 के कारण गरीबी में धकेले जाने की संभावना है।

प्रवासियों मजदूरों के भावी जीवन की समस्याएँ
इस नई गरीबी के परिणाम कई गुना होंगे। इसका प्रभाव शिक्षा और स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से पड़ेगा। शहरी क्षेत्रों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूलों से निकालकर गाँव ले जाया गया, जो ग्रामीण इलाकों में दाखिला लेंगे। शहरों में रहने वाले प्रवासियों को, जिन्हें चिकित्सा की बेहतर सुविधाओं का उपयोग करने की आदत है, उन्हें अब अपने ग्रामीण क्षेत्रों में उम्मीद करना बेहद मुश्किल होगा। बेरोजगारी में वृद्धि का मतलब है कि अधिक से अधिक लोग उधार देनेवालों से संपर्क करेंगे और अन्य सामाजिक और आर्थिक दायित्वों को पूरा करें। हम विभिन्न कारणों से हिंसा और छोटे अपराधों में वृद्धि का अनुमान लगा सकते हैं। भूमि संबंधी विवाद और अपराध भी बढ़ जायेंगे; घरेलू हिंसा, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा और मानव तस्करी जैसे पारिवारिक मुद्दे भी बढ़ सकते हैं।

गाँव में उन्हें वायरस लाने वालों के रूप देखा जा रहा है अतः इससे भेदभाव की भावना विकसित हो सकती है।  

भारत सरकार ने गरीबों तक पहुंचने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कई योजनाओं की घोषणा की है। विभिन्न योजनाओं और न्यूनतम मजदूरी के लिए प्रवासी श्रमिकों को पंजीकृत करने की योजना बनायी गई है। ये योजनाएं अच्छी हैं किन्तु देखना है कि लोग किस तरह से इसका लाभ उठा पाते हैं।

कलीसिया के सामने चुनौती
कलीसिया सेवा करने के लिए अपनी बुलाहट के प्रति हमेशा सचेत रहती है। महामारी और तालाबंदी के दौरान, भारत में कलीसिया ने अभूतपूर्व तरीके से लाखों लोगों की सेवा की है। उपचार और संगरोध के लिए स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएँ देने से लेकर प्रवासियों और जरूरतमंद परिवारों को भोजन और सुरक्षा किट प्रदान की एवं लोगों की मदद हेतु पहली पंक्ति पर कार्य किया है।

पल्ली स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक प्रवासी मजदूरों की मदद हेतु कार्य किया है किन्तु अब भी बहुत कुछ करना बाकी है क्योंकि स्थिति अधिक बुरी होने वाली है। हमारे सामने दो बड़े मुद्दे हैं- महामारी के संकट से जितनी जल्दी हो सके निपटना एवं आर्थिक सुधार के लिए कार्य करना। कलीसिया को दोनों ही मुद्दों के लिए कार्य करना चाहिए।   

Add new comment

4 + 5 =