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कोरोना-काल की डराने वाली कहानी
अमेरिका और ब्राजील के बाद अब भारत में एक दिन में कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं। देश के कई शहरों में हालात बिगड़ते दिख रहे हैं। ज्यादातर अस्पताल कोविड सेंटर बना दिए गए हैं। ऐसे में अन्य बीमारियों का इलाज नहीं बा-मुश्किल हो पा रहा है। इसके चलते कई लोग सड़कों पर ही दम तोड़ दे रहे हैं। हाल में ऐसा ही एक वाकया देश की राजधानी में हुआ।
दिल्ली के रहने वाले बिजेंद्र सिंह अपनी प्रेग्नेंट पत्नी को लेकर 15 घंटे तक भटकते रहे। 8 अस्पतालों के चक्कर काटे, लेकिन इलाज नहीं मिलने के चलते आखिरकार पत्नी की मौत हो गई। इस वाकये से आप समझ सकते हैं कि देश अन्य हिस्सों हालात कैसे होंगे।
बिजेंद्र सिंह बताते हैं कि कोरोना के पहले जब सब कुछ ठीक चल रहा था, तब उन्होंने नोएडा में एक अपार्टमेंट खरीदने का प्लान बनाया था। वे एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करते हैं, जबकि उनकी पत्नी नीलम इलेक्ट्रिक वायर बनाने वाली एक कंपनी में काम करती थीं। दोनों मिलकर एक साल में लगभग 6 लाख रुपए कमा लेते थे। एक बेटा रुद्राक्ष है, जो अभी 6 साल का है।
मई के जून की शुरुआत में नीलम की प्रेग्नेंसी का 9वां महीना शुरू हुआ था। इस दौरान उन्हें हाई ब्लड प्रेशर, ब्लीडिंग और टाइफाइड की भी शिकायत थी। इस दौरान वह पांच दिनों तक एक अस्पताल में भर्ती रहीं।
5 जून को नीलम सुबह पांच बजे जागीं तो उन्हें लेबर पेन हो रहा था। उनके पति बिजेंद्र सिंह ने उन्हें ऑटो रिक्शे में बैठाया और अस्पताल लेकर पहुंचे। वे एक के बाद एक 8 अस्पातलों में गए, लेकिन किसी ने उनकी पत्नी को भर्ती नहीं किया। नीलम का दर्द बढ़ता जा रहा था। वह बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही थीं, लेकिन कोई उनकी परवाह करने वाला नहीं था। वह अपने पति से बार-बार पूछतीं कि मुझे कोई डॉक्टर भर्ती क्यों नहीं कर रहा है? आखिर क्या दिक्कत है? ऐसा ही रहा तो मैं मर जाऊंगी।
बिजेंद्र परेशान हो रहे थे। वे पत्नी को लेकर सबसे पहले नोएडा के ईएसआईसी मॉडेल अस्पताल पहुंचे। जहां पत्नी को डॉक्टर ने कहा कि अगर चेहरे से मास्क उतारा तो थप्पड़ जड़ दूंगी। वे दंग रह गए। नीलम को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, फिर भी उन्होंने बहस नहीं किया। नीलम ने अस्पातल प्रशासन से ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की मांग की, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि दूसरे सरकारी अस्पताल में जाओ।
इसके बाद बिजेंद्र पत्नी को लेकर दूसरे अस्पताल में गए, जहां यह कहकर भर्ती नहीं किया गया कि नीलम की हालत खराब है। उन्हें गहन देखभाल की जरूरत है, इस अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। यहां से इनकार के बाद नीलम शिवालिक अस्पताल पहुंचीं। यह उनका तीसरा अस्पताल था, यहां उनका इलाज शुरू हुआ। डॉक्टर ने उन्हें कुछ देर ऑक्सीजन दिया। लेकिन बिजेंद्र ने कहा कि उन्हें कोरोना संक्रमण का डर है। डॉक्टर ने फौरन उन्हें वहां से जाने को कह दिया।
अस्पताल के निर्देशक रवी मेहता कहते हैं कि हमारा छोटा सा अस्पताल है, हम जो कर सकते थे, वो हमने किया। यहां से निकलने के बाद दोनों रिक्शे पर बैठ गए। नीलम की तबीयत बिगड़ने लगी, उसने बात करना भी बंद कर दिया, शरीर से जमकर पसीना आने लगा, वह पति के हाथ से चिपक गईं।
