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मानवता धारण
“वह हम मनुष्यों के लिए और हमारी मुक्ति के लिए स्वर्ग से उतरा ।”
मनुष्य अपने पिता ईश्वर के प्रेम को नहीं पहचान पाते और उनके प्यार से, उनके बताये रस्ते से भटक जाते हैं । ईश्वर की अवज्ञा करके मनुष्य पाप करते है । पाप के कारण मनुष्य ईश्वर की आँखों में गिर जाते हैं । मगर प्रभु जो अपने लोगों के लिए अच्छाई और प्रेम हैं, मनुष्यों को उनकी बुरी हालत अवगत करने के लिए नबियों को भेजा हैं । “प्राचीन कल में ईश्वर बारम्बार और विधि रूपों मीन हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोले था” (इब्रानि १,१) । लेकिन मनुष्य स्वार्थी होकर इन नबियों और उनके वचनों पर ध्यान देने से इनकार करते हैं । वे अपने पतन के रास्ते में आगे बड़ते जाते हैं । ईश्वर अपने प्रेम से प्रेरित होकर इन मनुष्यों की मुक्ति के लिए अपने पुत्र इसा मसीह को पृथ्वी पर भेजता हैं । “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके अपने एकलौते पुत्र को अर्पित किया, जिससे जो उसमें विशवास करता है उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनंत जीवन प्राप्त करे” (योहन ३,१६) । मनुष्य को उसके पतन से बचने के लिए और उसे जिन्दा रखने के लिए ईश्वर ने ईसा मसीह को भेजा । मानवता-धारण में ईश्वर के पुत्र अपने इश्वरत्व को निस्सारकर मनुष्य बन जाते हैं ताकि मनुष्य को ईश्वर कि संतान बना सकें ।
“पवित्र आत्मा के द्वारा शारीर धारण कर मनुष्य बन गया ।”
किसी भी धर्म कें अनुसार जब भी ईश्वर ने मनुष्य के बिच में अवतार लेना चाहा, तब उन्होंने हमेशा कुछ अजीब तरीके अपनाये हैं । ठीक उसी तरह ईसा मसीह का जन्म भी ईश्वरीय योजना के तहत होता है । किसी भी पुरुष के संसर्ग के बिना मरियम पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भवती होती है । “पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की छाया आप पर पड़ेगी” (लूकस १,३५) । जब हम विश्वास की घोषणा में यह कहते हैं कि ‘इसा मसीह पवित्र आत्मा के द्वारा शरीर धारण कर मनुष्य बन गया’ तब हम यही स्वीकार करते हैं कि ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है, उनकी योजनाएं महान और रहस्यमय हैं । उनके लिए कुछ भी संभव नहीं हैं ।
ईसा मसीह मनुष्य की मुक्ति के लिए मनुष्य बन गये । “वह वास्तव में ईश्वर थे और उनको पुरे अधिकार थे कि वह ईश्वर की बराबरी करें । फिर भी उन्होंने दस का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बनकर अपने को दिन-हीन बनाया” (फ़िलि. २,६-७) । ईसा मसीह को मनुष्य बनने के लिए न केवल ईश्वरत्व को निस्सार करना था बल्कि मनुष्यत्व को स्वीकारना भी था । उन्होंने ईश्वर होने के प्रताप और महानता को निस्सार किया जब उन्होंने मनुष्य बनने के लिए मनुष्य का शारीर स्वीकारा । मनुष्य शारीर स्वीकारते वक्त वे पूरे का पूरा मनुष्य की तरह बन गये सिवाय पाप के (इब्रा. ४,१५) । ईसा मनुष्य का शरीर धारण कर मनुष्य बनने के बावजूद पाप के विषय में मनुष्यों से अलग थे । उन्होंने मनुष्य कि तरह पाप नहीं किया । ईश्वर के पुत्र इसलिए मनुष्य बन गये कि:
- ईश्वर के राज्य की घोषणा करें और लोगों को ईश्वर की ओर का रास्ता दिखाएँ ।
- मनुष्य को उनके पापों से बचाये और उन्हें पुनः ईश्वर के पुत्र बचायें ।
“कुँवारी मरियम के गर्भ में आकर जन्म लिया ।”
जब ईश्वर अपने पुत्र को मनुष्य बनाकर पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हो गये तब उन्हें अपनी कोख में स्वीकार करने के लिए किसी को तैयार होना था । ईश्वर अपने पुत्र की माँ बनने के लिए गलीली के नजरेत गावं की मरियम नमक कुँवारी को चुनते हैं जब से ईश्वर ने मनुष्य की रक्षा करना चाहा तब से ईश्वर मरियम को तैयार कर रहे थे । मरियम निष्कलंक थी, उसमें कोई पाप नही था । वह एक नेक लड़की थी । माँ-बाप की प्यारी लाडली और गावंवालों की आँखों का तारा थी मरियम । मरियम कुँवारी थी । ईश्वर ने उन्हें जन्म से निष्कलंक रखा ताकि वह ईश्वर के पुत्र को जन्म दे सके । जब मरियम ईश्वर की योजना को स्वर्गदूत से सुनती है तब वह उसको स्वीकार करती है और ईश्वर की माँ बनने के लिए तैयार हो जाती है । “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ । आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये” (लुकस १,३८) ।
मानवता धारण वह घटना है जिसमें ईश्वर अपने आपको दीन-हीन बनाकर मानव की रक्षा के लिए मानवता को धारण करते हैं (फ़िलि. २:६-७) । मानवता धारण में ईश्वर मनुष्य की मुक्ति को संभव बनाते हैं । ईश्वर के पुत्र जो तब तक शब्द मात्र थे (योहन १,१), शारीर धारण करते हैं (योहन १,१४), मानवता धारण करते हैं, मनुष्य बन जाते हैं । “शब्द ने शारीर धारण कर हमारे बीच निवास किया” (योहन १,१४) । मानवता धारण में:
- ईश्वर अपने प्रताप और महिमा को छोड़ते हैं ।
- ईश्वर मानवता को स्वीकार करते हैं ।
- मनुष्य पुनः ईश्वर की संतान बन जाते है ।
मानवता को धारण कर ईसा मसीह मनुष्य बने और वे ईश्वर के राज्य के बारे में लोगों को शिक्षा देने लगे । उनके सार्वजनिक जीवन में वे लोगों को पढ़ाने लगे । उन्होंने चमत्कारों और द्र्ष्टान्तों द्वारा ईश्वर के राज्य के बारे में लोगों को सिखाया । ईसा के लोक-जीवन के बीच में उन्होंने जो भी सिखाये उनके स्पष्टीकरण के लिए उन्होंने कई चमत्कार भी किये । अंधों को दृष्टि प्रदान की, बघिरों को सुनने दिया, कोढियों को चंगा किया और यहाँ तक कि उन्होंने मृतकों को फिर से जीवित किया । समाज के गिरे हुओं गरीबों और दलितों के लिए उनके दिल में एक महत्वपूर्ण जगह थी । समाज के गिरे हुए लोगों के लिए ईसा आवाज बने, दलितों के लिए सहारा और गरीबों के लिए मददगार बने । इस तरह उन्होंने ईश्वर के राज्य की घोषणा की, जो उनका मानवता धारण का लक्ष्य था ।
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