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विकलांगों की गरिमा रखकर दुनिया को और अधिक मानवीय बनाएं
अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर 3 दिसम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने याद किया कि भेदभाव का सामना करने एवं मुलाकात तथा जीवन की गुणवता को प्रोत्साहन देने हेतु सहभागिता का अधिकार किस तरह मुख्य भूमिका अदा करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के लिए प्रेषित अपने संदेश में संत पिता फ्रांसिस ने लिखा कि "मेडिकल एवं कल्याण विभाग में विकलांग लोगों के लिए बड़ी प्रगति हुई है।"
उन्होंने गौर किया कि आज भी नष्ट करने की संस्कृति जारी है और अनेक विकलांग व्यक्ति उसे महसूस करते हैं कि उन्हें संबंध रखने एवं सहभागी होने से रोक दिया जाता है।
उन्होंने जोर दिया कि यह न केवल दिव्यांग के अधिकारों एवं उनके परिवारों की रक्षा की मांग करता बल्कि पूर्वाग्रह को हटाने के लिए विश्व को अधिक मानवीय बनाने की मांग करता है।
संत पिता ने कहा, "दिव्यांग लोगों की देखभाल उनके जीवन की हर परिस्थिति में करना एवं उनका साथ देना आवश्यक है और इसके लिए आधुनिक तकनीकी का भी प्रयोग करना चाहिए ताकि वे सक्रिय एवं प्रतिष्ठा के साथ, नागरिक एवं कलीसियाई दोनों समुदायों में भाग ले सकें। स्थान प्राप्त करने एवं जीवन की गुणवत्ता के लिए मानव प्राणी के हर आयाम को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
संदेश में संत पिता ने जोर देते हुए कहा कि हमारे घरों, परिवारों एवं समाज में कई छिपे निर्वासन हैं। उन्होंने कहा, "मैं हर युग के लोगों के बारे सोचता हूँ विशेषकर, बुजूर्ग जो अपनी असमर्थता के कारण कभी-कभी भार समझे जाते, उनकी उपस्थिति बोझिल मानी जाती, उन्हें बहिष्कृत होने का भय होता है।" संत पिता ने कहा कि हमें उस संस्कृति के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करने की आवश्यकता है जो जीवन को प्रथम और द्वितीय वर्ग की श्रेणियों में रखता है। यह सामाजिक पाप है।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर संत पिता ने लोगों को निमंत्रण दिया कि वे उन लोगों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस करें जो विकलांगता के कारण लोगों के साथ भेदभाव करते हैं। "सही नियम लागू करना एवं घेरों को तोड़ना महत्वपूर्ण है किन्तु यह काफी नहीं है यदि मानसिकता में बदलाव न आये।"
अंत में संत पिता ने प्रोत्साहन दिया कि जो लोग विकलांग लोगों के लिए कार्य करते हैं, वे इस महत्वपूर्ण कार्य को जारी रखें जो एक राष्ट्र की सभ्यता के स्तर की पहचान है।
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