बिजेंद्र कहते हैं कि ऐसा नहीं था कि डॉक्टर उनकी मदद नहीं कर सकते थे। लेकिन वे करना नहीं चाहते थे। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ने वाला था कि वो मरती है या जिंदा रहती है। इसके बाद वे चौथे अस्पताल में गए, जहां उन्होंने वेंटिलेटर की मांग की। लेकिन, डॉक्टर ने यह कहकर भर्ती करने से इनकार कर दिया कि वह मरने वाली हैं, आप कहीं और जहां ले जाना चाहते हैं तो ले जाएं। यहां जगह नहीं है। वहां उन्हें एंबुलेंस की भी सुविधा नहीं मिली।
इसके बाद बिजेंद्र पत्नी को लेकर तीन अन्य अस्पतालों में पहुंचे। वहां भी किसी ने भर्ती नहीं किया। तब उन्होंने पुलिस को कॉल किया। बिजेंद्र ने बताया कि दो पुलिस के अधिकारी उनसे मिले और जीआईएमएस आस्पताल प्रशासन से भर्ती कराने की बात कही, लेकिन उनकी भी नहीं सुनी गई।
यहां से निराश होने के बाद वे 25 किमी दूर गाजियाबाद के मैक्स अस्पताल पहुंचे। दोपहर हो चुकी थी, घर से निकले हुए आठ घंटे से अधिक का वक्त बीत चुका था। बिजेंद्र को उम्मीद थी कि जल्द ही नए बच्चे से उनकी मुलाकात होने वाली है, लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही मिली। मैक्स ने बेड नहीं होने की बात कहकर भर्ती करने से ही इनकार कर दिया। परेशान बिजेंद्र ने अपनी आंख बंद की और मन ही मन कहा भगवान मुझे बचा लो।
इसके बाद उन्होंने एंबुलेंस से कहा कि वापस जीआईएमएस चलो। उन्होंने अपनी पत्नी को कंधे का सहारा दिया और कहा कि हार नहीं मानो, सब ठीक हो जाएगा। तभी नीलम ने उनकी शर्ट को जोर से पकड़ लिया।
आखिरकार वे वापस जीआईएमएस पहुंच गए। नीलम ने सांस लेना बंद कर दिया था, उसे इमरजेंसी रूम में ले जाया गया। 15 घंटे से आठ अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद करीब रात के 8 बजकर 5 मिनट पर नीलम को मृत घोषित कर दिया गया।
प्राथमिक जांच में अस्पताल प्रशासन साफ तौर पर दोषी पाया गया। नीलम कोई पहली महिला नहीं थीं, जिसे इस तरह के दौर से गुजरना पड़ा। इससे पहले हैदराबाद और जम्मू कश्मीर में भी इस तरह की घटना हो चुकी हैं।
बिजेंद्र कहते हैं कि उनका बेटा रुद्राक्ष डॉक्टर बनना चाहता है। कुछ दिन पहले उसने कहा कि पापा मैं आगे चलकर डॉक्टर बनूंगा, ताकि किसी और मां की जान न जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी फटकार
केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि इमरजेंसी सेवाएं बंद नहीं होनी चाहिए, लेकिन इसके बाद भी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पतालों में उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा है। खासकर, राजधानी दिल्ली के अस्पताल पूरी तरह से भरे हुए हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगाई थी। कहा था कि कोरोना संक्रमित शवों के साथ गलत व्यवहार हो रहा है। कुछ शव कूड़े में मिल रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली में स्थिति भयानक और डराने वाली हो गई है।
सरकार की नीतियां हैं जिम्मेदार
राजेश कुमार प्रजापति, एक ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं। कहते हैं कि इसके लिए बहुुत हद तक सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। कई निजी अस्पताल नए मरीजों को खासकर सांस लेने में तकलीफ वाले मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें डर है कि यदि कोरोना का केस मिलता है तो अस्पताल को बंद कर दिया जाएगा।
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