कोविद महामारी के सर्वाधिक दुष्प्रभाव विकासशील देशों पर

ब्राज़ील में स्वास्थ्य कर्मी कोविद-19 रोगियो की मदद करते हुए ब्राज़ील में स्वास्थ्य कर्मी कोविद-19 रोगियो की मदद करते हुए

 वाटिकन के वरिष्ठ धर्माधिकारी तथा संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अन्तरराष्ट्रीय संगठनों में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष ईवान यूरकोविट्स ने चेतावनी दी है कि कोविद-19 महामारी विकासशील देशों में लोगों की आजीविका को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रही है।  

कोविद से बढ़ी अनिश्चित्तता
जिनिवा में संयुक्त राष्ट्र संघीय व्यापार एवं विकास बोर्ड के 67 वें सत्र में, गुरुवार को, विश्व के प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर महाधर्माध्यक्ष यूरकोविट्स ने कहा कि द्रुत गति से बढ़ती कोविद महामारी ने निवेश योजनाओं में गिरावट, बेरोज़गारी और साथ ही वित्तीय बाजारों में गहरी अनिश्चितता को बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि इस महामारी से हालांकि सम्पूर्ण विश्व की आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुई है तथापि, सर्वाधिक गम्भीर दुष्प्रभाव विकासशील देशों के लोगों जीवन एवं उनकी आजीविका पर पड़े हैं।  

विकासशील देशों को तत्काल सहायता प्रदान करने की अपील करते हुए उन्होंने कहा, "इस समय यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि संकटग्रस्त विकासशील देशों को तेजी से और पर्याप्त ऋण राहत पहुंचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा समन्वित कार्रवाई की जाये, इसलिये कि वे पहले से ही असुरक्षित ऋण बोझ के तहत संघर्षरत हैं तथा कोविद संकट ने उनकी स्थिति को बद से बदत्तर बना दिया है।"

निर्धन देशों की मदद अपरिहार्य
महाधर्माध्यक्ष यूरकोविट्स ने कहा, "वर्तमान संकटकालीन परिस्थितियों के मद्देनजर, परमधर्मपीठ  का आग्रह है कि: "सभी राष्ट्रों को ऐसी स्थिति में रखा जाये कि वे इस संकट से उत्पन्न अवस्था का सामना करने में सक्षम बनें, इसके लिये निर्धन देशों के कर्ज़ों में कटौती करना अथवा उन्हें पूरी तरह माफ़ कर देना शामिल होना चाहिये।"

महाधर्माध्यक्ष ने कहा, "अधिक समावेशी और धारणीय विश्व की ओर बढ़ना महज बाजारों को बेहतर बनाना नहीं है, अपितु इसका अर्थ है मानव संसाधनों में निवेश करना, चतुर पहलों को प्रोत्साहन देना, निर्धनों को कर्ज़ की सुविधा प्रदान करना तथा उपभोक्ताओं को मज़बूत सुरक्षा प्रदान करना।" उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था की जटिलता को देखते हुए, नैतिक और सांस्कृतिक कारकों को अनदेखा या कम नहीं किया जा सकता है। इस संकट की जड़ें न केवल आर्थिक और वित्तीय हैं, बल्कि नैतिक भी है। अर्थव्यवस्था में  नैतिकता के अस्तित्व की प्रधानता को स्वीकार करते हुए, विश्व के लोगों को अपने कार्यों को बढ़ावा देने के लिए एकजुटता की नीति अपनानी चाहिए।"

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