Coronavirus की Vaccine के लिए India की तरफ दुनिया की निगाहें।

पूरी दुनिया को इस वक्त एक चीज का पूरी शिद्दत से इंतज़ार है। और वो है कोरोना संक्रमण पर काबू करने वाली वैक्सीन। कई देशों में ट्रायल चल रहे है। इस बिच उम्मीद की निगाहें भारत पर भी टिकी है। लेकिन क्यों ? भारत में कोरोना पॉजिटिव केस बढ़कर छप्पन हज़ार (56000) पार हो गए है लेकिन इस बीच कुछ पॉजिटिव न्यूज़ भी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश के 216 जिलों में अब तक कोरोना संक्रमण का कोई केस नहीं मिला है। रिकवरी रेट यानी बीमारों के ठीक होने के दर बढ़कर 29.6 फीसदी है। 

दुनियाभर में कोविड-19 का वैक्सीन बनाने की तैयारी जोरों पर है। इसे लेकर ब्रिटेन में ट्रायल चल रहा है। तो इजराइल व इटली ने दावा भी किया है कि उन्हें वैक्सीन बनाने में सफलता मिल गई है पर तैयारी में भारत कहाँ खड़ा है? जो खुद दुनिया में वैक्सीन व दवा बनाने वाले सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।

दिल्ली के एक संवादाता के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा टीके बनाने वाली पुणे के सिरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया कोरोना वायरस के वैक्सीन के उत्पादन में भी भूमिका निभाना चाहती है। इसके लिए उन्होंने वैक्सीन विकसित कर रही अमेरिकी कंपनी कोडाजेनिक्स के साथ करार किया है। अदार पूनावाला सीइओ (सिरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया) कहते है कि बहुत सारे लोग ऐसे 100 कंपनियां वैक्सीन बनाते है व डेवेलोप करते है मगर सिर्फ दुनिया में चार या पांच कंपनियां जैसे हमारी है इंडिया में और दो तीन कंपनियां है इंडिया में जो वैक्सीन बना सकते है और वो भी सस्ते दामों पर बनाने की कंपनियां बहुत ही कम है। 

पूरी दुनिया की वैक्सीन की खपत का एक बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियां पूरा करती है। हाल के सालों में बाजार में आई सस्ती रोटा वायरस इसी का उदाहरण है ये टीका बच्चों में दस्त होने से रोकता है जिससे हर साल हजारों जाने बचती है। अमेरिका के साथ पार्टनर शिप में विकसित की गई इस वैक्सीन को भारतीय कंपनी भारत बायोटेक बनाती है। बीबीसी संवादाता द्विया आर्य कहती है भारत के लिए बड़े पैमाने पर सस्ती वैक्सीन बनाना बेहद जरुरी है। देश का यूनिवर्सल यानी सार्वभौमिक टीका कारण सालाना 5 करोड़ नवजात एवं गर्भवती महिलाओं तक पहुँचता है। भारत के इस विशाल टीका करण अभियान के वजह से ही देश से पोलियों जैसी बीमारियों को ख़त्म किया जा सका। इन सफलता के बावजूद भारत अब भी वैक्सीन बनाने में पीछे है। विश्व के इस बड़े वैक्सीन उत्पादक को टीको के शोध और विकास में आगे आने के लिए ओर सरकारी मदद की जरुरत है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के प्रोफेसर राघवन वरदाजन कहते है की अगर वैक्सीन पर और ज्यादा अकादमिक होना है तो इसके लिए सरकार की और से लगातार मदद की आवशयकता होगी। क्योंकि इसमें से तमाम कोशिशें कामयाब नहीं भी हो सकती है। शोध में ऐसा ही होता है और इसमें लम्बा वक़्त भी लग सकता है। 

