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कलीसिया द्वारा झारखंड में प्रस्तावित कोयला ब्लॉक नीलामी का विरोध
15 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड राज्य सरकार से संघीय सरकार की राय पूछी थी, जिसने कोयला क्षेत्रों की नीलामी के साथ संघीय सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
दिल्ली में भारतीय सामाजिक संस्थान के आदिवासी अध्ययन विभाग के प्रमुख जेस्विट फादर विन्सेंट एक्का ने कहा, "राज्य में आदिवासी खेती और वानिकी पर निर्भर हैं, इसलिए खनन के लिए भूमि आवंटित करने से, जंगल और साथ ही खेती के विशाल क्षेत्र नष्ट हो जाएंगे और विस्थापन भी बढ़ेगा।"
फादर एक्का ने कहा, "मैं केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय लोगों के लिए नौकरी के अवसर के दावे पर भी संदेह करता हूँ। खनन कई राज्यों में इस प्रभाव पर ध्यान दिये बिना दशकों से जारी है। यदि वह स्थानीय लोगों को नौकरी देती है तो इन राज्यों से क्यों बहुत अधिक लोग पलायन करते?"
उन्होंने कहा, "सरकार को आदिवासी जो पर्यावरण के रक्षक हैं, उनकी आजीविका में बाधा डाले बिना, दूसरी तरह से आमदनी अर्जित करनी चाहिए और देश की आर्थिक स्थिति को स्थिर करना चाहिए।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राज्य में वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी की घोषणा की थी। एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव में, मोदी सरकार ने खनन पर सरकार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया है और निजी भागीदारी की अनुमति दी है।
मोदी ने कहा है कि कोयला खनन क्षेत्र में सुधार से लाखों रोजगार सृजित होंगे और यह सभी के लिए एक जीत की स्थिति होगी।
कोयला खदान की नीलामी कोविद -19 महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। वाणिज्यिक कोयले की नीलामी घरेलू और वैश्विक कंपनियों के लिए 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तहत खुली है। कोयला क्षेत्र छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा राज्यों में स्थित हैं जहां अधिकांश आदिवासी रहते हैं। 41 कोल क्षेत्र में से नौ झारखंड में हैं। 84 बिलियन टन कोयले के साथ झारखंड, देश के 26% कोयले का भंडार है तथा अन्य सभी राज्यों में आगे है।
हालांकि, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला क्षेत्रों की नीलामी करने के संघीय सरकार के फैसले से "सहकारी संघवाद की अपमानजनक उपेक्षा हुई है।" उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने राज्य सरकार से इस बारे में सलाह नहीं ली है।
झारखंड सरकार ने 20 जून को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और "विशाल जनजातीय आबादी और वनभूमि पर" खनन के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करने को कहा था।
याचिका में कहा गया था कि "यह बड़े पैमाने पर विस्थापन एवं आनुषंगिक पुनर्वास तथा बसने की समस्या जैसे मुद्दों को जन्म देगा। राज्य [झारखंड] अपने क्षेत्र के भीतर स्थित खानों और खनिजों का मालिक है।"
इसमें दावा किया गया है कि कोरोनोवायरस की महामारी दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुँचाये जाने का परिणाम है। झारखंड राज्य ने आरोप लगाया कि नीलामी का निर्णय पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करता है और जंगलों और भूमि को "अपूरणीय क्षति" पहुंचा सकता है।
झारखंड की तरह, छत्तीसगढ़ की सरकार ने अरंड वन प्रभाग में पांच कोयला ब्लॉकों की नीलामी का विरोध करते हुए कहा कि इससे लेमरू हाथी अभ्यारण्य प्रभावित होगा।
मध्य प्रदेश राज्य के कार्यकर्ता सुनील मिंज, जो फादर एक्का और मुख्यमंत्री सोरेन का समर्थन करते हैं, कहा, "उन स्थलों में जहाँ खान खोदे जायेंगे और जिन क्षेत्रों को सरकार निलाम करना चाहती है वह कई आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है जिनकी जीविका का मुख्य साधन खेती और जंगल हैं और यदि उसके छेड़छाड़ किया गया तो वे प्रभावित होंगे।"
उन्होंने कहा, "वनभूमि और खेत उनके लिए सब कुछ है, और अगर उन्हें उससे अलग कर दिया जाए तो उनके पास कुछ भी नहीं रह जाएगा। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार नमक से स्वाद निकाल दिये जाने पर वह बेकार हो जाती है। आदिवासी और जंगल आपस में जुड़े हुए हैं - अगर आप एक को परेशान करेंगे तब दूसरा परेशान होगा।"
आदिवासी नेता ने कहा कि "राज्यों में वाणिज्यिक खनन से आगे बढ़ने से पहले आदिवासियों को विश्वास में लिया जाना चाहिए।"
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