डिजिटल संस्कृति एवं विश्वास संकट के युग में धर्मशिक्षा

रवोस्की में संत पापा के दौरे के पूर्व प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने वाले बच्चों को तैयार करतीं धर्मबहनें रवोस्की में संत पापा के दौरे के पूर्व प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने वाले बच्चों को तैयार करतीं धर्मबहनें

वाटिकन में आज धर्मशिक्षा के लिए नई निर्देशिका प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रेरितिक जिम्मेदारी हेतु हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति को निमंत्रित किया गया है एवं विश्वास को बांटने के लिए नई भाषा की खोज की आवश्यकता बतलायी गई है। धर्मशिक्षा पूरी तरह सुसमाचार प्रचार के कार्य से जुड़ा होना चाहिए, उससे अलग नहीं।

वैश्वीकरण के परिणाम एवं कृत्रिमता के साथ, विश्वास के नाटकीय संकट से चिन्हित इस ऐतिहासिक समय में, डिजिटल संस्कृति के युग में धर्मशिक्षा, तथा प्रथम घोषणा एवं विश्वास की प्रौढ़ता के बीच सामंजस्य बनाये रखना, ताकि सुसमाचार प्रचार किया जा सके जो कलीसिया के जीवन में प्राथमिक कार्य है।  

वाटिकन में पत्रकारों के सामने प्रस्तुत धर्मशिक्षा की नई निर्देशिका का यही परिप्रेक्ष्य है।  

नवीन सुसमाचार प्रचार हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष रिनो फिसिकेल्ला ने कहा कि डिजिटल संस्कृति की उत्पति ने निर्देशिका को 1971 और 1977 के बाद तीसरे संस्करण के लिए आवश्यक बना दिया।

निर्देशिका तीन भागों और 12 अध्यायों में विभक्त है। कुल 326 पृष्टों वाली निर्देशिका में हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति को मिशनरी जिम्मेदारी की याद दिलायी गई है तथा उन्हें विश्वास का प्रसार करने हेतु नई भाषा खोजने की आवश्यकता बतलायी गई है।  

इसमें तीन मौलिक सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया है- साक्ष्य, क्योंकि कलीसिया धर्मांतरण से नहीं बढ़ती बल्कि उस आकर्षण से बढ़ती है जो करुणा, सच्ची धर्मशिक्षा, मुक्त एवं खुली वार्ता में झलकती और जो दबाव से नहीं बल्कि प्रेम से शुरू होती एवं शांति लाती है।

नवीन सुसमाचार प्रचार हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के सचिव मोनसिन्योर ओक्तावियो रूईज अरेनास ने कहा, "कलीसिया अब ख्रीस्तीय शासन में नहीं रह गई है बल्कि एक धर्मनिर्पेक्ष समाज में है जिसमें विश्वास से दूरी की बात को पवित्रता खोने के रूप में समझा जाता है, और ख्रीस्तीय मूल्य सवाल के घेरे में आ जाते हैं, अतः धर्मशिक्षा को सुसमाचार प्रचार के कार्य से एक होना है और इसे अलग नहीं किया जा सकता है।

मोनसिन्योर फिजिकेल्ला ने गौर किया कि इस संबंध में पहले सुसमाचार आता है न कि धर्मशिक्षा।

इस प्रकार निर्देशिका की शुरूआत धर्मशिक्षा के विकास से हुई है अतः प्रचारक बनने से पहले खुद ही धर्मशिक्षा प्राप्त करना है ताकि व्यर्थ प्रेरितिक चिंताओं से मुक्त विश्वास के विश्वसनीय साक्षी बन सकें। धर्मप्रचार की प्रमुख जिम्मेदारी पर जोर देते हुए समिति के लिए धर्मशिक्षा के प्रतिनिधि मोनसिन्योर फ्रैंज पीटर तेबर्ज वान एलेस्ट ने कहा कि धर्मप्रांत के प्रथम प्रचारक धर्माध्यक्ष से लेकर दादा-दादी तक, धर्मशिक्षा को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता, बल्कि यह विश्वास का प्रसार करने के हर तरीके का सबसे अंतरंग सार है। परिवार जो ख्रीस्तीय शिक्षा प्रदान करता है उसमें शिक्षा से अधिक साक्ष्य होता है जो धर्मशिक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। समकालीन समाज के अनियमित परिस्थिति में और नये पारिवारिक परिदृश्य में, जहाँ परिवार का महत्व खाली होता जा रहा है, कलीसिया, सामीप्य, सुनने और समझने के द्वारा विश्वास में साथ देने के लिए बुलायी जाती है।

फेंकने की संस्कृति जो विकलांग, विस्थापित एवं कैदी लोगों पर भी लागू होती है उसपर समावेश की संस्कृति को विजयी होना है।

अतः आज येसु ख्रीस्त के सुसमाचार प्रचार हेतु इंटरनेट का सहारा लिया जाना चाहिए और प्रचारकों को चाहिए कि वे डिजिटल माध्यमों का प्रयोग करें, विशेषकर, युवाओं के लिए, जिनके लिए डिजिटल संस्कृति स्वभाविक हो गई है।    

निर्देशिका में कही गई है कि डिजिटल जगत का सकारात्मक पहलु है कि यह सबसे दुर्बल लोगों की रक्षा में स्वतंत्र सूचना को बढ़ावा देता है किन्तु इसका अंधकार पक्ष भी है – जिसमें एकाकीपन, हेरफेर, साइबरबुलिंग, पूर्वाग्रह आदि की संभावना है। इसके अलावा, भावनात्मक और स्वभाविक नहीं होने के कारण, यह महत्वपूर्ण विश्लेषण से रहित हो सकता और केवल निष्क्रिय प्राप्तकर्ता उत्पन्न कर सकता है।

प्रचारक के लिए इसके विपरीत यह तत्कालिक संस्कृति होती है जो मूल्य पदानुक्रम और दृष्टिकोण से रहित, सत्य और गुणवत्ता को भेद करने में असमर्थ होता है। सबसे बढ़कर, यह युवाओं को सामाजिक भीड़ से अपने आपको अलग करने में मदद देता है जो आंतरिक स्वतंत्रता की खोज करते हैं। सुसमाचार प्रचार की चुनौती में डिजिटल जगत में संस्कृतिक संतुलन बनाना शामिल है।

दस्तावेज में विज्ञान के साथ संबंध के मुद्दों को भी सम्बोधित किया गया है और पूर्वाग्रह को दूर करने तथा विज्ञान एवं विश्वास के बीच संघर्ष को स्पष्ट करने की सलाह दी गई है।

निर्देशिका में संत पापा के सबसे प्रिय विषयवस्तु " गहरा पारिस्थितिक परिवर्तन" को भी बल दिया गया है, ताकि धर्मशिक्षा के द्वारा सृष्टि की देखभाल पर ध्यान देने एवं उपभोक्तावाद से दूर, भलाई के जीवन की शिक्षा दी जा सके क्योंकि समस्त पर्यावरण, सम्पूर्ण ख्रीस्तीय जीवन का हिस्सा है।  

अंततः महाधर्माध्यक्ष फिसिकेल्ला ने कहा कि धर्मशिक्षा जो विश्वास की खोज कराता है वह नैतिक प्रस्ताव से पहले व्यक्ति के साथ मुलाकात है और ख्रीस्तीय धर्म अतीत का नहीं बल्कि वर्तमान की घटना है।

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