कोविड - 19 की वैक्सीन के लिए भारत सरकार ने भी आवेदन मंगवाए है। और करीब आधा दर्जन को आर्थिक मदद दी है। पर विशेषज्ञ के मुताबिक़ सफलता वैश्विक साझेदारी से ही मिलेगी इंटरनेशनल सेन्टर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर दिनकर एम. सालुंके कहते है की महामारी का इन्फ्लूएनस दुनिया में इतना हो रहा है की इसमें हमें अपना क्या है और बाकियों का क्या है ये देखने को वक़्त नहीं है। हमें समस्या का समाधान करना है और उससे लोगों को क्या फायदा होगा ये देखना है। न की ये देखना है हमें इससे फायदा क्या होगा।

दरअसल आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है की जल्द से जल्द कोरोनावायरस से बचाव की वैक्सीन तैयार कैसे हो ? लेकिन ये बने कैसे ? कैसे जल्द से जल्द पूरी दुनिया तक पहुँचाया जा सके ? बीबीसी संवादाता नौमिया इकबाल कहती है कि टीके कृत्रिमरूप से संक्रमण की कॉपी करके बीमारी से बचाव करते है। ये असल संक्रमण से पहले इम्यून सिस्टम को उसे पहचानना याद रखना और बीमारी से लड़ना सिखाते है। सोशल डीस्टेंसिंग ख़त्म करने मरीजों को बचाने और कोविड - 19 को ख़त्म करने के लिए हमें टीके की जरुरत है। और ये भी जरुरी है की हम जल्द से जल्द इसे बना ले। 100 से ज्यादा संभावित वैक्सीन पर काम जारी है। और कई मानव परीक्षण भी शुरू हो गए है। दुनिया भर के शोध करता इस महामारी को ख़त्म करने के लिए टीका बनाने में जुड़े है। कुछ का अनुमान है की वो सितम्बर की शुरुआत तक स्वास्थ्यकर्मियों जैसे हाई-रिस्क ग्रुप के लिए टीका तैयार कर लेंगे। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है की 2021 से पहले सभी के लिए टीके उपलब्ध नहीं हो सकेंगे क्योंकि टीके तैयार करने में जुटे शोधकर्ताओं के सामने कई चुनौतियाँ है। सबसे बड़ी चुनौती तो यही है की लम्बे वक़्त तक वायरस से बचाव करने वाला होना चाहिए। इसे कई सेफ्टी टेस्ट भी पास करने होंगे और इसे भारी तादाद में बनाना होगा। संभवतः दुनिया भर में अरबों टीकों की जरुरत होगी। तो ज़िन्दगी बचने वाले ये टीके तैयार कैसे होंगे ? अभी तक टीके बीमारी का कमजोर संस्करण पैदा करके बनाये जाते रहे है। ताकि आपका इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी बना कर वायरस से आसानी से लड़ सके। ऐसे में अगर भविष्य में वायरस आपको संक्रमित करता है तो आपके पास एंटीबॉडी होती है। सोच ये है की वायरस के सिर्फ उस हिस्से की प्रतिक्रिया धीमी करनी है जो उसे शरीर की कोशिकाओं में घुसपैठ करने में मदद करता है। एक तरीका ढेर सारी स्पाइक प्रोटीन को शरीर में डालना हो सकता है जिससे शरीर में एंटीबॉडी बने जो वायरस को ख़त्म कर सके। ये तरीका 2006 में साँस का टीका बनाते समय अपनाया गया था। और कई बड़ी कंपनियों को लगता है की यही सहीं रास्ता है। और एक तरीका यह हो सकता है की शरीर खुद कोविड - 19 के स्पाइक प्रोटीन्स के वर्जन्स तैयार करे। यह तरीका अभी तक किसी सफल टीके को बनाने में इस्तेमाल नहीं हुआ है। लेकिन इबोला जैसी बीमारियों पर इसका टेस्ट किया जा चुका है। इनमें जो प्रयोग सफल होते है उन्हें दुनिया भर में साँझा करना भी एक बड़ी चुनौती होगी। 2006 और 2009 में बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू के बाद कुछ देशों ने बाकी देशों के मुकाबले पहले टीका हासिल करने की कोशिश की थी। पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर किसी टीके का उत्पादन नहीं हुआ है। अरबों टीके बनाने होंगे और ऐसा तभी हो पाएगा जब देश एक दूसरे की मदद करेंगे।

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